November 25, 2024

जानिए क्यों, डेड बॉडी को यंहा जलाया-दफनाया नहीं बल्कि लटका दिया जाता है

यह दुनिया ऐसी कई अजीबों-गरीब चीज़ों से भरी हुई है, जो कई बार हमारी कल्पनाओं से भी परे होती हैं। आज तक आपने सुना होगा कि मृत्यु के पश्चात कहीं शरीर को आग में जलाने, तो कहीं ज़मीन में दफनाने का रिवाज़ है। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लाश को पानी में बहा दिया जाता है, तो कुछ के अनुसार उसे चील-कौओं का आहार बनने के लिए छोड़ दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि मरने के बाद शवों को पहाड़ के ऊंचे टीलों से लटकाया जाता है। जी हां, इस दुनिया में कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां कब्रें पहाड़ों की ऊंचाई से लटका कर छोड़ दी जाती हैं। दुनिया में ऐसी एक जगह है हैंगिंग गार्डन। इन जगहों पर आपको कब्रें लटकी हुई मिलेगीं। इन कब्रों का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है। विश्व में तीन देशों-चीन, इंडोनेशिया और फिलीपींस में इस तरह के हैंगिंग कॉफिन्स आज भी देखने को मिलते हैं। वे लोग ऐसा क्यों करते थे, इसका तो कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, पर एक मान्यता यह है कि इसके पीछे मृत व्यक्ति के आसानी से वापस प्रकृति में लौट जाने की कामना शामिल होगी।

आपको बता दें कि 90 के शुरुआती दशक में किये गये एक सर्वे के दौरान चीन की यांग्त्जी नदी के किनारे तीन जगह हैंगिंग कॉफिन्स पाये गये। पता चला किसी समय में यहां पर 1000 से ज़्यादा कॉफिन्स थे पर अब कुछ सौ ही बचे हैं। अब इस जगह को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हैंगिंग कॉफिन्स दक्षिणी चीन प्रांत के प्राचीन प्रजातीय समूहों खासकर बो समुदाय के लोगों की लोक परंपरा का हिस्सा है। बो समुदाय के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इनके पूर्वजों ने ही पश्चिमी झोउ शासकों (1100 शताब्दी- 771 शताब्दी पूर्व) को तत्कालीन सांग वंश (1600 शताब्दी- 1100 शताब्दी पूर्व) के शासक को पदच्यूत करने में सहायता की थी।

यहां पाये जानेवाले कॉफिन्स तीन तरह के होते हैं- कुछ कॉफिन्स लकड़ी के खूंटे से बंधे लकड़ी के बीम (Cantilever) होते हैं। कुछ शवों को पहाड़ों की गुफाओं में रखा जाता है। जबकि कुछ अन्य को चट्टानों पर प्रक्षेपित (project) किया जाता है। 1990 के आरंभिक वर्षों में हुए सर्वे रिपोर्ट्स के अनुसार इन तीनों तरह के कॉफिन्स को चीन के गोंगजियान प्रांत में देखा जा सकता है। यहां अब तक ऐसे सर्वाधिक कॉफिन्स (280) पाये गये हैं। इनमें से भी माटंग्बा और सुमावन क्षेत्र में 5000 मीटर ऊंची बोचुआनगाउ नामक चूना पत्थर वाली चट्टान के दोनों ओर करीब 100 की संख्या में कॉफिन्स लटके पाये गये हैं। ये कॉफिन्स ज़मीन से न्यूनतम 10 मीटर ऊंचाई पर टंगे हैं, जबकि इनकी अधिकतम ऊंचाई 130 मीटर तक है। हालांकि पिछले करीब एक दशक में इनमें से करीब 20 काफिन्स मौसम की मार से प्रभावित होकर गिर गये हैं।

रिसर्च टीम द्वारा उनमें से पांच कॉफिन्स को जब खोला गया तो उन्हें उनके भीतर कई कीमती सांस्कृतिक स्मृतिचिन्ह मिले। इनमें क्लिफ पेंटिंग भी शामिल है। विशेषज्ञों के अनुसार, संभवत: ये सारी चीजें मिंज वंशकाल की हैं। ये सारी चीज़ें उस काल के जीवन, कार्य, राजनीति, सैन्य मामले तथा बो समुदाय के रहन-सहन के बारे में जानकारी प्राप्त करने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। बो समुदाय का अंत होने के साथ ही यह परंपरा भी धीरे-धीरे चीन से लुप्त होती गयी।

आप निश्चित रूप से यह सोच रहे होंगे कि आखिर पहाड़ों की चोटियों से ताबूतों को इस तरह लटकाये जाने की वजह क्या होगी? युआन वंश (1279-1368) के दौरान ली जिंग द्वारा लिखित प्रमाण यह संकेत देते हैं कि उस काल के लोगों की मान्यतानुसार इन कॉफिन्स को जितनी ऊंचाई पर लटकाया जायेगा, मृतात्मा के लिए वह उतना ही शुभ होगा। इनमें से जो कॉफिन जितनी जल्दी ज़मीन पर गिरता था, उस व्यक्ति की किस्मत उतनी ही अच्छी मानी जाती थी। लोग यह मानते थे कि ऊंचाई पर टंगे होने से शवों को जंगली जीव-जंतुओं द्वारा नष्ट किये जाने का भय नहीं होता था। साथ ही, मृतात्मा को इससे शांति मिलती थी।

