सरकार के गलत निर्णयों से लाठी खाने को मजबुर है देश का किसान?
जिस देश में 1.25 अरब भारतीय निवास करते हो ओर देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर अधारित हो उसी देश का किसान जिसे देश का धरती पुत्र भी कहां जाता है वही धरती पुत्र जो दिन रात मेहनत करके जमीन का सीना चीरकर फसन पैदा करने का मादा रखता हो वही किसान जो देश के भरण पोषण के लिए अपनी सारी उम्र्र माटी में खोता है। भारत को कृषि प्रधान देश भी कहां जाता है लेकिन उसी कृषि प्रधान देश में किसान अपनी मेहनत का सोना सडक़ो पर फैंकने को क्यों मजबूर हो रहा है?
जय जवान जय किसान का नारा आज केवल मात्र सुनने में अच्छा लगता है धरातल पर किसान हताश ओर निराश होता जा रहा है सरकारों के गलत निर्णयों से खेती छोडक़र शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहा है किसानों पर राजनीति हो रही है किसानों की बात तो हर कोई करता है लेकिन उनके लिए करता कोई भी नही सरकार हर वर्ष किसानों के लिए ना जाने कितनी योजनाएं चलाकर उनके दर्द को कम करने की कोशिश करती है लेकिन ये योजनाएं केवल कागजों तक सिमट कर रह जाती है। देश बदला लेकिन किसान आज भी वही का वही है आज भी आजादी से लेकर ओर आज तक किसान पुरानी पद्वति के भरोसे खेती करने कर रहा है जिसमें उसका खर्च ज्यादा ओर आमदनी कम हो रही है छोटे किसान जानकारी के अभाव में बैंको से लोन ना लेकर साहुकारों के चुगल में फसते जा रहे जिससे वे उनका पैसा ना चुकाने के कारण सुली को चुन कर अपनी लीला को समाप्त कर देते है ओर अपने पीछे छोड़ देते है बेबस ओर बेसहारा परिवार जो सोचने को मजबूर हो जाता है क्या किसाना केवल केवल राजनीति का शिकार होता जाएगा ओर जब मुआवजे के नाम पर उन्हें या तो खाली चैक थमा दिये जाते है या फिर उतना पैसे जिसकी सोच मात्र से देश शर्मशार हो जाता है।
यदि किसानों की आत्महत्या का दोष दिया जाए तो सबसे पहले सरकारों के उपर उगुंली उठती है क्योंकि सरकार किसानों को खुशहाल बनाने में सरकार का बढ़ा दायित्व होता है। सरकार का दायित्व होता है दश्ेा के किसानों को अति आधुनिक जानकारी देना जिससे किसानों को उसका लाभ मिल सके लेकिन नही यहां तो सरकारों के लिए भोला भोला किसान केवल राजनीति को मोहरा बनता जा रहा है जब देश का किसान अति दुख सहन करता है तो लेता है धरने,प्रदर्शनों का सहारा। किसान के आत्महत्या निवास करती हो ओर देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित हो भला उसी देश में किसान आज आत्महत्या ओर अपनी फसल को सडक़ों पर फैकनें को क्यों मजबूर हो रही है आज यह बड़ा ही सोचनीय विषय है किसान अपनी बात को कहने के लिए सडक़ो पर उतर रहे है देश से लेकर प्रदेश तक सिर्फ ओर सिर्फ किसानों की हाहाकार सुनाई दे रही है किसान सडक़ों पर सरकार के गलत निर्णय से लाठी खाने को मजबूर हो रहे है आखिर क्यों?
एक तरफ सरकार कह रही है किसानों की आय 2022 तक दुगना हो जाएगी, लेकिन वर्ष 2017 के किसानों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है। क्या 2017 का किसान चुनावी किसान नही है या फिर सरकार को इस किसान में वोट नही दिखाई दे रही है हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के लिए चलाई फसल बीमा योजना लागू कि जिसमें किसानों को कोई अपदा आने पर किसानों को फसल के नुकशान की भरपाई कि जाए लेकिन फसल बीमा का लाभ आज भी 83 प्रतिशत किसानों को नही मिला।
सवालिया निशान खड़ा हो गया है कि आखिर कब तक किसान बनता रहेगा राजनीति का शिकार….
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है)