UP/Alive News : यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव का ‘विकास सूत्र’ फेल हो गया है. विकास के मामले में पीएम मोदी उन पर भारी पड़ गए हैं. लेकिन यूपी में समाजवादी पार्टी की हार क्या पीएम मोदी और बीजेपी की रणनीति की जीत है. या फिर अखिलेश यादव का अति आत्मविश्वास उनकी हार का सबब बना है.
मुलायम-शिवपाल को किनारे किया
कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है. 2014 में भी बीजेपी ने जब पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में बनाई तो यूपी ने 71 सांसद पार्टी को दिए. ऐसे में मोदी और अमित शाह ब्रिगेड को चुनौती देना उतना आसान नहीं था. बावजूद इसके अखिलेश यादव अपने दम पर यूपी के रणक्षेत्र में कूद गए. अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव को किनारे कर दिया. पार्टी पर खुद कब्जा कर लिया. मुलायम सिंह ने अपनी छोटी बहु अपर्णा यादव के अलावा किसी उम्मीदवार के लिए रैली नहीं की. शिवपाल यादव भी बस जसवंतनगर की अपनी सीट तक ही सीमित रहे. मुलायम-शिवपाल की जोड़ी वह जोड़ी है जिसने यूपी की सत्ता से कांग्रेस और बीजेपी को बाहर कर समाजवादी का परचम लहराया. लेकिन पूरे चुनाव में मुलायम-शिवपाल घर में बैठे रहे.
कांग्रेस गठबंधन बना मुसीबत
अखिलेश यादव ने परिवार की लड़ाई के बाद समाजवादी पार्टी पर अपना कब्जा कर लिया. अखिलेश ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के इरादे से राहुल गांधी के साथ जठजोड़ किया. गठबंधन के तहत कांग्रेस को 105 सीटें दी गईं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं में इस फैसले से गुस्सा पनपा. नतीजा ये रहा कि समाजवादी पार्टी में भितरघात की खबरें आईं.
डूबते जहाज का सहारा
इतना ही नहीं जब कांग्रेस को देश की राजनीति का डूबता जहाज माना जा रहा है. ऐसे में सपा का उसके साथ गठबंधन बड़ा हैरान करने वाला था. 27 सालों से यूपी में कांग्रेस की अपनी कोई जमीन नहीं बची. शिवपाल यादव ने सरेआम कांग्रेस के साथ गठबंधन पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जिस पार्टी की 4 सीटें जीतने की हैसियत नहीं , उसे 105 सीटें देना नुकसानदायक होगा.
पीएम पर वार का उल्टा असर
अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी रैलियों में पीएम मोदी को नोटबंदी, कालाधन वापस लाने जैसे मुद्दों पर घेरा. साथ ही गुजरात के गधों के प्रचार पर भी अखिलेश ने मोदी को घेरा. हालांकि मोदी ने गधे वाले बयान को अपने पाले में ले लिया और कहा कि वह देश सेवा में गधे की तरह लगे हुए हैं.
विकास के नाम पर था हाईवे
यूपी में सात चरणों में चुनाव पूरे हुए. करीब एक महीने तक चले चुनाव में अखिलेश ने 250 के आसपास रैलियां कीं. अखिलेश ने अपनी हर रैली में विकास के नाम पर वोट मांगा. लेकिन विकास के नाम पर अखिलेश के पास एक्सप्रेस वे के अलावा कोई खास मुद्दा नहीं रहा. जबकि बिजली और बिगड़ी कानून व्यवस्था सीधे तौर पर अखिलेश के खिलाफ बड़ा मुद्दा बना.
बंटा मुस्लिम वोट
बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ तौर पर यूपी के मु्स्लिम वोटरों से हाथी का साथी बनने की अपील की. मायावती ने मुसलमानों के बीच ये संदेश दिया कि यूपी में बीजेपी को रोकना है तो मुसलमानों को बसपा को वोट देना चाहिए. इसी रणनीति के चलते मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. हालांकि मायावती की सोशल इंजीनियरिंग उनके अपने काम भी नहीं आई. लेकिन इस दांव ने अखिलेश को जरूर किनारे लगा दिया है.
अखिलेश पर नहीं था मुलायम-शिवपाल को भरोसा
2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. पार्टी महज पांच सीटों पर सिमट गई. नतीजों के बाद मुलायम सिंह का भरोसा अखिलेश से उठ गया. दरअसल मुलायम सिंह ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर कहा कि लोकसभा चुनाव में अखिलेश के कहने पर टिकट बांटे गए और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. यही वजह थी चुनाव से पहले परिवार के बीच लंबी खींचतान चली. दरअसल मुलायम सिंह और शिवपाल नहीं चाहते थे कि टिकट बांटने का अधिकार अखिलेश को मिले. टिकट बांटने के अधिकार से जो झगड़ा शुरू हुआ वो आखिरकार अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर खत्म हुआ.