भारत के रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने पिछले कुछ दिनों में आश्चर्यजनक रूप से करोड़ों लोगों को एक एसएमएस भेजा है. इस एसएमएस का संबंध भारतीय मुद्रा 10 रुपए को लेकर है.
आरबीआई के इस एसएमएस में कहा गया है कि डरने की ज़रूरत नहीं है और भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत बिल्कुल ठीक है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपने व्यापक प्रचार तंत्र को 10 रुपए के सिक्के से जुड़े भ्रम को ख़त्म करने में लगाया है. भारत के 10 रुपए के सिक्के की क़ीमत महज 10 अमरीकी सेंट्स है. हालांकि इससे पता चलता है कि सरकार अपनी मुद्रा से जुड़े भ्रमों को ख़त्म करने को लेकर किस हद तक गंभीर है.
आख़िर 10 के सिक्के से जुड़ा मिथ क्या है? यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मानवता के इतिहास में मुद्रा का संबंध आत्मविश्वास से रहा है. भारत में यह समस्या बहुत जटिल नहीं है. ज़्यादातर लोगों को लग रहा है कि 10 का नया सिक्का नक़ली है. इसका असर यह हुआ कि ज़्यादातर लोग 10 के नए सिक्के को लेने से इनकार कर रहे हैं. अफ़वाह है कि 10 का नया सिक्का नक़ली है. कहा जा रहा है कि इसकी शुरुआत भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात से हुई और यह अफ़वाह पूरे देश में फैल गई.
सामी तमिलनाडु में ऑटोरिक्शा ड्राइवर हैं. उनका कहना है कि 10 का नया सिक्का कोई लेता नहीं है. उन्होंने कहा कि 10 के नए सिक्के न तो किराना दुकान वाले लेते हैं और न ही चाय बेचने वाले. वीरापांडी एक दुकान के मालिक हैं. उनका कहना है कि बस कंडक्टर भी 10 के नए सिक्के को नहीं लेते हैं. वीरापांडी ने कहा, ”बस वाले कहते हैं कि पैसेंजर 10 के नए सिक्के को नहीं लेते हैं, इसलिए वो भी नहीं लेते.”
आरबीआई की परेशानी क्या?
क्या 10 रुपए का नया सिक्का क्या इतना बड़ा मसला है कि इसके लिए आरबीआई इस कदर हरकत में है? आरबीआई ने करोड़ों लोगों को एसएमएस कर बिना डर के 10 रुपए के नए सिक्के को स्वीकार करने की अपील की है. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि अगर फिर भी आप आश्वस्त नहीं हैं तो 14440 पर फ़ोन करें.
मैंने इस नबंर पर फ़ोन किया. एक या दो सेकंड के बाद मेरे पास आरबीआई ने कॉल बैक किया. हालांकि आरबीआई की तरफ़ से इस फ़ोन पर कोई व्यक्ति नहीं था बल्कि एक रिकॉर्ड किया हुआ संदेश था. इसमें बताया गया कि भारत सरकार ने अलग-अलग डिजाइन में 10 के नए सिक्कों को जारी किया है और सभी वैध हैं.
अपनी जेब से एक नोट निकाल क़रीब से देखिए. लगभग सभी पेपर मनी में एक ही वादा है- ‘मैं धारक को भुगतान करने का वादा करता हूं.’ नोट अलग-अलग मूल्य के हो सकते हैं. अगर नोट पर लिखे इस वादे कोई चुनौती देता है तो सरकार से दूसरे नोट की मांग की जा सकती है.
मुद्रा की एक कल्पित क़ीमत होती है और सरकारें उसे वैध बनाती हैं ताकि स्वीकार्यता पर कोई शक नहीं हो. मुद्रा की क़ीमत काग़ज़ या धातु में निहित नहीं होती है. इसकी क़ीमत सामूहिक भरोसे में होती है. चाय वाला चाय के बदले हमसे उस पैसे को लेता है जिसे उसके पड़ोस की दुकानवाला स्वीकार कर लेता है और कोई सवाल नहीं उठाता है.
उसी तरह दुकान वाला उस पैसे का इस्तेमाल कहीं और करता है और उसकी वैधता पर कोई शक नहीं करता है. मुद्रा की क़ीमत बिना भरोसे के कायम नहीं रह सकती है. युवल नोआह हरारी ने अपनी किताब ‘सिपियंस’ में लिखा है कि पैसा लोगों को जोड़ने का काम करता है. उन्होंने लिखा है कि भाषा, संस्कृति, क़ानून और धर्म के बीच मुद्रा सेतु का काम करती है.
हरारी ने लिखा है, ”यहां तक कि जो लोग एक ईश्वर और एक राजा की आज्ञा नहीं मानते वो भी एक करंसी का इस्तेमाल करने में एतराज़ नहीं जताते हैं. ओसामा बिन लादेन को अमरीकी संस्कृति, अमरीकीपन और अमरीकी राजनीति से नफ़रत थी, लेकिन अमरीकी डॉलर से बेपनाह मोहब्बत थी.”
यह भरोसा कि जो व्यवस्था है वो काफ़ी नाज़ुक है, इसीलिए टूटना भी आसान होता है. इसलिए आरबीआई इतनी गंभीरता इसमें दिखा रहा है. आरबीआई का प्रचार तंत्र 10 के नए सिक्के को लेकर भरोसा बहाल करने की कोशिश कर रहा है. आरबीआई को पता है कि अगर मुद्रा से भरोसा उठा तो अर्थव्यवस्था को संभालना कोई आसान काम नहीं है.