New Delhi/Alive News: बिहार के मधुबनी जिले की दुलारी देवी ने घरों में झाड़ू-पोछा करते हुए हमेशा अपने अंदर के हुनर को जीवित रखा और पद्मश्री तक का सफर तय किया। इसी महीने नौ नवम्बर को उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके हुनर के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। मौजूदा समय प्रगति मैदान में आयोजित उद्योग मेले में वह लोगों को मधुबनी पेंटिंग का लाइव डेमो दे रही हैं।
जानकारी के मुताबिक दुलारी देवी ने खांटी गांव के एक केवट परिवार में जन्म लिया था। उनका परिवार मजदूरी करके जीवन यापन करता था। वह 10 साल की उम्र में मां के साथ दूसरों के खेतों में काम करने जाती थीं। घर में खाना बनाने और भाई बहनों की देखभाल करती थीं। पिता मछली पकड़ते तो वह उसे बाजार में बेचने जाती थीं। अधिक पैसा कमाने के लिए दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन साफ करने का काम भी करती थीं।
वह कभी स्कूल नहीं गईं, इसलिए घर के कामों में अधिक रुचि लेतीं। इसी बीच उनका विवाह हो गया और इसके कुछ दिन बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद ही बेटी की मौत हो गई। इस घटना के बाद से उनके पति ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। वह निराश होकर अपने भाई परिक्षण मुखिया के पास आकर रहने लगीं। इसी बीच उन्हें मधुबनी की कलाकार पद्मश्री महासुंदरी देवी के यहां झाड़ू-पोछा का काम मिल गया।
गोबर की लिपाई पर की चित्रकारी
पद्मश्री महासुंदरी देवी के यहां काम करते हुए दुलारी देवी ने पहली बार मधुबनी कला को देखा। उनको ऐसा करते देखकर दुलारी देवी के मन में ऐसी चित्रकारी करने का विचार आया। लेकिन घर पर कोई रंग या कागज नहीं था। उन्होंने मिट्टी पर गोबर से लिपाई (पुताई) की और उसी पर लकड़ी से मछली, सुग्गा(तोता), पेड़ की आकृतियां बनाई। कुछ दिन वो घर पर ऐसा करती रहीं, लेकिन किसी से इसके बारे में बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं।
महासुंदरी देवी को दुलारी देवी की रुचि के बारे में पता चला तो उन्होंने उनको नियमित रूप से मधुबनी चित्रकला का प्रशिक्षण देना शुरू किया। उनके घर वह करीब 25 साल काम करती रहीं। उन्होंने यहां चित्रकारी की बारीकियां सीखी। जब उन्हें यह सम्मान मिला तो वह बहुत खुश हुईं। वह प्रगति मैदान के अंदर बिहार पवेलियन में लोगों को मधुबनी चित्रकला का प्रशिक्षण दे रही हैं।