November 23, 2024

नगर निगम में शामिल करीब दो दर्जन गांव को वापिस पंचायत में शामिल करने की उठने लगी मांग

Faridabad/Alive News : फरीदाबाद नगर निगम के अंतर्गत आने वाले लगभग तीन दर्जन गांवों को देखकर लगता है कि इनको अब फरीदाबाद नगर निगम से निकालकर पंचायती राज संस्थाओं में शामिल कर देना चाहिए, ताकि उन में दोबारा से पंचायते सरपंच के नेतृत्व में विकास कार्य हो सके। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि इन गांवों की अनदेखी फरीदाबाद नगर निगम की ओर से निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

अब अनखीर गांव को ही लें जो कि सेक्टर- 21डी के सामने स्थित है और लगभग 800 वर्ष पूर्व मुगल काल से बसा हुआ गांव है जिसमें कि सन 1978 में पंचायत सिस्टम समाप्त करके तत्कालीन फरीदाबाद मिश्रित प्रशासन में शामिल कर दिया था और इसके पश्चात सन 1994 में जब फरीदाबाद नगर निगम बना तो इसको वार्ड नंबर 13 में शामिल किया गया। लेकिन बढ़ती आबादी, कॉलोनियों के विस्तार और बदले परिसीमन के कारण गांव अब वार्ड 18 में है। बीते लगभग 43 वर्षों में जो दुर्दशा और अनदेखी इस गांव की फरीदाबाद नगर निगम की तरफ से हुई है उसको देख कर तो लगता है कि अन्य लगभग तीन दर्जन गांव जैसे कि अजरौंदा, दौलताबाद, अनंगपुर, लकडपुर, भाकरी, नवादाकोह, फतेहपुर चंदीला, बड़खल, सीही, सारन, मुजेसर, झाड़सेतली, ऊंचा गांव, मवई, वजीरपुर, पल्ला, सेहतपुर, इस्माइलपुर, अगवानपुर, सराय ख्वाजा व बसंतपुर मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है।

यह सारी समस्याएं नगर निगम के उच्च अधिकारियों को मालूम होने के बावजूद अधिकारी इन गांवों में बसने वाले लोगों को जानवर, अनपढ़, पिछड़े हुए और दब्बू समझते हैं। इन गांवों में किसी भी प्रकार का विकास कार्य करवाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है और ऐसा ही संबंधित पार्षदगण भी समझते हैं और कोई भी रुचि इन गांवों के विकास कार्य में नहीं लेते हैं। अनखीर गांव में जो दुर्दशा है उसका वर्णन कुछ इस तरह है गांव की सभी गलियां जर्जर हालत में पड़ी हुई है। यहां पर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने ग्रामीण विकास निधि के अंतर्गत लगभग एक करोड रुपए की लागत से 2005 में सीवरेज लाइन डाल दी थी, जोकि आज तक शुरू नहीं हुई है।

इस गांव की नालियां लगभग 40 साल पहले 1981 में बनाई गई थी। जिनकी आज तक मरम्मत ही नहीं हुई है और गंदा पानी ओवरफलो होकर सड़कों पर ही फैलता रहता है। यहां का स्कूल जो कभी राजकीय प्राथमिक पाठशाला होती थी। धीरे-धीरे मिडिल स्कूल, हाई स्कूल और फिर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के रूप में वर्तमान में है। लेकिन यहां पर सभी कमरों की जर्जर हालत है और पता नहीं किस तरह से विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करते होंगे। गांव के जोहड़ की जमीन भी ग्रामीणों ने स्कूल को ही दे दी थी। इस बात को भी लगभग 20 वर्ष हो गए हैं लेकिन न तो इस जोहड़ की कोई अर्थ फिलिंग की गई ना ही यहां पर किसी प्रकार का निर्माण करके कोई सामुदायिक भवन, बारात घर या पार्क इत्यादि कुछ भी नहीं बनाया गया।

इसी प्रकार गांव में न कोई सरकारी बैंक, न पोस्ट ऑफिस, न स्वास्थ्य केंद्र है और न ही अन्य किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध है। लोग पाषाण काल की तरह ही आज भी अपना जीवन जीने को मजबूर हैं। एक तरफ जहां प्रशासन ने केंद्र सरकार से जिले के लिए ओडीएफ का सर्टिफिकेट झपट लिया है। वही दूसरी तरफ यहां के लोग सीवरेज सिस्टम ना होने की परेशानी के चलते या तो खुले में शौच जाने को मजबूर हैं या छोटा सा शौचालय बनाकर के नालियों में खुले में ही गंदगी को बहाने को विवश हैं। फिर जिला प्रशासन का यह कैसा ओडीएफ सर्टिफ़िकेट है। कोई भी एजेंसी या समाजसेवी संस्था यहां विजिट करके अपनी तसल्ली कर सकती है। इस मामले में तो जिला प्रशासन ने देश के प्रधानमंत्री की आंखों में भी धूल झोंकने का काम किया है।

इन मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के अलावा अगर पेयजल आपूर्ति की तरफ ध्यान दिया जाए तो आजकल इस भीषण गर्मी के मौसम में नगर निगम के लगभग एक दर्जन ट्यूबवेल यहां पर ठप हो चुके हैं और हर घर में रोजाना 700 की लागत से प्राइवेट टैंकर मंगवाना पड़ता है और लोग अपने बच्चों का पेट काटकर टैंकर का पानी खरीदने को मजबूर है, ताकि जरूरी काम निपटा सकें। ग्रामीणों का कहना है कि पेट में तो भोजन कम भी खा लेंगे, लेकिन कोरोना आपदा के समय में सफाई रखना बेहद जरुरी है। इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि जिला प्रशासन इन सभी लगभग तीन दर्जन गांवों सहित अनखीर गांव को भी उनका पंचायती राज सिस्टम लौटा कर दे, ताकि सरपंच के अधीन काम हो मेंबर भी काम करें और विकास की बयार एक बार फिर बह सकें।