November 15, 2024

‘भाई-बहन’ आपस में करते हैं शादी, खतरे में है इन आदिवासियों की लाइफ

रायपुर 6 अप्रैल : छत्तीसगढ़ देश का ऐसा स्टेट है जहां सबसे ज्यादा आदिवासी कम्युनिटीज हैं। यहां सबकी अपनी कल्चर और परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक है धुरवा आदिवासी समाज। इस समाज में एक दिलचस्प प्रथा है। इनके यहां बहन की बेटी से मामा के बेटे (ममेरे फुफेरे भाई बहन) की शादी का चलन है। हालांकि, अब इस परंपरा को खत्म करने के लिए अब समाज के भीतर ही डिबेट शुरू हो गई है। ममेरे-फुफेरे, भाई-बहन के बीच शादी नहीं हुई तो वसूलते हैं जुर्माना…

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किस तरह की है प्रथा और क्यों वसूला जाता है जुर्माना
– धुरवा समाज में बाल विवाह प्रथा का भी चलन है। विवाह की इस अनूठी परंपरा को न मानने वालों पर जुर्माना लगाया जाता है।
– हालांकि, अब ममेरे-फुफेरे, भाई-बहन की शादी को समाज में एक धड़ा बंद करने का दबाव डाल रहा है।
पानी को साक्षी मानकर करते हैं शादी
– बुरी नजर से बचने के लिए मन्नत के साथ वे हर तीसरे साल होने वाले मेले में अपनी आराध्या देवी को चश्मे चढ़ाते हैं।
– छत्तीसगढ़ में बस्तर की कांगेरघाटी के इर्दगिर्द बसे धुरवा जाति के लोग बेटे-बेटियों की शादी में अग्नि को नहीं बल्कि पानी को साक्षी मानते हैं।
– हालांकि, अब समाज में शादियों के रजिस्ट्रेशन और शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र 18 और लड़के की 21 साल की होने की बात की जाने लगी है।
– समाज के सचिव गंगाराम कश्यप के मुताबिक इस प्रथा से बेटियों को अनचाहे वर को भी मंजूर करना मजबूरी है।
– रोजगार की कमी जंगल में बढ़ते औद्योगिक दखल की वजह से इन आदिवासियों की जाति खतरे में बताई जाती है।
– आदिवासी समाज के नेताओं की मानें तो सरकार ने 2002 में विशेष आरक्षण देना तय किया, लेकिन अभी तक कुछ किया नहीं गया है।