New Delhi/ Alive News : भूकंप को लेकर पूरी दुनिया में खौफ का माहौल है। इसको लेकर लगातार रिसर्च भी की जा रही है और इससे बचने के उपायों को भी तलाशा जा रहा है। पूरेविश्व की बात करें तो पिछले दो माह में हमनें मैक्सिको और इरान-इराक की सीमा पर आए दो भीषण भूकंपों को करीब से देखा है। इन दोनों में मरने वाले लोगों की संख्या करीब दो हजार के करीब है। इस वर्ष भारत के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, कोलकाता, जम्मू कश्मीर, अंडमान निकोबार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश समेत मेक्सिको, ग्रीस, तुर्की, जापान, ग्वाटेमाला और चीन ने भूकंप का सामना किया है। भारत समेत कई देशों ने भूकंप से बचने के लिए कुछ तकनीकें भी इजाद की हैं, जिनको धीरे-धीरे लागू भी किया जा रहा है।
भारत की यदि बात की जाए तो 29 शहरों के करीब तीन करोड़ लोग इस जलजले की जद हैं। इसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत नौ राज्यों की राजधानियां भी शामिल हैं। यह दावा नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी, (एनसीएस) ने अपनी रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्वाधिक संवेदनशील शहर और कस्बे हिमालयी पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में बसे हैं। यह दुनिया में भूकंप का सर्वाधिक संवेदनशील इलाका है। यह इसलिए भी बेहद खास हो जाता है क्योंकि पृथ्वी की परिक्रमण गति (अर्थ रोटेशन) कम हो रही है। इसकी वजह से 2018 में उष्णकटिबंधीय इलाकों में कई विनाशकारी भूकंप आने की आशंका है। यह दावा अमेरिकी शोधकर्ताओं ने जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका की वार्षिक बैठक में पेश शोध में किया है। यहां पर आपको यह भी बता दें कि भारत भी उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र में स्थित होने से खतरे की जद में है।
क्यों आता है भूकंप
यह भी जानना जरूरी है कि आखिर भूकंप क्यों आते हैं। दरअसल, हमारी पृथ्वी के अंदर 7 प्लेट्स हैं जो लगातार घूम रही हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स में बदलाव आता और दबाव बनता है। जब यह दबाव ज्यादा बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं और नीचे की एनर्जी बाहर आती है। इस दौरान धरती में जो हलचल पैदा होती है उसको ही भूकंप कहा जाता है। वहीं यदि मेक्सिको सिटी की बात करें तो इसका ज्यादातर हिस्सा एक सूखी झील पर स्थित है। इस लिहाज से यहां की जमीन काफी नरम है और हल्के भूकंप के झटके से भी यहां पर कंपन होता है। भूकंप की पूर्व सूचना को लेकर जिन तकनीकों पर काम किया जा रहा है उनमें से कुछ ये हैं:-
ऑप्टिकल फाइबर
हमारे घरों में हाई स्पीड इंटरनेट और एचडी वीडियो उपलब्ध कराने वाले ऑप्टिकल फाइबर बिना किसी लागत के भूकंप की पूर्व सूचना उपलब्ध कराने का काम कर सकते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि इससे भूकंपों की निगरानी रखने वाले सेंसरों का सस्ता नेटवर्क निर्मित किया जा सकता है। ऑप्टिकल फाइबर शुद्ध कांच के महीन गुच्छे होते हैं, जिनकी मोटाई मनुष्य के बाल के बराबर होती है। इन गुच्छों के बंडल से केबल बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग लंबी दूरी पर डेटा के सिग्नल को ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है। इस संप्रेषण के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को प्रकाश में बदला जाता है।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों का कहना है कि ऑप्टिकल फाइबर के गुच्छों के कंपन को भूकंप संबंधी गतिविधियों की दिशा और उनकी तीव्रता के बारे में सूचना में बदला जा सकता है। रिसर्चर ऑप्टिकल फाइबर के तीन मील के लूप में लेजर इंट्रोगेटर नामक उपकरण से इन कंपनों को रिकार्ड कर रहे हैं। फिलहाल भूकंपों की निगरानी के लिए सिस्मोमीटर का उपयोग होता है। ये उपकरण प्रस्तावित ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से ज्यादा संवेदनशील जरूर हैं, लेकिन इनका दायरा सीमित है। इनकी स्थापना करना और रखरखाव करना चुनौतीपूर्ण होने के साथ- साथ बहुत महंगा भी पड़ता है। इनकी तुलना में रिसर्चरों द्वारा प्रस्तावित सिस्मिक ऑब्जर्वेटरी का संचालन कम महंगा पड़ेगा। स्टेनफोर्ड के एक प्रोफेसर बियोंडो बियोंडी का कहना है कि ऑप्टिकल फाइबर का प्रत्येक मीटर एक सेंसर की तरह काम करता है और इसको स्थापित करने में एक डॉलर से भी कम खर्चा आएगा।
बियोंडी कहते हैं कि आप कभी भी परंपरागत सिस्मोमीटर के सहारे इतना घना और सस्ता नेटवर्क नहीं बना सकते जितना कि आप ऑप्टिकल फाइबर की मदद से कर सकते हैं। इस तरह का नेटवर्क वैज्ञानिकों को कहीं अधिक प्रभावी तरीके से भूकंप के खतरों का अध्ययन करने में मदद करेगा, खासकर छोटे भूकंपों का। ऑप्टिकल फाइबर की मदद से वे अपने निष्कर्ष जल्दी और व्यापक तरीके से लोगों के सामने रख सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि बड़ा सेंसर कवरेज, भूकंप से धरती पर पड़ने वाले असर से की ज्यादा साफ तस्वीर सामने रख सकेगा। इसकी मदद से सिविल इंजीनियर भी यह जान सकेंगे कि उन्हें भूकंप की चुनौती का सामना करने के लिए किस तरह के भवन बनाने हैं।
पानी के स्तर से भूकंप की निरंतर निगरानी
हिमालय की तलहटी में पानी के स्तर की निरंतर निगरानी से भूकंप का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने की सिफारिश कैलिफोर्निया चैपमैन विवि में पर्यावरण विज्ञान के शिक्षक प्रो. रमेश सिंह ने भारत के पृथ्वी विज्ञान(अर्थ साइंसेज) मंत्रालय से की है। रमेश सिंह अमेरिकी भूवैज्ञानिक संघ में नेचुरल हेजार्ड ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं। सिंह ने कहा, ‘भूकंप के अधिकतम प्रकोप वाले क्षेत्र में भूमिगत ऐक्वफर्स (चट्टान की परत के नीचे का जल) के जलीय स्तर का अध्ययन कर भूकंप का अनुमान लग सकता है। नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप के दौरान चट्टान के नीचे जमा हुए जल का अध्ययन कर इस तकनीक की पुष्टि की गई है।’ भूकंपीय लहरों के दौरान ऐक्वफर का विस्तार होता है। इसमें कई जगहों पर इसकी परत टूट जाती है जिससे पानी की दिशा मुड़ने लगती है। इससे आने वाले भूकंप का पता लगाया जा सकता है। रमेश सिंह और चीन के तीन अन्य भूकंप विशेषज्ञों के इस शोध को टेक्नोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है।