New Delhi/Alive News : केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की परीक्षा कोविड -19 के प्रकोप के कारण कक्षा 12वीं की परीक्षा कैंसिल कर दी है. अब शिक्षकों और छात्रों के बीच इसी बात की चर्चा हो रही है कि कक्षा 12 के छात्रों के लिए इवैल्यूएशन पॉलिसी क्या हो सकता है. हाल ही में सीबीएसई ने कक्षा 10 के छात्रों के मूल्यांकन के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया था, लेकिन अब 12वीं के मामले में कई हितधारकों ने चेतावनी दी है कि वरिष्ठ छात्रों यानी कि 12वीं के लिए एक ही मानदंड का उपयोग नहीं किया जा सकता है. जाहिर है 12वीं का मूल्यांकन और उनके नंबर उन्हें आगे उच्च अध्ययन की संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं. आइए जानें विशेषज्ञ इस बारे में क्या कह रहे हैं.
सीबीएसई बोर्ड ने हाल ही में कक्षा 10 की परीक्षाएं कैंसिल होने के बाद छात्रों के लिए एक मूल्यांकन पैटर्न निकाला था. इस पैटर्न में दो खास पहलू शामिल किए गए थे. जिसमें दो तरह से मूल्यांकन करना था, पहला छात्र के अंतिम स्कोर की गणना कैसे की जाएगी और दूसरा स्कूल में उनके परफार्मेंस के आधार पर सभी छात्रों के अंकों का मानकीकरण कैसे किया जाएगा.
इसमें व्यक्तिगत रूप से किसी छात्र के अंकों की गणना एक यूनिट/पीरिएडिक टेस्ट और एनुअल या हाफ इयरली या मिड टर्म एग्जाम के आधार पर करनी थी. इसमें प्री बोड परीक्षा को भी शामिल किया गया है. इस तरह उन्हें एक साथ 80 अंकों का मूल्यांकन होगा. बाकी बचे 20 नंबर आंतरिक मूल्यांकन पर आधारित होंगे, जो कि संभावना है कि मार्च तक सामान्य बोर्ड परीक्षा मूल्यांकन के हिस्से के रूप में अधिकांश स्कूल पूरा करेंगे.
अब 12वीं के मूल्यांकन को लेकर दसवीं कक्षा के लिए लागू पॉलिसी को लेकर आवाजें उठने लगी हैं. कई स्टूडेंट्स और शिक्षाविद इसे 12वीं के लिए सही नहीं मान रहे हैं. मंगलवार को इस सिलसिले में दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस फॉर ऑल एनजीओ की ओर से एक याचिका भी आई है. इस पर सीबीएसई को नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि मॉडरेशन नीति छात्रों के साथ अन्याय होगी क्योंकि छात्र का परफॉर्मेंस स्कूल के प्रदर्शन एसे किसी भी तरह से संबंधित नहीं है.
वहीं विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि 12वीं में यूनिट टेस्ट और मिड-टर्म को स्कूलों में समान रूप से चिह्नित नहीं किया गया है. कई स्कूलों ने ने अपने स्कूल टेस्ट में बोर्ड की मार्किंग की तुलना में कठिन मानकों का उपयोग किया है. द इंडियन स्कूल की प्रिंसिपल तानिया जोशी ने HT से बातचीत में कहा कि चूंकि हमें केवल प्लस या माइनस दो अंकों की भिन्नता की अनुमति है, इससे उच्च प्रदर्शन करने वाले छात्रों को नुकसान होता है क्योंकि इंटरनल टेस्ट बोर्डों की तुलना में अधिक सख्ती से चिह्नित होते हैं. हमारे पिछले डेटा को देखें तो पाएंगे कि प्री-बोर्ड परीक्षा की तुलना में ज्यादातर छात्र अपनी बोर्ड परीक्षा में 70-80 की लिमिट में स्कोर करते हैं.
कई शिक्षाविद ये भी कह रहे हैं कि अगर प्री बोर्ड को सामने रखकर मूल्यांकन किया जाता है तो ये बहुत न्यायोचित नहीं होगा. बीते सालों में ऐसा भी देखा गया है कि जिन छात्रों ने प्री बोर्ड में 33 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे, उन्होंने फाइनल एग्जाम में 65 से 70 फीसदी अंक हासिल किए. इसलिए बोर्ड को कोई ऐसी पॉलिसी लानी चाहिए जो प्री बोर्ड के अनुपात में बढ़े नंबरों के साथ मूल्यांकन करने को प्रेरित करे न कि बिल्कुल ठीक उसी के बराबर.
शालीमार बाग स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की वाइस प्रिंसिपल मेना मित्तल ने कहा कि दसवीं का छात्र अपने प्री-बोर्ड को कक्षा 12 के छात्र की तुलना में अधिक गंभीरता से लेता है. वहीं 12वीं के छात्र को उसी दौरान उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपस्थित होना पड़ता है. ऐसे में यदि हम प्री-बोर्ड परीक्षाओं को 40% वेटेज देते हैं, तो स्कूल के परिणाम उच्च प्रदर्शन करने वाले छात्रों को भी बुरी तरह प्रभावित करेंगे. ऐसे में स्पष्ट कहा जा सकता है कि स्कूल किसी भी तरह कक्षा 12 के छात्रों के लिए कक्षा 10 के मूल्यांकन पैटर्न को नहीं अपना सकते हैं.
अपनी बात रखते हुए प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा ने कहा कि 12वीं की पढ़ाई कई सारे विश्वविद्यालयों और दूसरी अहम शिक्षा के लिए इंटरकनेक्टेड है. ज्यादातर विषय में प्रैक्टिकल होते हैं और बहुत सारे विषयों में इंटरनल एसेसमेंट के साथ-साथ प्रोजेक्ट की सुविधा है. डाटा एनालिसिस और डाटा प्रोजेक्शन के साथ कई तरीके के प्री बोर्ड परीक्षाएं भी होती हैं. बच्चों ने साल भर सभी विषयों की पढ़ाई की है और पीरियोडिक अर्ध सालाना परीक्षाएं और प्री बोर्ड परीक्षाएं भी बच्चे देते हैं. ऐसे में स्कूलों द्वारा इंटरनल एसेसमेंट, जिसमें प्रोजेक्ट और प्रैक्टिकल की सुविधाओं और उस डाटा के आधार पर एनालिसिस किया जा सकता है