‘भगत सिंह को अंग्रेज़ सल्तनत ने लाहौर में फाँसी दी. बाद में भगत के परिवार को उनका शरीर नहीं दिया. जंगलों में जाकर मिट्टी के तेल से भगत सिंह का शरीर जला दिया था. उस जगह एक स्मारक बना है. मैं जब वहां गया था, मैंने रोमांच का अनुभव किया था.’
2014 आम चुनावों से पहले से लेकर अब तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कई बार भगत सिंह को याद करते रहे हैं. भगत सिंह, जिन पर रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन का प्रभाव रहा. लेकिन भगत सिंह को प्रभावित करने वाले लेनिन त्रिपुरा में चुनाव जीती बीजेपी के कुछ समर्थकों को अखर रहे हैं.
त्रिपुरा में सोमवार को कई जगह हिंसक झड़पें हुईं. इन्हीं झड़पों के बीच ‘भारत माता की जय’ नारे लगाती भीड़ ने त्रिपुरा के बेलोनिया शहर के सेंटर ऑफ कॉलेज स्केवेयर में खड़ी लेनिन की प्रतिमा को जेसीबी मशीन से गिरा दिया. इस प्रतिमा को गिराने के जो वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं, उनमें प्रतिमा गिरने का जश्न मनाने वाले लोगों ने बीजेपी की टोपी पहनी हुई है.
बीजेपी से ताल्लुक रखने वाले एसजी सूर्या लिखते हैं, ”त्रिपुरा में बीजेपी ने सफलतापूर्वक लेनिन को गिरा दिया. तमिलनाडु में ईवी रामासामी की प्रतिमा गिरने का इंतज़ार नहीं कर सकता.”
कब बनी थी प्रतिमा?
ये वाकया त्रिपुरा में ऐसे वक्त पर हुआ है, जब लेफ्ट को हराकर बीजेपी को जीत हासिल किए महज़ 48 घंटे ही बीते थे. कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 2013 में जब लेफ्ट ने चुनाव जीते थे, तब इस प्रतिमा को लगाया गया था. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, 11.5 फुट फाइबर ग्लास की ये प्रतिमा स्थानीय कलाकर कृष्ण देबनाथ ने तीन लाख रुपयों में बनाई थी. सीपीआई (एम) के सत्ता में 21वां साल शुरू करते वक्त इस प्रतिमा को लगाया गया था.
लेनिन की प्रतिमा टूटने की चर्चा
@sidmtweets से लिखा गया, ”माफ कीजिए. अगर किसी रोज़ बीजेपी भी हारती है तो मैं दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा को गिराए जाने को सही नहीं ठहराऊंगा. जैसे आज लेनिन की प्रतिमा के साथ हुआ. मैं इन दोनों से कभी सहमत नहीं रहा. लेकिन ध्यान रखिए हम इराक या मध्य पूर्व में नहीं हैं.”
– राम ने ट्वीट किया, ”जिन वामपंथियों को सरदार पटेल की प्रतिमा से दिक्कत है, उन्होंने एक बड़ी सी लेनिन की प्रतिमा लगाई थी.”
लेनिन को लेकर क्या सोचते थे भगत सिंह?
ये विडंबना ही है कि लेनिन की प्रतिमा गिराने का जश्न बीजेपी मना रही है और मोदी लेनिन से प्रभावित रहे भगत सिंह का ज़िक्र आए दिन करते रहते हैं. आइए आपको बताते हैं कि लेनिन को भगत सिंह कितना मानते थे.
इसका एक ज़िक्र कुलदीप नैय्यर की किताब ‘द मार्टिर: भगत सिंह-एक्सपेरीमेंट्स इन रेवोल्यूशन’ में मिलता है. किताब के मुताबिक, ”21 जनवरी , 1930 को अभियुक्त अदालत में लाल स्कार्व पहनकर पहुंचे. जैसे ही मेजिस्ट्रेट कुर्सी पर बैठे, उन्होंने ‘लेनिन ज़िदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए. इसके बाद भगत सिंह ने एक टेलिग्राम पढ़ा जिसे वो लेनिन को भेजना चाहते थे. टेलिग्राम में लिखा था, ”लेनिन दिवस पर हम उन सभी लोगों को दिली अभिभादन भेजते हैं जो महान लेनिन के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं. हम रूस में चल रहे महान प्रयोग की कामयाबी की कामना करते हैं.”
भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे. मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे. उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब ‘रिवॉल्युशनरी लेनिन’ लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज़्यादा समय न बचा हो. पत्रकार ऑनिनदयो चक्रवर्ती ने ट्वीट किया, ”बीजेपी भगत सिंह का सम्मान करती है. लेकिन भगत सिंह लेनिन का सम्मान करते थे.”
साल 2013, 2014 में यूक्रेन में लेनिन की प्रतिमा गिराई गई थी. प्रतिमा गिराने का आरोप यूक्रेन के राष्ट्रवादियों पर था. दिल्ली के नेहरू पार्क में भी लेनिन की एक प्रतिमा है. इसके अलावा भारत के कुछ राज्यों में भी लेनिन की प्रतिमा है.