April 30, 2024

पिता की सेवा के लिए एक बेटे ने छोड़ी सरकारी नौकरी

New Delhi/Alive News : राजस्थान के जोधपुर में अपने 57 साल के पिता की सेवा करने के लिए एक बेटे ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और घर के एक कमरे को ही आईसीयू बना दिया. एक चैनल के अनुसार दरअसल, 57 वर्षीय मदनलाल सेन मोटर न्यूरॉन बीमारी से ग्रसित हैं, ये वही बीमारी है जिससे भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग पीड़ित हैं. इस बीमारी में पूरा शरीर पैरालाइज्ड हो जाता है. व्यक्ति सिर्फ अपनी आंखों के जरिए ही इशारों में बात कर पाता है.

दो साल पहले तक सब ठीक था
एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, दो साल पहले तक मदनलाल सेन बिल्कुल स्वस्थ थे. एक दिन अचानक उनके दाहिने हाथ ने काम करना बंद कर दिया. हाथ धीरे-धीरे पतला होने लगा. मदनलाल के बेटे सुरेंद्र सेन और भुवनेश सेन उन्हें इलाज के लिए कोटा के राजस्थान आयुर्वेदिक थैरेपी दिलवाई. उन्हें वहां 20 दिनों तक रखा गया, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. उन्हें सास लेने में भी दिक्कत होने लगी.

रीढ़ की हड्डी के सैंपल से सामने आई बीमारी
मदनलाल को आगे के इलाज के लिए जोधपुर ले जाया गया. डॉक्टरों ने जांच के बाद उन्हें न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाने को कहा. बाद में न्यूरोलॉजी के डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने दिल्ली ले जाने के लिए कहा, लेकिन यहां भी कोई फायदा नहीं हुआ. बाद में बड़े बेटे सुरेंद्र सेन के पीजीआई चंडीगढ़ में पदस्थ एक परिचित ने उन्हें पिता को वहां लाने के लिए कहा. 5 दिन पीजीआई में उन्हें इमरजेंसी में रखा गया, जहां रीढ़ की हड्डी का सैंपल लेकर जांच की तो पता चला कि मदनलाल को एक रेयर बीमारी है जिसके मोटर न्यूरॉन कहा जाता है.

डॉक्टरों ने मदनलाल के बेटों को बताया कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. इसको शरीर में आगे बढ़ने से रोका जा सकता है. तीन महीने तक अस्पताल में रखने के बाद डॉक्टरों ने मदनलाल को घर ले जाने और एक महीने बाद दिखाने के लिए कहा.

रास्ते में बिगड़ी तबीयत
जोधपुर लौटते समय बीकानेर के पास आते ही मदनलाल की हालत बिगड़ गई. उन्हें वहीं के एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया. जहां वेंटिलेटर नहीं होने के कारण डॉक्टरों ने उन्हें जोधपुर मेडिकल कॉलेज रैफर कर दिया. बाद में मदनलाल को एंबुलेंस के जरिए एमडीएम अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें सीधे ट्रॉमा के आईसीयू में वेंटिलेटर पर भर्ती किया गया. पांच महीने तक वे इसी हाल में रहे. बाद में डॉक्टरों ने सुरेंद्र सेन को अपने पिता को घर ले जाने के लिए कह दिया.

घर पर बनाया आईसीयू
पिता की घर पर भी अस्पताल जैसी देखभाल हो इसके लिए सुरेंद्र और भुवनेश सेन ने घर के एक कमरे को ही आईसीयू बना दिया. यहां हर वो सुविधा उपलब्ध है जो किसी अस्पताल के आईसीयू में होती है. इसमें उनकी एक डॉक्टर ने भी मदद की, जिन्होंने एक नर्सिंग स्टाफ को मदनलाल की देखरेख की ड्यूटी पर लगाया. वो सुबह शाम आकर मदनलाल को देखता है. उन्हें एक डॉक्टर फिजियोथैरेपी भी देता है.

पिता के खातिर सब मंजूर
सुरेंद्र और भुवनेश सेन कहते हैं कि अपने पिता की देखभाल के लिए उन्हें जो भी करना पड़े वे करेंगे. सुरेंद्र ने पिता के खातिर अपनी हाईकोर्ट में लगी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी. वे दिनभर पिता के पास ही रहते हैं. वहीं भुवनेश नौकरी से लौटने के बाद पिता का ध्यान रखते हैं.

इलाज के खर्चे के कारण उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो गई है. लेकिन दोनों बेटों का कहना है कि चाहे जो हो जाए वे अपने पिता के इलाज और सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.