सनातन संस्कृति के अनुसार यहाँ वृक्ष में भी भगवान का वास होता है। माताओ के लिए अति श्रेष्ठ वट सावित्री पूजन जिसमे माताएं अपने पति के दीर्घ आयु के लिए दिन भर उपवास करती है और बरगद पेड़ की पूजा कर अपने पति की दीर्घ आयु की कामना करती है।
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली अमावस्या तिथि सबसे अधिक शुभ व फलदायी मानी गई है। जिसे ज्येष्ठ अमावस्या भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता अनुसार, जो भी व्यक्ति ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन सच्ची भावना से स्नान-ध्यान, दान, व्रत और पूजा-पाठ करता है, उसे समस्त देवी-देवता का आशीर्वाद निश्चित ही प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन पितरों व पूर्वजों की शांति और इष्ट देवी-देवताओं की कृपा पाने के लिए, किए जाने वाले हर प्रकार के कर्मकांड भी फलीभूत होते हैं।
शुभ समय
ये पावन तिथि बुधवार 9 जून दोपहर 2 बजे से आरंभ होगी, जिसकी समाप्ति अगले दिन 10 जून गुरुवार दोपहर 04 बजकर 24 मिनट पर होगी। इस बार 9 जून दोपहर से ही अमावस्या तिथि लग जायेगी। 9 जून बुधवार के दिन दोपहर 02 बजे से माताएं वट वृक्ष का पूजन करके व्रत धारण कर सकती है। अमावस्या 10 जून को भी है लेकिन वो केवल स्नान दान के लिए ही उपयुक्त है व्रत के लिए 09 जून ही श्रेष्ठ है।
महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत महिलाओं का प्रमुख पर्व होता है, जिसे कुंवारी और विवाहित दोनों ही महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इसमें जहां कुंवारी कन्याएं इच्छानुसार वर की कामना के लिए ये व्रत करती हैं, तो वहीं शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु व स्वस्थ जीवन की कामना हेतु इस व्रत को करती हैं।
पूजा विधि
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं। जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं। और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं।