दुर्गा पूजा को उत्तर भारत में नवरात्रि के रूप में, तमिलनाडु में बोमाई गोलू और आन्ध्र प्रदेश में बोमाला कोलुवू के रूप में भी मनाया जाता है. 9 दिन मां की अराधाना, फिर 10वें दिन मानाया जाने वाला दशहरा इस पूरे त्योहार को खास बनाता है. बच्चों से लेकर बुजुर्गों को मां शक्ति के आगमन का बेसब्री से इंतज़ार होता है.
10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को मां की अराधना के साथ साथ ये 10 चीज़ें खास बनाती हैं…
पंडाल
दुर्गा पूजा का सबसे बड़ा आकर्षण होता है मां दुर्गा का पंडाल. यहां मां शक्ति की प्रतिमा विधि-विधान से स्थापित की जाती है और पूरे 9 दिन तक पूजा-अर्चना होती है. मां का पट सप्तमी यानी सातवें दिन खुलता है जिसके बाद लोग इन पंडालों में मां के दर्शन करने आते हैं. न केवल मूर्ति बल्कि पंडाल के डिजाइन भी चर्चा का विषय होते हैं. कई पूजा समितियां तो बाकायदा बाहर के कारीगरों को बुलाकर एक से बढ़कर एक विषयों पर पंडाल तैयार कराती हैं.
भोग
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों को अलग-अलग भोग चढ़ाया जाता है. पूजा के बाद प्रसाद के रूप में इसे बांटा जाता है. कई पूजा समितियां बड़े पैमाने पर भोग वितरित करती हैं. घरों में भी लोग मां को घी, गुड़, नारियल, मालपुआ का भोग चढ़ाते हैं. इसके अलावा जो लोग व्रत करते हैं वे भी फलाहार के रूप में मखाना का खीर, घुघनी, संघाड़े के आटे का हलवा, शर्बत वगैरह फलाहार के रूप में लेते हैं और घर के बाकी सदस्यों को बांटते हैं.
धुनुची डांस
दुर्गा पूजा में धुनुची नृत्य खास है. धुनुची एक प्रकार का मिट्टी से बना बर्तन होता है जिसमें नारियल के छिलके जलाकर मां की आरती की जाती है. लोग दोनों हाथों में धुनुची लेकर, शरीर को बैलेंस करते हुए, नृत्य करते हैं. मान्यता है कि इन 9 दिनों के लिए मां अपने मायके आती हैं. इसलिए उनके आने की खुशी में वातावरण को शुद्ध करने और खुशनुमा बनाने के लिए धुनुची डांस किया जाता है.
गरबा/डांडिया
नवरात्रि के पहले दिन गरबा-मिट्टी के घड़े जिन्हे फूल-पत्तियों और रंगीन कपड़ों, सितारों से सजाया जाता है- की स्थापना होती है. फिर उसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हैं और महिलाएं उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं। कई जगहों पर मां दुर्गा की आरती से पहले गरबा नृत्य किया जाता है. वहीं आरती के बाद लोग डांडिसा डांस भी करते हैं.
ढाक
ढाक के शोर के बिना दुर्गा पूजा का जश्न अधूरा है. ढाक एक तरह का ढोल होता है जिसे मां के सम्मान में उनकी आरती के दौरान बजाया जाता है. इसकी ध्वनी ढोल-नगाड़े जैसी होती है.
लाल पाढ़ की साड़ी: गारद, कोरियल
वैसे तो ये बंगाली परंपरा है, जहां महिलाएं दुर्गा पूजा के दौरान लाल पाढ़ की साड़ी पहनती हैं, लेकिन फैशन के इस दौर में अब देश के कई हिस्सों में इसे पहना जाने लगा है. गारद और कोरियल दोनों ही लाल पाढ़ वाली सफेद साड़ियां होती. इनमे फर्क बस इतना है कि गारद में लाल रंग का बॉर्डर कोरियल के मुकाबले चौड़ा होता है और इनमें फूलों की छोटी-छोटी मोटिफ होती हैं.
पुष्पांजलि
नवरात्रि के दौरान, खासकर अष्टमी को, लोग हाथों में फूल लेकर मंत्रोच्चारण करते हैं. फिर मां को अंजलि देते हैं. पंडालों में जब बड़े पैमाने पर एक साथ कई लोग मां दुर्गा को पुष्प अर्पित करते हैं, तो नज़ारा देखने लायक होता है.
सिंदूर खेला
नवरात्रि के आखिरी दिन मां की अराधना के बाद शादीशुदा महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इसे सिंदूर खेला कहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, इसलिए उनकी मांग भरी जाती है. मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाती है. सिंदूर खेला की परंपरा देख होली की याद आ जाती है.
विसर्जन
नवरात्रि के बाद दसवें दिन मां की मूर्ति का पानी में विसर्जन किया जाता है. लोग रास्ते भर झूमते नाचते जाते हैं और उन्हें विदा करते हैं.
दशहरा/रावण वध
दुर्गा पूजा के 10वें दिन दशहरा मनायी जाती है. इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और मेला घूमने जाते हैं. हिमाचल का कुल्लू दशहरा और कर्नाटक का मौसूर दशहरा प्रसिद्ध है जिसे देखने लोग विदेशों से भी आते हैं. इस दिन को विजयदशमी भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन मां दुर्गा ने महिसासुर राक्षस का वध किया था. इस दिन रावण दहन की भी परंपरा है क्योंकि लंका में राम ने रावण का वध किया था. इसी के प्रतीक में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों में आतिशबाज़ी लगाकर आग लगाई जाती है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है.