Vadodara (Gujarat)/ Alive News : सावन के महीने में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का उल्लेख है, जिसमें सबसे ज्यादा आराधना देवों के देव महादेव की ही होती है। इसी क्रम में हम बात कर रहे हैं गुजरात में स्थित एक अनोखे मंदिर की। यूं तो भारत में भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं। लेकिन, गुजरात में वडोदरा से 85 किमी दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव का यह मंदिर अलग ही विशेषता रखता है।
दिन में दो बार चला जाता है अरब सागर की गोद में…
स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार सुबह और शाम को पल भर के लिए ओझल हो जाता है और कुछ देर बाद अपने उसी जगह वापिस भी जाता है। ऐसा ज्वारभाटा उठने के कारण होता है। इसके चलते आप मंदिर के शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते हैं, जब समुद्र में ज्वार कम हो। क्योंकि ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है और मंदिर तक कोई नहीं पहुंच सकता। यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है। मंदिर अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित है। इस तीर्थ का उल्लेख ‘श्री महाशिवपुराण’ में रुद्र संहिता भाग-2, अध्याय 11, पेज नं. 358 में मिलता है।
इस मंदिर की खोज लगभग 150 साल पहले हुई। मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और दो फुट के व्यास वाला है। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर नजारा नजर आता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खासतौर से परचे बांटे जाते हैं, जिसमें ज्वार-भाटा आने का समय लिखा होता है. ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना न करना पड़े।
मान्यता
राक्षस ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर लिया था। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए तो उसने शिव से वरदान मांगा कि मुझे सिर्फ आपका पुत्र ही मार सकेगा और वह छह दिन की आयु का। शिव ने उसे यह वरदान दे दिया था। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने हाहाकार मचा दिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों को आतंकित कर दिया। अंतत: देवता महादेव की शरण में पहुंचे। शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए कार्तिकेय के 6 मस्तिष्क, चार आंख, बारह हाथ थे। कार्तिकेय ने ही मात्र 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया।
जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का भक्त था, तो वे काफी व्यथित हुए। फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवा दें। इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया, फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।