क्लाइमेक्स पर आकर नोटबंदी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर की गई फिल्म के नायक की टिप्पणी बहुत ही आपत्तिजनक है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की तरफ से फिल्म देखने वालों को ये फिल्म समझ में ही नहीं आयी। हिंदी सिनेमा की कॉरपोरेट दुनिया का अगला नमूना है फिल्म ‘कुत्ते’।
एक निर्माता किसी तरह सितारे जोड़कर फिल्म बना लेता है। दूसरा निर्माता आकर मिडिलमैन बन जाता है। दोनों मिलकर किसी ऐसी कंपनी के पास पहुंचते हैं जिसके पास ओटीटी और सैटेलाइट चैनलों की तरफ से कंबल ओढ़ाकर ली गई मंजूरी (ब्लैनकेट अप्रूवल) पहले से है।
फिल्म में जो पैसा लगा, वह बस इन दो अधिकारों को बेचकर आ गया। अब क्या फिल्म का प्रचार और क्या इसका प्रसार! न मुंबई में फिल्म ‘कुत्ते’ के कलाकारों को रिलीज से पहले मीडिया से मिलाने का जतन हुआ और न उनको दिल्ली ले जाने की योजना सिरे चढ़ी।
इन दिनों निर्माताओं का दिमाग अच्छी कहानी तलाशने में नहीं, बल्कि फिल्म की रिलीज से पहले प्रचार पर होने वाले खर्च को घटाने में लग रहा है। हां, फिल्म के संगीत की एक महफिल जरूर मुंबई में जमी जिसमें इस फिल्म के लिए ‘आवारा डॉग्स’ लिखने वाले गुलजार ने इस तरह के गाने लिखे जाने पर अपनी ये सफाई दी। ’फिल्म ‘कुत्ते’ नए साल के दूसरे शुक्रवार को रिलीज हुई दो हिंदी फिल्मों में पहले नंबर पर मानी जा रही थी। दो स्टार पाकर भी ये पहले नंबर पर ही है क्योंकि इसके साथ रिलीज हुई फिल्म ‘लकड़बग्घा’ इतनी खराब फिल्म निकली कि उसकी रेटिंग और नीचे चली गई है। ए श्रीकर प्रसाद ने फिल्म को दो घंटे से कम का रखा है, ये भी उनका एक तरह का एहसान ही है।