मोदी सरकार आने के बाद देश में कई पत्रकारों की किस्मत चमकी. लेकिन छप्पर फाड़ कर अगर मोदी सरकार ने किसी को दिया तो ज़ाहिर तौर पर सबसे ऊपर इंडिया टुडे के पूर्व प्रबंध संपादक स्वप्न दास गुप्ता का नाम है. सरकार के आते ही स्वप्न दास गुप्ता को पद्मभूषण जैसे महासम्मान से नवाज़ा गया और फिर देश की नंबर एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी लार्सन एंड टूब्रो में निदेशक की कुर्सी सौंपी गयी. आज पत्रकारों के बीच स्वप्न दास लार्सन एंड टूब्रो के निदेशक हैं और व्यापार जगत में उनकी छवि सरकार के कथित प्रवक्ता के तौर पर हैं. हालाँकि स्वप्न दास का असली स्वप्न अभी भी लंदन में भारत का हाई कमिश्नर बनना है. अगर अरुण जेटली वित्त मंत्री की जगह विदेश मंत्री होते तो स्वप्न दास कब के हाई कमिश्नर बन भी गए होते. स्वप्न दास पहले लाल कृष्णा अडवाणी और अब जेटली के नंबर एक मित्र माने जाते हैं.
शायद इसीलिए वो 15 बिलियन डॉलर के लार्सन एंड टूब्रो कम्पनी में सरकार के कोटे से निदेशक बनाए गए हैं. स्वपन दास कभी अडवाणी के थिंक टैंक माने जाते थे. सच तो यह ही की अडवाणी की रथ यात्रा के दौरान ही स्वपन की विचारधारा का भगवाकरण हुआ. लेकिन अडवाणी के नज़दीकी होते हुए भी स्वपन दास गुप्ता जब 2003 में बेरोजगार हुए तो उन्हें कुछ मिला नही. वाजपेयी सरकार जाने के बाद तो स्वपन सिर्फ टीवी शो में बहस और अखबारों में फ्रीलांसिंग ही करते रहे. धीरे धीरे स्वपन ने अडवाणी का दामन छोड़कर जेटली का दामन पकड़ा और वो मोदी खेमे में शामिल हो गए. और आज स्वप्न के दिन पूरी तरह बदल चुके हैं.
देश की वर्तमान मीडिया नीति एवमं निर्णयों में स्वपन दास गुप्ता की राय अहम होती है. विदेश और वित्त से जुड़े फैसलों में भी वो दखल रखते हैं.अभी हाल में स्वपन दस गुप्ता कुछ पत्रकारों के साथ इजराइल के दौरे पर गए थे. वो सरकार की अन्य बैठकों में भी शामिल होते हैं. सूत्रों का कहना है स्वप्न ने हाल ही मे बीजेपी के समर्थन वाले कई बड़े पत्रकार जिसमे चन्दन मित्रा, रजत शर्मा और अब अवीक सरकार भी हैं को पीछे छोड़ दिया है.
कभी बीजेपी के मुख्यपत्र माने जाने वाले प्रभु चावला को हाशिये में धकेलने में भी स्वप्न दास की भूमिका रही है. स्वपन दास और प्रभु चावला का पिछली वाजपेयी सरकार के दौरान झगड़ा हुआ था और तभी से दोनों में 36 का आंकड़ा है. लेकिन स्वपन दास गुप्ता के बारे में एक बात ज़रूर कही जाती है की उनकी छवि पावर ब्रोकर वाली नही है. वो ना ही प्रभु चावला की श्रेणी में है और ना ही राजीव शुक्ल की. शायद इसलिए उनकी पहुँच सीधे मोदी के दरबार में है.