December 24, 2024

ढाई हजार लोगों के लिए है केबल एक नर्स

New Delhi/Alive News : जिस देश में अस्पताल में भर्ती होने का ही आधी बीमारी से राहत मान लिया जाता हो. जिस देश में डाक्टर बाबू एक बार नब्ज देख लें तो ही आधी बीमारी खत्म हो जाती हो, जिस देश में अस्पताल की चौखट पर मौत मिल जाए तो परिजन खुश रहते हैं कि चलो अस्पताल तक तो पहुंचा दिया. उस देश का अनूठा सच सरकारी आंकड़ों से ही समझ लीजिए. एक हजार मरीजों पर न तो एक डॉक्टर न ही एक बेड है. वहीं, ढाई हजार लोगों पर एक नर्स है.

इलाज किसी देश में कमाई का जरिया बन चुका है तो वह भारत ही है. देश में सरकारी अस्पताल की तादाद 19817 है. वहीं, प्राइवेट अस्पतालों की तादाद 80,671 है. यानी इलाज के लिए समूचा देश ही प्राइवेट अस्पतालों पर टिका हुआ है. ये सिर्फ बड़े अस्पतालों की तादाद भर से ही नहीं समझा जा सकता. बल्कि साढ़े छह लाख गांव वाले देश में सरकारी प्राइमरी हेल्थ सेंटर और कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की संख्या सिर्फ 29635 है. जबकि निजी हेल्थ सेंटरों की तादाद करीब दो लाख से ज्यादा है.

दरअसल जनता को इलाज चाहिए और सरकार इलाज देने की स्थिति में नहीं है. या कहें इलाज के लिए सरकार ने सबकुछ निजी हाथों में सौंप दिया है. लेकिन सवाल है कि सरकार इलाज के लिये नागरिकों पर खर्च करती कितना है? तो सरकार प्रति महीने प्रति व्यक्ति पर 92 रुपये 33 पैसे खर्च करती है.

हालात सिर्फ इस मायने में गंभीर नहीं कि सरकार बेहद कम खर्च करती है. हालात इस मायने में त्रासदी दायक है कि किसी की जिंदगी किसी की कमाई है. 2018-19 में देश का हेल्थ बजट 52 हजार करोड़ का है, तो प्राइवेट हेल्थ केयर का बजट करीब 7 लाख करोड़ का हो चला है.

मुश्किल तो ये भी है कि अब डॉक्टरों को भी सरकारी सिस्टम पर भरोसा नहीं है. क्योंकि देश में 90 फीसदी डॉक्टर प्राइवेट अस्पतालों में काम करते हैं. इंडियन मेडिकल काउंसिल के मुताबिक देश में कुल 10,22,859 रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टर हैं. इनमें से सिर्फ 1,13,328 डॉक्टर ही सरकारी अस्पतालों में हैं.

यानी सरकारी सिस्टम बीमार कर दे और इलाज के लिये प्राइवेट अस्पताल आपकी जेब के मुताबिक जिंदा रखें, तो बिना शर्म के ये तो कहना ही पड़ेगा कि सरकार जिम्मेदारी मुक्त है और प्राइवेट हेल्थ सर्विस के लिए इलाज भी मुनाफा है और मौत भी मुनाफा है.