November 23, 2024

जानिए गिलोटिन क्या है, जो लोकसभा में बना सरकार का ब्रह्मास्त्र

New Delhi/Alive News : यूं तो विपक्ष संसद को अवरोध करना अपना हक मानता है, ऐसा कई बार हुआ है की पूरे पूरे सेशन निकल गये हों और कोई भी बिल ना पास हो पाया हो विपक्ष के हल्ले गुल्ले में। लेकिन 14 मार्च 2018, जब उत्तर प्रदेश व बिहार उपचुनाव के नतीजे घोषित हो रहे थे, जनता मीडिया द्वारा अखिलेश-माया-मोदी नाम के पकौड़े तलके खा रही थी, संसद में वो हो रहा था जिसकी शायद किसी को कल्पना ना हो।

पिछले आठ दिन में जब विपक्ष ने नीरव मोदी स्कैम, आन्ध्र प्रदेश को खास राज्य का दर्जा, और स्टैचू राजनीति पर बवाल मचा रखी थी। एक भी बिल पास नहीं हो पाया था, आखिरी दिन ऐसा क्या घटित हुआ जो लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने आधे घंटे के भीतर 99 मंत्रालयों और विभागों की वित्त मांगें, 2 बिल और 218 संशोधन पास कर दिए वो भी बिना किसी चर्चा या बहस के।

वो दैवीय शक्ति जिससे बिना चर्चा के हो जाता है बिल/संशोधन पास: गिलोटिन
दरअसल लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने जिस संसदीय प्रक्रिया का इस्तेमाल किया उसका नाम है गिलोटिन(नाम से यह किसी एलोपैथिक दवाई का नाम लगता है) जो संसद में बिना बहस के अनुदान देने की ताकत देता है। लेकिन जो मांगें सरकार ने पारित की हैं उन्हें सुनकर आपको शक ज़रूर होगा कि ऐसा उन्होंने क्यूं किया, वो मांगें हैं:

– राजनीतिक दलों को मिल रहे विदेशी चंदे को किसी भी कानूनी जांच से बाहर करना एवं न्यायायिक संरक्षण प्रदान करना और वो भी 42 वर्षों के पूर्वव्यापी प्रभाव से। यानी कि 1976 के बाद किसी भी पार्टी को मिले विदेशी चंदे की जांच अब नहीं हो पाएगी। (जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा बीजेपी और कोंग्रेस को दोषी पाए जाने के फैसले को रद्द करना भी शामिल है)।

– सांसदों, राष्ट्रपति और राज्य गवर्नरों की सैलरी बढ़ोत्तरी (यह कानून अपने स्वयं के वेतन में वृद्धि करने के लिए पारित कर दिया गया)

इसके अलावा अनुमोदन विधेयक, 2018 और विवादास्पद वित्त विधेयक 2018

स्पीकर ने गिलोटिन कैसे लागू किया
पहले जानते हैं अनुदान की मांग किसे कहते हैं-
अनुदान की मांग व्यक्तिगत मंत्रालय के बजट हैं, जिसे संसद में जांचा जाता है और उसके बारे में विचार भी देना होता है। चूंकि सरकार के पास 51 मंत्रालय हैं और उन सभी पर चर्चा करना असंभव है, आम तौर पर संसद चार से पांच मंत्रालयों पर विस्तृत चर्चा करने के लिए उठती है।

इस वर्ष रेल मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण तथा सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण को उठाया जाना था। अब सवाल उठता है कि ये ही मंत्रालय क्यूं? क्यूंकि 2017 में, पूरे भारत में एक दशक में सबसे अधिक ट्रेन पटरी से उतरने का रिकॉर्ड बना है और कृषि संकट की वजह से भी कई राज्यों के किसानों ने विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इन मंत्रालयों पर कुछ घंटों की संक्षिप्त चर्चा के बाद शेष मंत्रालय की मांगों को एकजुट कर एक साथ पारित किया जाना था। यह 5 बजे होने वाला था, लेकिन इसे सूची में सुबह 12 बजे स्थानांतरित किया गया।

लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा, अनुदान की मांगों पर चर्चा के लिए निर्धारित अवधि के अंतिम दिन गिलोटिन लागू किया जा सकता है। ऐसा करने में, सभी बकाया मांग पहले से ही निर्दिष्ट समय पर वोट देने के लिए दी जाती है। लेकिन इसका उद्देश्य क्या है:

एक बार गिलोटिन लागू होने हो गया तो निर्धारित समय के अंदर वित्तीय प्रस्तावों पर चर्चा समाप्त करने के लिए, अनुदान की सभी बकाया मांगों पर सदन द्वारा बिना चर्चा के मतदान होना चाहिए।

