April 19, 2025

सरकार ने गन्ना भुगतान को लेकर किया फैसला

New Delhi/Alive News: हाल के वर्षों में यह मसला कई राज्यों में सुर्खियों में रहा है। अब महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने उद्धव सरकार के पुराने आदेश को रद्द करते हुए गन्ना किसानों के लिए बड़ा फैसला लिया है। उद्धव की गठबंधन सरकार ने गन्ना किसानों के लिए दो किस्तों में भुगतान की बात कही थी लेकिन पिछले महीने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद भाजपा की गठबंधन सरकार को 2022 के उस सरकारी आदेश को रद्द करना पड़ा। हां, कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसानों को उनके गन्ने का भुगतान एकसाथ किया जाए।

महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार यानी 15 अप्रैल को पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार के संबंधित आदेश को रद्द कर दिया। इसमें चीनी मिलों के लिए गन्ना किसानों को दो किस्तों में भुगतान करने की अनुमति दी गई थी। यह फैसला चर्चा में है। दूसरे राज्यों के लोग भी इस मामले और उसके असर को समझ रहे हैं। ऐसे में इसके तमाम पहलू को समझना जरूरी है।

दरअसल, गन्ना उत्पादक किसानों को केंद्र के उचित और लाभकारी मूल्य सिस्टम के तहत पेमेंट किया जाता है। और गन्ने के लिए FRP कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाली कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिश पर हर साल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडल समिति तय करती है।

यह जानना भी जरूरी है कि गन्ने के लिए एफआरपी उसी सिस्टम का उपयोग करके तय की जाती है जिसकी मदद से 23 अन्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना की जाती है। हालांकि एमएसपी कानूनी रूप से गारंटी नहीं है। चीनी मिलें कानूनी रूप से किसानों द्वारा गन्ना बेचने के 14 दिनों के भीतर एफआरपी का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं। ऐसा न करने पर मिल मालिक के खिलाफ गन्ना आयुक्त कार्रवाई कर सकते हैं। किसानों का बकाया चुकाने में फेल रहने पर मिल की संपत्तियों को कुर्क भी किया जा सकता है।

FRP को जानिए-

यह एफआरपी गन्ने से चीनी हासिल करने से जुड़ा है। हां, गन्ने से मिलने वाली चीनी का अनुपात, जिसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। 2024-25 के चीनी सीजन के लिए चीनी कारखानों द्वारा गन्ने के लिए एफआरपी को 10.25% की चीनी निकालने की दर पर 340 रुपये प्रति क्विंटल की मंजूरी दी गई थी। यह 2023-24 के चीनी सीजन के लिए स्वीकृत 10.25% की दर के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटल की एफआरपी से ज्यादा थी।

2022 में क्या हुआ-

उस साल सीएम उद्धव ठाकरे थे। 21 फरवरी को सरकार के विपणन विभाग ने एक आदेश जारी कर एफआरपी तंत्र के तहत मिल मालिकों की तरफ से भुगतान करने के तरीके को बदल दिया। कहा गया कि एफआरपी का भुगतान किसानों को दो किस्तों में किया जाएगा। पहली किस्त का भुगतान पुणे और नासिक डिवीजनों के लिए 10% और शेष राज्य के लिए 9.50% की दर पर करने की बात कही गई थी। दूसरी (अंतिम) किस्त का भुगतान बाद में करना था। मिल-वार चीनी उत्पादन की गणना सीजन बंद होने के 15 दिनों के भीतर की जानी थी। अंतिम गणना कुल उत्पादित चीनी और सीजन में मिले कुल गन्ने को ध्यान में रखकर की जानी थी।

सरकार की तरफ से कहा गया कि इससे किसानों को लाभ होगा क्योंकि उन्हें चालू सीजन की वसूली के अनुसार भुगतान मिलेगा। हालांकि गन्ना उत्पादक नाराज हो गए. किसानों ने कहा कि यह रूल असंवैधानिक है। किसान नेता राजू शेट्टी आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे। उन्होंने तर्क दिया कि एफआरपी एक केंद्रीय निर्देश है जिसमें राज्य छेड़छाड़ नहीं कर सकता है।

हाई कोर्ट का फैसला-

बीते 17 मार्च को कोर्ट ने 2022 के सरकारी निर्देश को रद्द कर दिया और किसानों के लिए भुगतान की पिछली प्रणाली को बहाल कर दिया। अदालत ने फैसले में साफ कहा, ‘गन्ना किसान पेराई सीजन की शुरुआत में चीनी कारखानों को सप्लाई किए गन्ने के लिए उचित मूल्य के हकदार हैं, जैसा केंद्र सरकार के अनुसार निर्धारित किया गया है।’

अदालत ने कहा कि चीनी और गन्ना दोनों आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के दायरे में नियंत्रित वस्तुएं हैं केंद्र सरकार इस बात से अवगत है कि किसानों के गन्ने के उचित मूल्य के भुगतान में कोई देरी नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसान पेराई सीजन पूरा होने तक का इंतजार नहीं कर सकते। अगर ऐसा होगा तो उनकी परेशानी बढ़ सकती है।

फैसले का मतलब-

हाई कोर्ट के आदेश को किसी भी समय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। फिलहाल चीनी मिलों को अपने किसानों को एक बार में भुगतान करना ही होगा। यह फैसला महाराष्ट्र सरकार और किसानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, उनके चाचा शरद पवार, सरकार के मंत्री समेत कई नेता सीधे तौर पर चीनी मिलों से जुड़े हैं।