November 18, 2024

क्यों हरियाणा में अंग्रेजी शराब पर नहीं होता MRP रेट

Faridabad/Alive News : देश भर के विभिन्न उत्पादों में आपने एमआरपी ( अधिकतम खुदरा मूल्य) लिखा देखा होगा। उसी आधार पर सामान की खरीदारी भी करते हैं लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि हरियाणा में बिकने वाली अंग्रेजी शराब की बोतलों पर कोई एमआरपी (रेट) प्रिंट नहीं होती। सरकार की आबकारी नीति के कारण लोगों के जेब पर शराब ठेकेदार डाका डाल रहे हैं। इस बात का खुलासा एक आरटीआई में मांगी गई जानकारी से हुआ है। आबकारी विभाग का कहना है कि सरकार ने नीति के तहत कम से कम रेट तय कर रखा है। संबंधित ठेकेदार उसे अधिकतम कितने भी रेट से बेच सकता है। उसमें विभाग कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

सेक्टर-19 निवासी आरटीआई कार्यकर्ता राजन गुप्ता ने राज्य के आबकारी एवं कराधान विभाग से जनसूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी कि प्रदेश में बिकने वाली अंग्रेजी शराब की बोतलों पर एमआरपी क्यों नहीं प्रिंट होता है। एक आम आदमी कैसे अनुमान लगाए कि उससे अधिक पैसे नहीं लिए जा रहे हैं। विभाग ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है, वह चौंकाने वाली है। आबकारी व कराधान विभाग के राज्य जनसूचना अधिकारी द्वारा दी गई सूचना में कहा गया है कि हरियाणा राज्य में अंग्रेजी शराब की बोतलों पर एमआरपी प्रिंट नहीं होता है, क्योंकि यह आबकारी नीति का हिस्सा है। विभाग का कहना है कि वर्ष 2016-17 की आबकारी नीति में न्यूनतम बिक्री रेट फिक्स किया हुआ है न की अधिकतम। हैरानी की बात यह है कि कोई विक्रेता शराब खरीदने वाले को कोई बिल नहीं देता।

यहां जिले में कुल 264 शराब के ठेके हैं। इनमें से 129 अंग्रेजी शराब और 135 देशी शराब के ठेके हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन उक्त ठेकों से 12000 बोतलों से अधिक की बिक्री होती है। शराब विक्रेता लोगों से मनमाना दाम वसूलता है, क्योंकि बोतलों पर एमआरपी प्रिंट होता ही नहीं। एक शराब विक्रेता का कहना है कि कम से कम एक पौवा अंग्रेजी शराब की कीमत 50 रुपये है। अधिकतम कितना भी लिया जा सकता है। शराब विक्रेता के मुताबिक एक ही ब्रांड के शराब के अलग-अलग रेट हैं। जिसे दुकानदार अपने मनमुताबिक वसूल कर रहे हैं। 100 पाइपर ब्रांड की कीमत 1100 से 1600 रुपये, रॉयल स्टेज 300 रुपये, ब्लैग डॉग 1200 से 1600 रुपये, रायल ग्रीन के दाम 330 रुपये तक हैं। यानि एक जिले से ही शराब के ठेकेदार करोड़ों रुपये का डाका लोगों की जेब पर डाल रहे हैं। सरकार और विभाग दोनों चुप हैं।

विभाग कुछ नहीं कर सकता
स्नेहलता यादव, जिला आबकारी एवं कराधान अधिकारी का कहना है कि सरकार की आबकारी नीति के अनुसार ही विभाग ठेकेदारों को ठेका अलॉट करता है। जब नीति में ही एमआरपी का जिक्र नहीं है तो विभाग कुछ नहीं कर सकता। जिस दिन सरकार एमआरपी तय कर देगी, विभाग उसी दिन से बिक्री पर निगरानी रखना शुरू कर देगा।