New Delhi/Alive News: दुनियाभर में शरणार्थियों के साहस और शक्ति को सम्मानित करने के लिए हर साल 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र इस दिन को उन शरणार्थियों को सम्मानित करने के लिए मनाता है। जिन्हें उनके घरों से बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया। संयुक्त राष्ट्र की ओर से ये दिन इसलिए मनाया जाता है ताकि नए देशों में शरणार्थियों के लिए समझ और सहानुभूति का निर्माण किया जा सके।
दरअसल, शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 के अंत तक 8.24 करोड़ लोग जबरन विस्थापित किए गए। इन लोगों के विस्थापन के पीछे उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा, मानवाधिकारों का उल्लंघन या सार्वजनिक व्यवस्थाओं को गंभीर रूप से परेशान करने वाली घटनाएं शामिल हैं। मौजूदा समय में तुर्की में 36 लाख लोग रिफ्यूजी हैं, इसके बाद कोलंबिया में 18 लाख लोग रिफ्यूजी के तौर पर रह रहे हैं।
वर्ल्ड रिफ्यूजी डे का इतिहास और महत्व
सबसे पहले वर्ल्ड रिफ्यूजी डे 20 जून, 2001 के दिन मनाया गया था। 1951 के रिफ्यूजी समझौते की 50वीं वर्षगांठ पर इस दिन का जश्न मनाया गया था। विश्व शरणार्थी दिवस इसलिए मनाया जाता है ताकि इन लोगों को विश्व में पहचान मिल सके और इनकी मदद के लिए राजनैतिक इच्छा जाग सके, ताकि ये लोग दूसरे देशों में जाकर खुद के जीवन को दोबारा बना सके। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के तौर पर चिन्हित किया।
इस साल रिफ्यूजी डे का थीम
इस साल विश्व शरणार्थी दिवस का थीम ‘टूगैदर वी हील, लर्न एंड शाइन’ (साथ में स्वस्थ रहना, सीखना और चमकना) है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि कोरोना महामारी ने हमें सिखा दिया है कि साथ रहकर ही हम कोई भी लड़ाई जीत सकते हैं। यूएनएचआरसी के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हर मिनट औसतन 20 लोग हिंसा, युद्ध, आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं और अन्य कारणों से घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर हो जाते हैं।
जानकारी के मुताबिक भारत में कुल तीन लाख शरणार्थी रहते हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रोहिंग्या मुसलमान हैं। देश में करीब 40,000 रोहिंग्या हैं, जिनमें से 14,000 को ही शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है और बाकी लोगों को सरकार अवैध घुसपैठिया मानती है।