Palwal/Alive News : सिविल सर्जन डॉ. ब्रह्म दीप ने बताया कि सिजोफ्रेेनिया एक गंभीर मानसिक रोग है जो की पूरी जनसंख्या के एक प्रतिशत लोगों को प्रभावित करता है। इस रोग में मस्तिष्क में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के कारण रोगी के मन में एक भ्रम की अवस्था उत्पन्न हो जाती है, जिसमें रोगी के विचारों में विकार आ जाता है। वह यह महसूस करने लग जाता है कि कोई उसके खिलाफ है और उसके विषय में बात कर रहे हैं। उसके विचारों पर बाहर से ही नियंत्रण किया जा रहा है, उसके विचार दूसरे लोगों को पता लग जाते हैं। भ्रम की अवस्था में रोगी को काल्पनिक आवाजें सुनाई देती हैं या उसको आवाज सुनाई देती हैं कि कोई उसके प्रति आक्रामक हो रहा है। इस तरह की काल्पनिक अनुभूति के कारण रोगी का व्यवहार बदल जाता है और वह इन सब अनुभवों को सही मानकर व्यवहार करता है। रोगी के लक्षण इस प्रकार के होते हैं सामान्यजन इस बीमारी को भूत-प्रेत और ऊपरी साए की वजह से मानने लग जाते हैं।
रिसर्च ने किया साबित, जल्द इलाज मिले तो कारगर
डॉ. ब्रह्मदीप ने आगे बताया कि इनमें से 34 प्रतिशत रोगी उत्तेजना की अवस्था में आ गए थे और 30 प्रतिशत रोगियों में व्यवहार नियंत्रण करना मुश्किल हो गया था। उनमें उट-पटांग बोलना, दौड़ भाग करना आदि लक्षण पाए गए। इन रोगियों के सभी रिश्तेदारों से पूछताछ करने पर यह पाया गया कि मात्र 16 प्रतिशत रोगी के उपचार के लिए तुरंत अस्पताल लाए गए थे और 84 प्रतिशत रोगी उपचार के लिए विलम्ब से अस्पताल लाए जाने वाले रोगियों में 53 प्रतिशत लोग ग्रामीण परिवेश से और किसान थे। वहीं 16 प्रतिशत लोग शहरी इलाकों से थे और शेष 11 प्रतिशत नौकरी पेशा व 8 प्रतिशत अन्य थे।
68 प्रतिशत लोग तांत्रिकों के फेर में उलझे
रिसर्च में सामने आया कि विलम्ब से चिकित्सा लेने वाले रोगियों में 68 प्रतिशत लोगों ने प्रारंभिक उपचार किसी तांत्रिक, मजार, मंदिर, पंडित या मौलवी से लिया था। वहीं 18 प्रतिशत रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सकों के पास गए। करीब आठ प्रतिशत प्राकृतिक चिकित्सा करा रहे एवं छह प्रतिशत यूनानी डॉक्टरों के पास चिकित्सा लेते रहे हैं। करीब 85 प्रतिशत रोगियों को तो यह भी मालूम नहीं था कि इसका इलाज हो सकता है और कहां हो सकता है। जल्दी उपचार लेने वालों की तुलना विलम्ब से उपचार लेने वाले रोगियों में बीमारी अधिक गंभीर पाई गई और उनके उन्माद को ठीक करने वाली ओषधिया भी अधिक मात्रा में दी गई।
यह निकला निष्कर्ष
डॉ. ब्रह्मदीप ने बताया कि सिजोफ्रेेनिया के रोग में उपचार विलम्ब से कराने के कारण रोगियों में अधिक अक्षमता देखने को मिलती है। इस शोध के बाद यह स्पष्ट है कि इस रोग के उपचार और मनोरोग चिकित्सा के विषय में लोगों को जानकारी अभी भी कम है, जबकि उपचार से रोगी ठीक हो जाते हैं और समाज में काम करने लायक हो जाते हैं। इसीलिए इस रोग के बारे में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया जाना चाहिए। इसे ध्यान में रखते हुए पलवल हॉस्पिटल द्वारा सभी रोगियों को कोरोना प्रोटोकोल का पालन करते हुए मास्क वितरित किए गए और समाजिक दूरी बनाए रखने व कोरोना नियमों का पालन करने की सलाह दी गई।