पहली बार नहीं हुआ गिलोटिन का प्रयोग
हालांकि ऐसा नहीं हैं की यह पहली बार हुआ। अनुदान के लिए मांग की एक बड़ी संख्या हर साल गिलोटिन के तहत बिना किसी चर्चा के पारित हो जाती है, लेकिन संसद में चर्चा के बिना “सभी अनुदान” को पास कर देना दुर्लभ है। पिछले 18 सालों में गिलोटिन को एनडीए की पिछली सरकार द्वारा 2004 में और यूपीए सरकार द्वारा 2013 द्वारा इस्तेमाल किया गया था।

सरकार ने किए अपने कान बंद और दनादन किये संशोधन-बिल पास
अनुदान की सभी मांगों को पारित करने के बाद, स्पीकर सुमित्रा महाजन ने वॉयस वोट के साथ दो वित्त बिलों का विमोचन किया – अनुमोदन विधेयक, 2018 और विवादास्पद वित्त विधेयक 2018

लोकसभा में वित्त बिल पेश किया जा सकता है, संशोधित किया जा सकता है और मतदान किया जा सकता है। इसके बाद इसे राज्यसभा (संसद के ऊपरी सदन) को भेजा जाता है, जो इसे 14 दिनों से अधिक तक होल्ड नहीं कर सकता है।

लेकिन संसद में उस दिन बवाल मचा हुआ था। केवल चार मिनट में 51 मंत्रालयों के लिए अनुदान की मांग को मंज़ूरी दे दी गई। इस प्रक्रिया में आम तौर पर सप्ताह का समय लगता है क्योंकि प्रत्येक चयनित मंत्रालय की मांग पर चर्चा करने के लिए दो से तीन घंटे दिए जाते हैं। विपक्ष के सांसद हल्ला मचाते रहे,”लोकतंत्र की हत्या बंद करो, बंद करो” लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। वो बजट के मुद्दे जिनकी चर्चा होनी बाकी थी वो इस प्रकार से थे:

– राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आवंटन में 2.1% की कमी

– एचआरडी के वित्त अनुदान में 0.23% की कमी जो 2014-15 के बाद से सबसे कम है

– स्वच्छ भारत योजना के आवंटन में 7% कटौती

– बाल स्वास्थ्य खर्च में 30% कटौती

– ग्रामीण गरीबों के लिए किफायती घर में 9% कटौती

अनुदान की मांग को मंज़ूरी के बाद, संसद ने स्वीकृति बिल, 2018 को भी वॉयस बिल के माध्यम से पारित किया। बजटीय अनुमान स्वीकृत होने के बाद हर साल इस विधेयक को पारित किया जाता है। यह एक विधेयक है जो सरकार को consolidated funds of India (सीएफआई) से पैसा वापस लेने के लिए अधिकृत करता है। सीएफआई वो फण्ड है जहां करदाता का पैसा जाता है और सरकार को इससे पैसा निकालने के लिए संसद से अनुमति लेनी होती है।

संवाद खत्म होना, लोकतंत्र में खतरे की घंटी है
बजट को पारित करना संसद के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक माना जाता है क्यूंकि यह 1.32 अरब लोगों के हमारे विशाल देश की सरकार के वित्त से संबंधित है।

संसद की मौजूदगी का संपूर्ण कारण यह भी है कि वह सत्ता में सरकार द्वारा खर्च किए गए टैक्स के पैसे की नज़र रख सके और वित्तीय खर्चों पर चर्चा कर सकें। लेकिन 14 मार्च को जो हुआ वह ठीक उसके विपरीत था। और ऐसी बातें हमारे देश के बजट के बारे में, विचार-विमर्श या चर्चा की एक झलक देती है कि किस तरह लोकतंत्र में चर्चा और बहस को खत्म किया जा रहा है।

इसका एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि विपक्षी सांसद पिछले आठ दिनों से ससंद में बाधा पहुंचा रहे हैं, हल्ला कर रहे हैं और शायद इसलिए सरकार को बिना चर्चा के बजट पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन सरकार की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह विपक्ष के साथ संवाद स्थापित करे, बजट पर चर्चा करे, उनकी मांगों को सुने और उनको साथ लेकर देश के बजट को सामूहिक रूप से पास कराये, वरना देश में लोकतंत्र की ज़रूरत ही क्या है?

संसद और उसके अंदर बैठे लोगों को हमारे देश के लोगों का प्रतिबिंब माना जाता है। लेकिन जो कुछ 14 मार्च 2018 को हुआ, उस दर्पण को देखकर, मैं कहूंगा कि…… भारत हम शर्मिंदा हैं(आगे नहीं बोलूंगा, बोला तो एंटी नेशनल ना घोषित हो जाऊं)।