बो समुदाय के लोग ऊंचे पहाड़ों को स्वर्ग जाने का मार्ग मानते थे। उन्हें लगता था कि जिस व्यक्ति के कॉफिन को जितनी ऊंचाई पर टांगा जायेगा, वह स्वर्ग के उतने ही नज़दीक होगा। अगर व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाये, तो इनमें से पहली मान्यता ही उचित प्रतीत होती है, जिसके अनुसार जानवरों या क्षति से बचाने के लिए ताबूतों को ऊंचाई पर लटकाया जाता था।

आक्रमणकारियों से बचाने के लिए फिलीपींस में शुरू हुई यह परंपरा

उत्तरी फिलीपींस में माउंटेन प्रांत के रहनेवाले इगोरॉट जनजाति के सदस्यों द्वारा भी मृत शवों के ताबूत को पहाड़ों से लटकाने की परंपरा रही है। यहां भी मृत्यु के पश्चात शव को ताबूत में रखकर, पहाड़ों के ऊपर स्थित किसी गुफा के अंदर रख दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार, स्पेनवासियों के यहां आने से करीब दो लाख वर्षों पूर्व यहां इस परंपरा का अस्तित्व था, जो आज भी इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ही सही, पर देखने को मिल जाता है।

स्थानीय लोगों के अनुसार, इसके पीछे मुख्यत: तीन मान्यताएं हैं। पहला यह कि जिस व्यक्ति के शव को जितनी ऊंचाई पर लटकाया जायेगा, उसके अपने पूर्वजों से मिलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। दूसरा, कुछ लोग इस डर से भी ऐसा करते थे क्योंकि अगर शव को ज़मीन में दफनाया गया, तो ज़मीन से रिसनेवाले पानी के संपर्क में आकर शव जल्दी सड़ जायेंगे। ऐसा होने से बचाने के लिए शवों को ऊंचाई से लटकाने की परंपरा शुरू हुई। तीसरा, पुराने ज़माने में कलिंग तथा पूर्वी बोन्टोक प्रांत में रहनेवाले आदिम समुदाय द्वारा आक्रमण करने पर स्थानीय लोगों के सिर को काट कर ट्रॉफी के तौर अपने देश ले जाया जाता था। इससे बचने के लिए यह परंपरा अपनायी गयी।

इगोरॉट समुदाय में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तो परंपरानुसार सामुदायिक भोज में सूअर और मुर्गी का मांस खिलाया जाता था। उसके बाद मृत व्यक्ति के शव को लकड़ी की एक कुर्सी पर रखकर उसे पौधों की लताओं से बांध दिया जाता था और फिर उसे एक कंबल से ढंक दिया जाता था। शव का मुंह घर के मुख्य दरवाज़े की ओर रखा जाता था, ताकि घर के बाकी सदस्य मृतात्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।

शव पर एक विशेष प्रकार का लेप लगाया जाता था, ताकि उसे जल्द सड़ने से बचाया जा सके। साथ ही, उसकी सड़ांध बदबू को फैलने से रोका जा सके। इस तरह शव को रखकर कुछ दिनों तक उसकी निगरानी की जाती थी। उसके बाद शव को कुर्सी से उतारकर ताबूत में रखा जाता था, ठीक उसी पोजीशन में जैसे कोई भ्रूण मां के गर्भ में रहता है। इसके लिए उसके पैर को उसकी ठुड्ढी से सटा दिया जाता। अगर शव को ताबूत में एडजस्ट करने में किसी तरह की कोई परेशानी होती, तो उसकी हड्डियों को हथौड़े प्रहार से तोड़ दिया जाता था और अगर जगह खाली बच गयी हो, तो उनमें लताओं को ठूंस कर भर दिया जाता (अब ऐसा नहीं किया जाता)। उसके बाद शव को पुन: कंबल में लपेटा जाता और फिर लताओं से बांध दिया जाता। ऐसा करने के दौरान अगर किसी व्यक्ति के शरीर पर शव के खून के छींटे पड़ जाते, तो इसे अच्छे भाग्य का संकेत माना जाता था। लोग मानते थे कि इससे उस व्यक्ति में मृत व्यक्ति के गुण आ जाते हैं। दफन करनेवाली जगह पर पहुंचने के बाद कुछ युवा पहाड़ी की चोटी पर चढ़ जाते और फिर ताबूत को वहां किसी गुफा में घुसा देते।

यहां पाये जानेवाले सबसे नये ताबूत की लंबाई करीब दो मीटर है। वर्तमान में सगड़ा समुदाय इस प्राचीन परंपरा को जीवित रखे हुए है। आधुनिक समय में ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद नयी पीढ़ी के लोगों ने शव दहन के नये तरीकों अपना लिया, जिससे धीरे-धीरे यह परंपरा विलुप्त होने के कगार पर है।

इंडोनेशिया में खुद अपनी ताबूत तैयार करते हैं लोग
इंडोनेशिया में हैंगिंग कॉफिन्स सुलावेसी में मिले हैं। यहां पर अब भी बुजुर्ग मृत्यु पूर्व, खुद के लिए ताबूत तैयार करते हैं। इस जगह को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इसे बनाने के पीछे के राज़ को अब तक कोई समझ नहीं पाया है। वैज्ञानिकों में भी इस परंपरा को लेकर असीम जिज्ञासा देखने को मिलती है।