Business/Alive News:हल्दीराम का नाम तो आप लोगो ने सुना ही होगा। फिर चाहे वो हल्दीराम की मिठाईया हो या नमकीन लोग इससे बड़े ही चाव से खाते हैं बता दें कि आज हल्दीराम कंपनी किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है राजस्थान के बीकानेर में एक छोटी-सी दुकान से शुरू हुआ यह स्वाद का सफर सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों तक पहुंच गया है। ख़ास बात तो यह है कि हल्दीराम की सभी संस्थापक पीढ़ियों में से किसी ने आठवीं कक्षा से ज्यादा पढाई नहीं की है
जानिए कैसे हुई थी हल्दीराम कंपनी की शुरुआत
गंगा भिसेन अग्रवाल ने 1937 में हल्दीराम की नींव रखी थी. गंगा को उनकी मां प्यार से हल्दीराम कहती थीं. हल्दीराम का जन्म बीकानेर में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था. शुरुआत में हल्दीराम अपने पिता की नमकीन और नाश्ते की दुकान में काम करते थे और अपनी चाची के हाथ की बनाई गई भुजिया बेचते थे. लेकिन बाद में कुछ पारिवारिक विवाद के चलते उन्होंने अपनी पत्नी चंपा देवी के साथ घर छोड़ दिया.
इसके बाद उन्होंने सड़क पर मूंग दाल की नमकीन बेचना शुरू कर दिया, जिसे उनकी पत्नी घर पर तैयार करती थीं. साल 1946 में हल्दीराम ने बीकानेर में अपनी पहली दुकान शुरू की जहां उन्होंने अपनी बीकानेरी भुजिया बेचना शुरू किया.
इसके बाद उन्होंने भुजिया की रेसिपी के साथ छोटे-छोटे बदलाव करने शुरू किए. इसमें उन्होंने मोठ का आटा मिलाकर इसे पतला भी कर दिया. इन बदलावों के चलते उनकी बिक्री और आय कई गुना बढ़ गई. इस दौरान हल्दीराम कोलकाता में एक शादी में शामिल होने गए और वहीं पर उन्हें अपनी दुकान खोलने का विचार आया. इस कदम के साथ हल्दीराम का भुजिया बीकानेर से निकलकर देश के दूसरे शहर पहुंचा.
विदेश में भी खाये जाते है हल्दीराम के प्रोडक्ट्स
हल्दीराम के पोते शिव किशन अग्रवाल ने 1985 में अपनी कंपनी का विस्तार करना शुरू किया, जिसके बाद इसकी प्रोडक्ट्स लिस्ट से लेकर लोकेशंस तक में बढ़ोतरी हुई. फिलहाल हल्दीराम के पोर्टफोलियो में 70 से ज्यादा नमकीन और स्नैक्स, मिठाइयां, रेफ्रेशमेंट्स ड्रिंक्स, फ्रोजन फूड्स और रेस्टोरेंट्स शामिल हैं.
कंपनी के नागपुर, नई दिल्ली, कोलकाता और बीकानेर में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स हैं. इसके अलावा हल्दीराम के पास नागपुर और दिल्ली में अपने रिटेल चेन स्टोर्स और रेस्टोरेंट्स की रेंज है. हल्दीराम के प्रोडक्ट्स विदेशों में भी भेजे जाते हैं. इन देशों में श्रीलंका, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, थाईलैंड और अन्य देश शामिल हैं. कंपनी का कारोबार दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में है.
विवाद और बंटवारा
हल्दीराम के बेटे और पोते भी बाद में अपने फैमिली बिजनेस में शामिल हुए. इन्होंने बाद में व्यवसाय को और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया. लेकिन जैसे-जैसे कंपनी आगे बढ़ी, इसकी यंग जेनरेशन के बीच हल्दीराम के क्षेत्रीय और ट्रेडमार्क अधिकारों को लेकर विवाद भी शुरू हो गया. मौजूदा समय में उनके तीन बेटे मूलचंद, रामेश्वर लाल और सतीदास अलग-अलग नामों जैसे हल्दीराम एंड संस, बीकाजी, हल्दीराम नागपुर, हल्दीराम भुजियावाला सहित कई नामों से ब्रांड्स के प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं.
मार्केटिंग रणनीति
अपने शुरुआती दिनों से ही हल्दीराम ने अपने ब्रांड को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग और विज्ञापन में कभी ज्यादा निवेश नहीं किया है. उनके बेहतर स्वाद ने ही उनके लिए प्रमोशन का काम किया है. लेकिन आजकल की इस ज्यादा प्रतिस्पर्धी दुनिया में उन्हें मार्केटिंग और विज्ञापन के महत्व का एहसास हुआ और उन्होंने उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए नई-नई मार्केटिंग स्ट्रेटजीज का सहारा लेना शुरू कर दिया है.
हल्दीराम और बीकाजी विवाद
हल्दीराम की तरह, बीकाजी भी देश में अपनी अच्छी क्वॉलिटी वाले प्रोडक्ट्स के लिए जाना जाता है. बीकाजी की स्थापना 1987 में राजस्थान के बीकानेर में शिवरतन अग्रवाल ने की थी. बीकाजी ने भुजिया से शुरुआत करते हुए बाद में अपने पोर्टफोलियो का विस्तार करते हुए इसमें अलग-अलग प्रकार के स्नैक्स और मिठाइयों को शामिल किया.
हल्दीराम और बीकाजी दोनों ही भारतीय स्नैक्स मार्केट में बड़े नाम हैं, इसलिए दोनों एक दूसरे के राइवल्स हैं. साल 2018 में, हल्दीराम ने कथित ट्रेडमार्क उल्लंघन को लेकर बीकाजी पर मुकदमा दायर किया. हल्दीराम का आरोप था कि बीकाजी की पैकेजिंग और उत्पाद के नाम हल्दीराम के समान हैं. हालांकि, मामले को बाद में अदालत के बाहर सुलझा लिया गया था.