Faridabad/Alive News : दीपावली का अर्थ दीपों की पंक्तियां होता है दीपावली के दिन प्रत्येक घर दीपों की पक्तियों से शोभायान रहता है। दीपों, मोमबतियों और बिजली की रोशनियों से घर का कोना-कोना प्रकाशित हो उठता है। रोशनी का अंधकार से दूर होना और मन में अच्छे विचारों को प्रकाशित कर हम मन के अंधकार को दूर कर सकते है। दीपोत्सव का त्यौहार करीब है। दीये से दूसरे के घरों में रोशन करने वाले कुम्हार की किस्मत अंधेरे में है।
उत्सवों की शान समझे जाने वाले मिट्टी के दीपों के और उसके व्यवसाय कुम्हार को चाईनीज आईटमों के कारण संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। सभी कुम्हार मंहगी मिट्टी खरीदकर दीया, करवा आदि बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। लेकिन आज भी गरीब कुम्हारों को बुनियादी सुविधाओं का इंतजार है। चाईना की झालर, कुम्हार के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
हालांकि फिर भी दीवाली पर कई कुम्हारों को अच्छे व्यापार की आस बंधी है। मिट्टी के व्यवसाय से जुड़े कुम्हार बुद्धिलाल गोला बताते है कि अब मिट्टी के दीप का जमाना गया। कभी दीपावली पर्व से एक महीने पहले मोहल्लों में रौनक हो जाती थी और कुम्हारों में भी होड़ रहती थी कि कौन कितने दीये बेचेगा। आज टेक्नोलॉजी के दौर में मिट्टी के दीयो के खरीददार मार्किट में नजर नही आते। पहले कांसा के बर्तनों और मिट्टी के दीये हमारी परंपराओ में शामिल थे।
मगर, इन परंपरागत चीजों पर आधुनिकता की चादर डल चुकी है। दीपावली पर चाईना की झालर और लाईटों ने मिट्टी के दिये का रंग फीका कर दिया है। अब मिट्टी के दिये को लोग बस पूजा आदि में प्रयोग करने के लिए खरीदते हैं। कुम्हार बुद्धिलाल गोला कि देश की जनता से अपील है कि मिट्टी के दिये खरीदने से गरीब की जिन्दगी रोशन होगी और यह बात दीपावली मनाने वालों को गौर करनी चाहिए।
मामूली बढ़े दाम फिर भी नही डिमांड
मिट्टी के दिए बनाने वाले कुम्हार बताते हैं कि दस साल में मिट्टी के दीयो के मूल्य में सिर्फ15 फीसदी तक ही बढ़े हैं जबकि बाकी सामानों के दाम आसमान छू रहे है। लेकिन कुम्हार के दीये की कीमत लोग हमेशा कम ही लगाते है।
सस्ती के चक्कर में बिकती है चाईना झालर
कुम्हार कहते है कि मिट्टी के दिये की मांग लगातार कम होती जा रही है। जबकि मिट्टी के दाम बढ़ते जा रहे है। झालर सस्ती पड़ती है जिससे मिट्टी के दीये के स्थान पर लोग चाईनीज झालर खरीदते हैं।