December 19, 2024

अस्पताल नही भूतिया घर कहिए, जनाब…

अस्पताल ऐसा जिसे खुद ईलाज की जरूरत

Faridabad/Poonam Chauhan : पिछले कई सालों से मरीजों की राह देख रहा, शहर का यह कंडम अस्पताल आज अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। मरीज का ईलाज करने वाले इस अस्पताल को आज खुद ईलाज और देख-रेख की जरूरत है। तिकोना पार्क, एनआईटी का श्रीराम जी धर्मार्थ अस्पताल आज भूतिया घर में तब्दील हो चुका है। अस्पताल में मरीजों का ईलाज भी राम भरोसे ही चल रहा है, क्योंकि यहां ना तो ईलाज में प्रयोग किए जाने वाले इंस्र्टूमेंट मौजूद है, ना ही साफ-सफाई की कोई व्यवस्था और ऊपर से एक या दो रूम को छोडक़र सारे कमरे कबाडख़ाने में तब्दील हो चुके हैं। आलम, यह है कि अस्पताल की ओ.पी.डी. कचरे, टूटे बैड और गद्दों से भरी हुई है। इतना ही नही अस्पताल का लेखा-जोखा विभाग भी कबाडख़ाना बना हुआ है ऐसे में बाकी क्या सुविधाएं मरीजों को दी जा रही होंगी, इसका अंदाजा तस्वीरों से लगाया जा सकता है।

– ओपीडी बनी कबाडख़ाना, पुराना रिकोर्ड गायब
ओपीडी और एकाउंस डिपार्टमेंट की शोभा इन दिनों इसमें भरा कचरा बढ़ा रहा है। ओपीडी रूम के बाहर साईन बोर्ड तो लगा है पर यहां हस्पताल का कचरा और टूटी चेयर रखी जाती है। वहीं एकाउंस डिपार्टमेंट की बात की जाए तो यहां रखी रिकोर्ड फाईले धूल फांक रखी है। फाईलों के रखने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है ऊपर से एकाउंस रूम में भी कचरा ही भरा हुआ है। ऐसे में किसी बड़ी घटना के घटित होने पर हस्पताल प्रशासन को पुराना रिकोर्ड दिखाना भारी पड़ सकता है।

– कहां गए डोनेट इंस्ट्रूमेंट
हस्पताल की स्थिति दयनीय बनी हुई है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि सोसायटी में डोनेट किए गए इंस्र्टूमेंट कहां है, जोकि मरीज के बेहर ईलाज के लिए संस्था को लोगों द्वारा डोनेट किया गया था। इसका जवाब तो सोसायटी के पदाधिकारी ही दे सकते है कि हस्पताल के इंस्र्टूमेंट कहां गए, लेकिन इससे सोसायटी की शाख पर प्रश्र चिन्ह जरूर लगता है।

– धूल फांक रहे बैड
अगर फैसिलिटी की बात करे तो यहां धूल से भरे गद्दे और टूटे-फूटे बैड ही लोगों को मिल रहे है। साफ-सफाई के अभाव में यहां रखे गद्दो पर मिट्टी की एक परत जम गई है लेकिन इनकी सफाई करने वाला कोई नहीं है मरीजो को मजबूरी में इन्ही पर लेटना पड़ रहा है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो अस्पताल खुद बीमार हो वह मरीजों को ईलाज कैसे करेगा।

– क्या कहते है ट्रस्टी
इस का नाम मेरे पिता श्रीराम जी के नाम पर हस्पताल का नाम 1989 में श्रीराम जी धर्मार्थ हस्पताल रखा गया। उस समय हस्पताल में मरीजों का हुजूम लगा रहता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां मरीजों का आना कम हो गया है। यह स्थिति सोसायटी को रन करने वाले पूर्व प्रधान की कमियों का नतीजा है। मेरा प्रयास है कि जल्द ही इस हस्पताल को पहले की स्थिति में वापस लाया जाए ताकि पहले की तरह गरीबों को सस्ती चिकित्सा मिल सके।
-कवल खत्री, प्रधान, श्रीराम धर्मार्थ हस्पताल सोसायटी।