December 23, 2024

”जीवन परमात्मा की अद्‌भुत देन है, इसका वास्तविक आधार स्थूल शरीर नहीं अपितु आत्मा है”

Faridabad/Alive News : सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा अपने ही विशाल परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में मानवता-फेस्ट 2023 का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न भागों से आए युवाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस फेस्ट में ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन जी ने कहा कि यह जीवन परमात्मा की अद्‌भुत देन है और इसका वास्तविक आधार स्थूल शरीर नहीं अपितु वह आत्मा है। अत: इस तथ्य के दृष्टिगत अपने अन्दर विद्यमान जीवन शक्ति यानि आत्मा को पहचानो और उसका बोध करने हेतु, अपने जीवन का अध्ययन करने वाले विज्ञानी बनो। आशय यह है कि शारीरिक भाव स्वभाव अपनाने के स्थान पर आत्मिक भाव-स्वभाव अपनाओ और अपनी मानवीय विशिष्टताओं के अनुरूप निर्विकारी, जीवन जीना आरम्भ कर दो। जानो यह अपने आप में वह जीवनदायक बात है जिसका पालन करने पर आपका, उस जीवनदाता के साथ अटूट संयोग बना रह सकता है और आप ‘ईश्वर है अपना आप‘, इस विचार पर सुदृढ़ता से खड़े हो अपना यथार्थता अनुरूप समुचित विकास कर श्रेष्ठ मानव बन सकते हो।

तत्पश्चात्‌ उन्होंने युवाओं को समझाया कि कुछ भी बुरा देख या पढ़-सुन, बुराई को ग्रहण कदापि न करो यानि अपने जीवन को आप संकट में न ड़ालो अपितु वेद-शास्त्रों में विदित ब्रह्म शब्द विचारों के ग्रहण द्वारा, अपने जीवन की रक्षा आप करते हुए अपना जीवन चरित्र पावन, उज्ज्वल व परम पवित्र बनाओ। इस तरह अपने आप को उस चैतन्य का सूक्ष्म अंश मानते हुए, काल्पिनक जगत के साथ जुड़ने की भूल न करो तथा इसके स्थान पर जीवन दाता को ही परम प्रिय मानते हुए सदा उस जीवन आधार परमात्मा के ही संरक्षण में समर्पित भाव से बने रहो। निश्चित रूप से सजनों ऐसा करने पर आपके अन्दर स्वत: ही जीवन सम्बन्धी विचार पनपेंगे और आत्मनिर्भरता का भाव जाग्रत होगा। यही नहीं तभी आप परोपकार के निमित्त सेवा भाव से जीवन जीते हुए अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की जीवन यात्रा को सुखकारी बना सकोगे।

उन्होंने कहा कि हकीकत में यही अपने प्राणाधार यानि जीवन के स्वामी के मार्गदर्शन में सही ढंग से जीवन जीने की विधि है जिसका पालन करने पर इंसान परम पुरुषार्थ द्वारा जीवन के सार तत्त्व को जान यानि जीवन दशा में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर, जन्म-मरण के बंधन से छूट परमानन्द को पा जाता है और कह उठता है:-

बहुत जान लिया हमने इस जग को
मगर कुछ हमने नहीं है पाया
जीवन का इतना समयट हमने है व्यर्थ गँवाया
इसीलिए है हमने ठानाट अब हम स्वयं को जानेंगे
आत्मा क्या परमात्मा क्या है इस सत्य को पहचानेंगे
इसी लक्ष्य को जानने हेतु हम इस जग में आए हैं
जीवन के इस महत्त्व को अब समझ हम पाएं हैं
जैसे हम जल तत्व से शरीर की मैल नित्‌ धोते हैं
आत्मज्ञान प्राप्त कर मन की मैल भी धो डालेंगे
ए विध्‌ दृष्टि कंचन होते ही सुरत निर्मल हो जाएगी
ऐसा अद्‌भुत होते ही स्वयं को जान पाएगी

अंत में उन्होनें सबसे अपील की कि इस प्रकार आत्मज्ञान प्राप्त कर, जीवन की महानता व महत्त्व जान जाओ और ब्रह्म, जीव, जगत के खेल की रमज जान व मन को अंतर्लीन रखते हुए एक दर्शन में स्थित कर सत्यार्थ बन जाओ।