‘अलाइव न्यूज़ ‘ एक स्वतंत्र हिंदी-अंग्रेजी समाचार पत्र, मैगजीन, यूट्यूब चैनल और वेब पोर्टल है। इसे बीते वर्षों पहले आप ही लोगों में से निकले एक युवा पत्रकार साथी ने शुरू किया है। लेकिन शुरू शुरू में, मैं अकेला था और अब मेरे साथ मेरे जैसे युवा साथी पत्रकार ‘अलाइव न्यूज़‘ मीडिया के स्तम्भ हैं।
परन्तु हम में खास बात यह है कि ‘अलाइव न्यूज़‘ न तो पैसे लेकर सेवा देने वाला मीडिया प्लेटफॉर्म है न ही हम रटे-रटाए शब्द बोलकर अपना और अपनी संस्थान का काम निकालने वाले सेल्समैन हैं। ‘अलाइव न्यूज़‘ मीडिया इसलिए है क्योंकि इसमें काम करने वाले मुट्ठी भर लोग अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं।
‘अलाइव न्यूज़’ शुरु करने के बारे में मैंने मजबूरी में सोचना पड़ा। जैसी पत्रकारिता होनी चाहिए थी वैसी पत्रकारिता करने का समय अब कम से कम हिंदी पत्रकारिता में तो नहीं रहा। अब जो समय है उसी के अनुसार हम चुपचाप चलते रहें या फिर वहां हर रोज कुछ सार्थक करने का संघर्ष करें और एक बार जीतने और 10 बार हारने की कड़वाहट में अपना जीवन गंवा दें। समय को देखकर हमने खुद को और अच्छी पत्रकारिता के हमारे संकल्प को एक मौका देने के लिए एक नया रास्ता बनाने की ठान ली। आपको बता दूं कि वैसे तो मेरे पास एक विकल्प और था। मैं पत्रकारिता छोड़ दूं, बच्चे पालने के लिए किरयाणे या मिठाई की दुकान खोल लूं या फिर किसी दूसरे का लाइसेंस किराये पर लेकर दवाई की दुकान जमा लूं।
फिर बात आती है पत्रकारिता की तो पारंपरिक पत्रकारिता आज इतने धन की मांग करती है और इसमें लाभ की संभावनाएं इतनी कम हैं कि पूंजीपति लोग पत्रकारिता के व्यवसाय के लिए भी इसमें पैसा लगाने को तैयार नहीं, फिर अकेले पत्रकार को तो छोड़ ही दीजिए। इस व्यवसाय में करोड़ों का निवेश होता है। इसमें पूंजी सिर्फ कोई बड़ा कॉरपोरेट घराना, बड़ा राजनेता या दोनों मिलकर ही लगा सकते हैं। आजकल बड़े पूंजीपति ऐसा दिल खोलकर कर भी रहे हैं। पहले ऐसा नहीं था। कम से कम इस पैमाने पर तो बिलकुल नहीं था। पहले एक तो मीडिया हाउस बनाना बड़ी सरदर्दी का काम था और दूसरा इसमें मुनाफा तब भी उतना नहीं था। अब हजारों करोड़ के घोटाले हैं तो उनसे बचने के लिए 10-20-50-100 करो़ड़ का मीडिया हाउस खोलना ऐसे लोगों के लिए बड़ी बात नहीं बल्कि जरूरत बन गया है। सारदा घोटाले से जुड़े लोग इसका उदाहरण हैं। घोटालों से बचने के लिए न सही ‘बड़े लोग’ इसे प्रोपेगेंडा या अपने विरोधियों से निपटने के औजार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं या किसी राजनीतिक पार्टी को उपकृत कर अपना काम निकालने के लिए भी।
आपको बता दूं कि हम लोगों ने पिछली संस्था में अपना काम ठीक से किया था इसलिए एक नये प्रोजेक्ट के लिए आज के ‘परंपरागत’ तरीकों से पैसे जुटाना हमारे लिए भी मुश्किल नहीं था। लेकिन तब हम अपने इस मन के राजा कैसे होते, जो सही और बढ़िया पत्रकारिता करना चाहतें हैं। आज के समय में कलम से निकल कर इंटरनेट (सोशल मीडिया) पर होने वाली पत्रकारिता की जरूरत है जो हमने थोड़े कम पैसों में (हालांकि हमारे लिए यह भी बहुत से बहुत ज्यादा हैं) इस राह चलने की ठानी, इंटरनेट का सहारा लिया और एक अलग ही तरह की वेबसाइट, फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल बनाया। हमने इसमें कुछ अलग ही तरह के पत्रकारों को जोड़ा है।
हमारे पास संसाधन उतने नहीं हैं, खर्चे बहुत हैं, हिम्मत सामर्थ्य से कुछ ज्यादा है। लेकिन पाठकों की ऐसी पत्रकारिता को समझने की काबिलियत और उसे बढ़ावा देने की इच्छा में हमारा विश्वास ज्यादा अटूट है। अपनी किन्हीं गलतियों से हम टूट भी गए तो भी हमारा यह भरोसा अटूट ही रहने वाला है। हम यदि इस पत्रकारिता में बने रहे तो न जाने इस पत्रकारिता में कितनी चीजें बदलेंगे। लेकिन बने हम तभी रह सकते हैं जब देश का आप जैसा नागरिक भी ऐसा चाहें।
तिलक राज शर्मा
सम्पादक
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