देवों के देव महादेव भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। शास्त्रों में इस व्रत को बहुत कल्याणकारी माना गया है। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने में यह तिथि दो बार आती है। इसी वजह से यह व्रत भी महीने में दो बार रखा जाता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की उपासना की जाती है।
मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल कहा जाता है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए व्रती को त्रयोदशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। नहाकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है। गुस्सा या विवाद से बचकर रहना चाहिए। प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन सूर्यास्त से एक घंटा पहले नहाकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। प्रदोष व्रत की पूजा में कुशा के आसन का प्रयोग करना चाहिए।