November 16, 2024

PM मोदी की चिंताएं बढ़ा देगी ये रिपोर्ट

New Delhi/Alive News : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में शामिल होने के लिए निकले. ये राजनैतिक और आर्थिक जगत के सबसे ताकतवर लोगों का मेला है, जो स्वित्ज़रलैंड के एक रिज़ॉर्ट में भरता है, दावोस नाम के शहर में. 22 जनवरी को ही दावोस का ज़िक्र एक और वजह से हुआ. इस दिन यहां ऑक्सफैम ने ”रिवॉर्ड वर्क, नॉट वेल्थ” नाम से एक रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया कि साल 2017 में हिंदुस्तान में पैदा हुई दौलत का 73% हिस्सा टॉप के 1% दौलतमंदों के पास गया. पिछले साल ये आंकड़ा 58% पर था.

आसान शब्दों में, हिंदुस्तान में अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब और गरीब हो रहे हैं. वो गरीब, जो तय करेंगे कि साल 2019 में प्रधानमंत्री मोदी का टेन्योर रिन्यू होगा कि नहीं. ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट में दुनियाभर की बात की गई है. लेकिन हम यहां हिंदुस्तान से जुड़े आंकड़ों की ही बात करेंगे. पहले रिपोर्ट में सामने आई चीज़ों पर नज़र डालें –

– विकास सही में चेहरा देखकर रफ्तार तय कर रहा है
सब जानते हैं कि अमीरों और गरीबों की ग्रोथ रेट अलग-अलग होती है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट में मालूम चलता है कि ये अंतर कितना भयानक है. हिंदुस्तान में मिनिमम वेज (न्यूनतम तनख्वाह, जिसे सरकार तय करती है) पर काम कर रहे एक मज़दूर को देश के अग्रणी कॉर्पोरेट एग्ज़ेक्यूटिव की कमाई तक पहुंचने में 941 साल लगेंगे. माने कंपनी का मालिक 17.5 दिन में उतना कमा सकता है, जितना गांव में मज़दूरी करके उसे कच्चा माल भेजने वाला अपनी पूरी ज़िंदगी में कमाएगा.

– सरकार के बजट जितना कमा रहे हैं अमीर
हिंदुस्तान में पिछले साल 17 नए अरबपति बने. तो अब टोटल हो गया है 101. इन 101 लोगों ने साल 2017 में 20,913 अरब रुपए कमाए. ये भारत सरकार के बजट 2017 के लगभग बराबर है. इन 101 की कुल दौलत में से 51% खानदानी अमीरों (37%) के पास है. ध्यान रखें कि सरकार अपना बजट सिर्फ गरीबों पर ही खर्च नहीं करती है.

–  तीन गुना तेज़ी से मर रहे हैं गरीब
हिंदुस्तान में 120 रुपए रोज़ाना से कम कमाने वाले लोगों में मृत्यु दर वैश्विक औसत से तीन गुना ज्यादा है. अरबपति बढ़ते हैं, तो सरकारें उसे बिलेनियर बूम का नाम देती हैं. अपनी पीठ थपथपाती हैं. लेकिन असल में अरबपति बढ़ने का मतलब ये होता है कि देश में असमानता बढ़ रही है. गरीबों के लिए कमाना-खाना मुश्किल होता जा रहा है और ऐसा है नहीं कि लोग इसे महसूस नहीं कर रहे. लोग अपनी शादी के कार्ड पर ‘कमल का फूल, हमारी भूल’ छपवाने लगे हैं. बावजूद इसके जमीनी हकीकत में भारत सरकार कुछ खास फिक्र में हो, ऐसा नहीं लगता. जिन सरकारी अस्पतालों में गरीब जाते हैं उनके लिए सरकार देश की जीडीपी का सिर्फ 1.15% खर्च करती है. ये दुनिया के सबसे छोटे स्वास्थ्य बजट में से एक है.

ऑक्सफैम अंतरराष्ट्रीय एनजीओ का एक समूह है. और एनजीओ प्रधानमंत्री को खास पसंद नहीं हैं. तो हो सकता है कि वो ऑक्सफैम की रिपोर्ट को खारिज कर दें. लेकिन दावोस से ही एक और रिपोर्ट जारी हुई है, जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने ही तैयार किया है. इसके मुताबिक इनक्लूज़िव डेवलपमेंट इंडेक्स (इनक्लूज़िव डेवलपमेंट माने समावेशी विकास; सबका साथ-सबका विकास का सीरियस वर्ज़न) में भारत 62वें स्थान पर है. पाकिस्तान 47वें स्थान पर है.

इस इंडेक्स को तैयार करते वक्त तीन चीज़ों पर ध्यान दिया जाता है – लिविंग स्टैंडर्ड (जीवन स्तर), पर्यावरण का स्तर और आने वाली पीढ़ियों को कर्ज़ से बचाने के लिए किए उपाय. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने अपील की है कि सरकारें आर्थिक विकास नापने के लिए जीडीपी वाली आंकड़ेबाज़ी छोड़ दें क्योंकि इससे असमानता बढ़ती है और लंबे समय तक असरदार कदम नहीं उठाए जाते. (ये सुना-सुना सा लगता है न?) एक बात जो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने नहीं लिखी है, वो ये है कि ऐसी सरकारें चुनाव हार जाती हैं.

कुल जमा बात यही है कि प्रधानमंत्री को ये दो रिपोर्ट पालथी मार कर पढ़नी चाहिए, अगर वो 2019 में अपने लिए अच्छे दिन चाहते हैं. बाकी चुनाव जीतने के लिए क्या ज़रूरी है, वो तो मोदी जी से बेहतर कौन ही जानता है.