मृदुलिका झा
हिंदुस्तान से कुछ 3 हजार किलोमीटर की दूरी पर एक देश है ईरान। अक्सर तेल को लेकर चर्चाओं में रहते इस मुल्क में बीते सालों में भयंकर सूखा पड़ा। ईरानी नदियों समेत झीलें भी ऐसी सूखीं, जैसे गरीब का लॉकर। प्यास से अकुलाते लोगों के लिए वहां की सरकार ने जो भी किया हो, लेकिन असल सहारा धर्मगुरुओं ने दिया। सैयद युसुफ तबातबी (Seyyed Youssef Tabatabi) नाम के मजहबी गुरु ने फारसी में एक ट्वीट किया।
वे सूखी नदी किनारे बैठी-बतियाती औरतों पर बेहद-बेहद गुस्सा थे। गुरुजी कहते हैं- पश्चिमी कपड़े पहनी औरतें बड़ी खतरनाक होती हैं। वे नदी के करीब जाएं तो नदियां सूख जाती हैं। उनके कपड़ों से जमीन का दिल भी ऐसे डोलता है कि भूकंप आ जाए।
ये बात है साल 2014 की। धर्मगुरु के चेताने के बाद भी खिलंदड़ औरतों पर कोई एक्शन नहीं हुआ। नतीजा ये रहा कि वे घुटनों तक फ्रॉक और खुले कंधे लिए इठलाती हुई नदियों की सैर करती रहीं और पानी सूखता रहा। खारे पानी की झीलों के किनारे नमक की पपड़ियां जमती रहीं। अब शर्म से फटी जमीन वाले इस देश से बहुत से लोग यहां-वहां पलायन कर रहे हैं। बस, औरतें ढीठ की ढीठ बनी हुई खुशरंग, हवादार कपड़े पहन रही हैं और सैर-सपाटा कर रही हैं।
ईरान बे-सबक रहा, लेकिन जापान तेज-तर्रारों का देश है- दूसरों की भूल से सीखने वाला। औरतें हद में रहें, इसके लिए उसने समय रहते ही बड़ा फैसला कर लिया। अब जापान के स्कूलों में लड़कियां पोनीटेल (एक किस्म की चोटी) नहीं कर सकेंगी। वजह? इससे तनी हुई गर्दन दिखती है, जिससे लड़कों का दिल डोल सकता है।
ये वो खतरा है, जो डोलती हुई धरती से भी भयानक है। डोले हुए मन के लड़के पढ़ाई छोड़ देंगे, काम भूल जाएंगे और या तो रेप करेंगे या कमजोर दिल हों तब प्रेम! तो परमाणु-विस्फोट झेल चुके इस देश ने फटाफट पोनीटेल पर बैन लगा दिया। अश्लील हरकतों पर नहीं, अश्लील भाव जगाने वाली हेयर-स्टाइल पर।
बुलेट ट्रेन वाले इस देश में लड़कियों के बालों और भौंहों के लिए भी नियम हैं। कमानीदार भौंहों से मर्द उत्तेजित हो सकते हैं और छोटी स्कर्ट के खतरों पर तो बात ही क्या की जाए। नाग का डसा भी शायद बच जाए, लेकिन लड़की के घुटनों से ऊपर फहराते कपड़ों पर नजर डाल चुके पुरुष का कोई इलाज नहीं।
इस डर की सुगबुगाहट जापान से होती हुए पाकिस्तान पहुंच गई। कुछ ही महीने पहले वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक संवेदनशील बयान दिया। मियां साहब फरमाते हैं, ‘अगर कोई महिला कम कपड़े पहने होगी तो इसका असर पुरुषों पर होगा ही, जब तक कि वे रोबोट न हों। ये एक बहुत सामान्य बात है।’ तो खुद को रोबोट की बजाए जीता-जागता मर्द साबित करने के लिए पाकिस्तानी पुरुष दिल खोलकर रेप कर रहे हैं।
