Swaranjali/Alive News
फरीदाबाद: दिवाली की तैयारियां शहर में जोरो शोरो से चल रही है। लोग अपने घर को सजाने के लिए कई तरह के दीये और झालर खरीद रहे हैं, लेकिन इस आधुनिकता के दौर में लोग मिट्टी के दीयों के बजाय चाइनीज लाइट और मोमबत्तियों का उपयोग कर रहे हैं। ऐसे में पर्यावरण फ्रैंडली मिट्टी के दीयो की मांग हर साल कम होती जा रही है।चाइनीज लाइट से मिट्टी के दीये के कारीगर (कुम्हार) का रोजगार भी फीका पडता जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ कुम्हारी की कला भी विलुप्त होती जा रही है, तो पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
डबूआ सब्जी पर मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार शिवराम प्रजापति ने बताया कि वर्षो पहले दीवाली आने से दो-तीन महीने पहले से ही मिट्टी के दीये बनाने का काम शुरू हो जाता था तब मिट्टी के दीयों की अच्छी खासी बिक्री होती थी लेकिन अब वह बात नहीं रही। यही कारण है कि लोग अब कुम्हारी की कला से मुंह मोड़ने लगे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल बिक्री कम हो रही है। लोग मिट्टी के दीयों की बजाय चाइनीज लाइट और मोमबत्तियों का उपयोग कर रहे हैं, जिसकी वजह से रोजगार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
उन्होंने बताया कि एक दिन में करीब ढाई हजार मिट्टी के दीये बनकर तैयार हो जाते हैं। इन्हें थोक में 87 रुपये सैकड़ा के हिसाब से बिक्री किया जाता है, जबकि बाजार में फुटकर में वहीं दीये 200 रुपये सैकड़ा के हिसाब से बिक्री की जाती है। डिजायनर दीयों की कीमत 10 से लेकर 20 रुपये तक प्रति दीया है। वहीं दूसरी तरफ नार्मल दियों की कीमत 5 से लेकर 12 रुपए तक प्रति दीया है।