केजरीवाल मीडिया मालिकों की आँख की किरकिरी यूँ ही नहीं हैं : पत्रकारों का पैसा मारने वाले मालिकों को तीन साल की जेल का क़ानून पास !….ख़बर ग़ायब.!!. विधायकों के वेतन के फ़र्ज़ी आँकड़े बताने में जुटा मीडिया !!! लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिश को दिल्ली विधानसभा ने अपनी मंज़ूरी दे दी जिसके बाद विधायकों का वेतन 12 हजार से 50 हज़ार रुपये महीना हो जायेगा। यही वह वेतन है जो वह अपने घर परिवार पर ख़र्च करेगा। बाक़ी तमाम भत्ते हैं जो किसी निश्चित मद में खर्च होने के एवज़ में दिए जाएंगे। जैसे अपने दफ्तर के चार सहायकों के वेतन के लिए अधिकतम तीस हज़ार रुपये महीने। लेकिन ऐसे तमाम भत्तों को जोड़कर और शायद गाड़ी के लिए जाने वाले लोन को भी जोड़कर मीडिया विधायकों का वेतन ढाई लाख बताने पर जुटा है।
यहाँ तक कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के वेतन से ज़्यादा पाएंगे दिल्ली के विधायक (वैसे, न्यूज़ चैनलों के हर संपादक की तनख्वाह इससे ज्यादा है), लेकिन अगर इसी तरह माननीय मोदी के वस्त्र, प्रसाधन, यात्राओं और भोज आदि पर होने वाले खर्च को उनके वेतन पर जोड़ दिया जाए तो कितना वेतन हो जाएगा, कोई यह बताने को तैयार नहीं है। (पिछले दिनों मोदी जी पर हर सेकेंड 10,300 रुपये खर्च की जानकारी आई थी।)
इस पर निश्चित ही चर्चा होनी चाहिए कि विधायकों को कितनी तनख्वाह मिलनी चाहिए। किसी को आचार्य कमेटी की सिफ़ारिशें ग़लत भी लग सकती है, लेकिन तरीक़ा एक ही है कि कोई विशेषज्ञ कमेटी ही इस बाबत फैसला करे। जैसे कर्मचारियों के वेतन के बारे मे वेतन आयोग करता है। दिल्ली में इस तरह का प्रयोग पहली बार हुआ है। वरना विधायक और सांसद अपनी तनख्वाह खुद बढ़ा लेने की तोहमत हमेशा झेलते रहेंगे।
अतीत और वर्तमान के कई नेता, विधायक और मंत्री ऐसे हो सकते है जो बिना एक पैसा वेतन लिए जनहित पर करोड़ों फूँकते रहे हों या फूँक रहे हों। लेकिन उनके दफ्तरों में अनवरत मिलने वाली चाय-मिठाई के लिए हलवाई को बाक़ायदा पैसा दिया जाता है और उनके कारवाँ में शामिल गाड़ियाँ पानी से नहीं चलतीं। ऐसी विभूतियों की अंटी सिर्फ़ भ्रष्टाचार की लूट से लाल रहती है, यह जानने के लिए ज़्यादा अक़्लमंद होने की ज़रूरत नहीं है।
यह संयोग नही है कि दिल्ली विधायकों की तनख्वाह को ढाई लाख बताने पर जुटे मीडिया ने यह खबर गायब कर दी है कि पत्रकारों को न्यूनतम वेतन न देने वाले मीडिया मालिकों को पचास हजार जुर्माना और तीन साल की जेल का कानून भी दिल्ली विधानसभा ने पारित कर दिया है। केजरीवाल मीडिया (मालिकों) की आँख की किरकिरी यूँ ही नहीं हैं।