पाकिस्तान के सरकारी डेटा के मुताबिक बीते 5 सालों में 22 हजार रिकॉर्डेड रेप केसेज में से सिर्फ 77 लोगों को सजा मिली। बाकियों को सजा न मिलने के पीछे शायद वजह हो कि लड़कियों ने घुटनों से ऊपर फ्रॉक पहन रखी होगी, होंठों पर गहरी लिपस्टिक होगी या बाल खुले छोड़ रखे होंगे या फिर हंस-हंसकर पास आने का ‘इनविटेशन’ दे रही होगी।
अब औरतें बेचारी खुद तो पहल करने से रहीं, तो मर्दों को ही उनका सिग्नल समझना पड़ता है। ये और बात है कि सिग्नल समझकर पास आए मर्दों से कभी-कभार थोड़ी ज्यादती हो जाती है। रेप या छेड़छाड़ से बचना है तो मिर्च पावडर या चाकू न रखो मूर्ख लड़कियों! इसकी बजाए शर्म पहनकर चलो। शर्म वो चादर है, जिसके आगे पड़ते ही मर्दों की नजर झुक जाती है।
औरतों को शर्म का सबक देने के भी खूब जतन हुए। ईसा पूर्व चौथी सदी में कई ग्रीक शहरों ने बेलगाम स्त्रियों को साधने के लिए एक नियम बनाया। बड़े शहरों के कुछ जज इकट्ठा हुए और देखने लगे कि औरतें अनाप-शनाप पहनकर न निकल सकें। इन जजों को कंट्रोलर ऑफ वुमन कहा गया।
ये सभी मर्द थे और बाजार जाती, बाग घूमती, पति की बांहों में झूलती इन तमाम स्त्रियों पर नजर रखने लगे। मर्दों की छोटी-छोटी टुकड़ियां यहां-वहां तैनात कर दी गईं। ये टुकड़ियां दिनभर जासूसों की तरह औरतों के कपड़े देखतीं और शाम ढले सारी रिपोर्ट जजों तक पहुंचातीं। नियम तोड़ने वाली युवतियों को मोटा जुर्माना देना होता, साथ ही कपड़े भी जब्त कर लिए जाते ताकि दोबारा वे ऐसी भूल न करें।
उसी दौर में रोमन औरतों के पास थोड़ी छूट थी, लेकिन इतनी ही, जितने से वे भ्रम में जी सकें। 215 ईसा पूर्व वहां Lex Oppia नाम से एक कानून बना। ये कोड़े की मार पर पक्का करता था कि किस दर्जे की औरत सोने के कितने हार या चूड़ियां पहन सकती है। इस कायदे के ढेरों फायदे थे। औरतों को बांटा जा सकता था। एक फायदा ये भी था कि खाली बैठकर पति या पिता के पैसे उड़ाती मुफ्तखोर स्त्री पर लगाम कसी जा सकती थी।
कुछ सैकड़ा सालों तक सब कुछ नियम के मुताबिक चला, फिर औरतों के भीतर इंकलाब उबलने लगा। अमीर आपा कहने लगीं कि सोने की चेन पहनने से उन्हें खुजली होती है तो अब वे बगैर गहनों के चलेंगी। इधर गरीबन कहने लगीं कि जब शौक है तो हम भला नंगे-बुच्चे गले के साथ क्यों जिएं! हम तो नौलखा ही पहनेंगे। जिद इतनी बढ़ी कि अमीर-गरीब, मालिक-गुलाम, जवान-उम्रदराज, सारी की सारी औरतें चौक पर जमा हो गईं।
रोमन इतिहासकार टाइटस लिविअस ने अपनी किताब Ab urbe condita में इस घटना को लिखा है। वे मर्दों के किलों को घेरने लगीं। अपनी पतली आवाज में बेढब नारे लगाने लगीं। काम रुक गया। घर लौटते मर्द ठहर गए- जब बीवियां आंदोलन करेंगी तो घर पर चाय कौन पिलाएगा! सब की सब Lex Oppia को हटाने की मांग कर रही थीं। आखिरकार 195 ईसा पूर्व कपड़े-गहनों का ये नियम हट गया।