New Delhi/Alive News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निजी गैर-सहायता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए वार्षिक ट्यूशन फीस को बढ़ाकर 24 लाख करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश, जिसने फीस बढ़ोतरी को अनुचित बताया है, को बरकरार रखा है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने जोर देकर कहा, फीस को बढ़ाकर 24 लाख करना, जो पहले तय की गई फीस से सात गुना अधिक है, बिल्कुल भी उचित नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार और याचिकाकर्ता निजी मेडिकल कॉलेजों को कहा कि शिक्षा लाभ कमाने का व्यावसाय नहीं है। ट्यूशन फीस हमेशा अफोर्डेबल होनी चाहिए, जिसे सभी वर्गों से आने वाले छात्र वहन कर सकें।
न्यायालय ने राज्य सरकार और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण और उच्चतम न्यायालय की मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति को भुगतान किए जाने वाले अपीलकर्ता प्रत्येक मेडिकल कॉलेज पर 2.5 लाख की लागत लगाई है।
पीठ ने मेडिकल कॉलेजों को सितंबर 2017 में जारी सरकारी आदेश (जीओ) के तहत छात्रों से वसूल की गई अतिरिक्त फीस वापस करने के लिए उच्च न्यायालय के निर्देशों को भी बरकरार रखा, जिसके द्वारा राज्य ने फीस में वृद्धि की थी। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (एएफआरसी) पहले से निर्धारित ट्यूशन फीस से अधिक ट्यूशन फीस तय करती है, तो यह संबंधित छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेजों से इसे वसूल करने के लिए हमेशा खुला रहेगा। हालांकि, संबंधित मेडिकल कॉलेजों को एकत्र की गई राशि को बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।