November 27, 2024

ध्यान लगाने से लाइफ हो सकती है स्ट्रेस फ्री

Alive News : यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने भाषणों में सेहत पर ध्यान देने की बात करते नज़र आते हैं. वो ख़ुद भी नियमित रूप से योग करते हैं.

तमाम देशों में योग बेहद लोकप्रिय हो रहा है. फ़िटनेस के प्रति लोगों की बढ़ती दीवानगी ने इसे करोड़ों का बिज़नेस बना दिया है.

दरअसल बदलते जीवनस्तर के चलते दिमाग़ी सुकून कहीं खो गया है. चौबीसों घंटे काम करने के इस दौर ने रोज़गार के मौक़े तो ख़ूब दिए.लेकिन, बदले में चैन और सुकून की नींद छीन ली. आज लगभग हर इंसान एक ख़ास बीमारी का शिकार है जिसका नाम है तनाव. इससे छुटकारा दिलाने के नाम पर तरह-तरह के ढकोसले भी हो रहे हैं.

सभी को ध्यान और योग की सलाह दी जाती है. कुछ हद तक ये फ़ायदेमंद है भी.1971 में अमरीकी सेना के जवान स्टीफ़न इसलस वियतनाम के युद्ध से घर लौटे तो काफ़ी परेशान थे. जंग ने उन्हें दिमाग़ी और जज़्बाती तौर पर तोड़कर रख दिया था.

उन्हें अजीब बेचैनी ने घेर लिया था. तभी किसी दोस्त ने उन्हें मेडिटेशन की सलाह दी. ध्यान करने से उन्हें कुछ हद तक फ़ायदा तो हुआ.लेकिन आज इतने साल बीत जाने के बाद भी जंग की भयानक यादें उन्हें गाहे-बगाहे परेशान करती रहती हैं. स्टीफ़न कहते हैं कि उन्हें ध्यान करने से काफ़ी हद तक राहत मिली थी, लेकिन तनाव से पूरी तरह निजात नहीं.

दरअसल ये एक तरह की बीमारी है जिसका नाम है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर यानी प्टसड.इस बीमारी की पहचान साल 2000 में लॉस एंजिल्स मेडिकल सेंटर ने की थी. माना जाता है कि कई तरह की ध्यान-साधनाएं चिंता और तनाव के शिकार लोगों के लिए रामबाण का काम करती हैं.

माइंडफुलनेस मेडिटेशन एक तरह की ध्यान-साधना है जो कि आजकल काफ़ी चलन में है. इसने सेहत के बाज़ार में काफ़ी मज़बूत पकड़ बना ली है.आज मेडिटेशन करोड़ों डॉलर का कारोबार बन गया है. इस ध्यान साधना के तहत मौजूदा स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना होता है. हालांकि ये अभी तक साफ़ नहीं हो पाया है कि इस साधना से दिमाग़ को कितना सुकून मिलता है.

ध्यान साधना का चलन हालांकि हज़ारों साल पुराना है. लेकिन मनोवैज्ञानिकों और दिमाग़ के डॉक्टरों ने चंद दशकों पहले ही इस पर गहराई से रिसर्च शुरू किया है.बहुत सी स्टडी साबित करती हैं कि मेडिटेशन हर तरह का तनाव दूर करती है. मरीज़ की दवाओं पर निर्भरता कम हो जाती है.

इन्हीं शोधों के आधार पर कई तरह की थेरेपी शुरू की गई हैं. इन्हीं में से एक थेरेपी है माइंडफुलनेस-बेस्ट कॉग्नेटिव थेरेपी.इस थेरेपी में साईकोथेरेपी और मेडिटेशन की मदद से मरीज़ की उस सोच को नियंत्रित किया जाता है, जो उसके तनाव की वजह बनती है. बहरहाल मेडिटेशन के असर पर मेडिकल रिसर्च की तरह कोई रिसर्च अभी तक नहीं की गई है. इसकी जगह मेडिटेशन के बुनियादी असर पर रिसर्च ज़्यादा हुई है.

ये कहना मुश्किल है कि मेडिटेशन, ज़हन के काम करने के तरीक़े पर असर डालती है. फिर भी इसका असर लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा.तनाव की बड़ी वजह होती है हर समय सोचते रहना. ज़्यादातर लोग हर समय कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं. पुरानी बातें याद करके उनका हिसाब-किताब करते रहते हैं, और आने वाले कल की तैयारी की फ़िक्र में घिरे रहते हैं.2010 में की गई रिसर्च में जब 2250 लोगों से उनकी दिनचर्या के बारे में पूछा गया. तो, पाया गया कि 47 फ़ीसद लोगों का ज़हन इधर उधर भटकता रहता है, जो उन्हें उदासी की तरफ़ ले जाता है.

जबकि ध्यान साधना में किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करके दिमाग़ को हर तरह की सोच से आज़ाद किया जाता है.2010 में की गई रिसर्च में जब 2250 लोगों से उनकी दिनचर्या के बारे में पूछा गया. तो, पाया गया कि 47 फ़ीसद लोगों का ज़हन इधर उधर भटकता रहता है, जो उन्हें उदासी की तरफ़ ले जाता है. जबकि ध्यान साधना में किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करके दिमाग़ को हर तरह की सोच से आज़ाद किया जाता है.

मेडिटेशन का दिमाग़ पर कितना असर होता है ये जानने के लिए दिमाग़ के डॉक्टरों ने भी रिसर्च की है.इनके मुताबिक़ दिमाग़ का विकास भले ही एक उम्र में आकर रूक जाता है लेकिन उसके आकार-प्रकार और तंत्रिकाओं में बदलाव हमेशा ही होते रहते हैं.
इंसान जैसे-जैसे नए हुनर सीखता है, उसका दिमाग़ उसी हिसाब से बदलता रहता है. उसमें नई तंत्रिकाएं जुड़ती रहती हैं. लेकिन मेडिटेशन से आए बदलाव कितने स्थाई होते हैं, ये कहना मुश्किल है.
जर्मनी में टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख के रिसर्चर ब्रेट्टा हॉलज़ल और अमरीका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल की रिसर्चर सारा लेज़र का कहना है कि मेडिटेशन दिमाग़ में याददाश्त वाले हिस्से को मज़बूत बनाने में मददगार होती है.प्रोफ़ेसर किंग का कहना है कि जो लोग पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर यानी PTSD का शिकार हैं, उनके लिए मेडिटेशन एक दवा का काम करता है.
लेकिन, अगर उनका इलाज भी चल रहा हो, तो मेडिटेशन दवाओं की जगह नहीं ले सकती. उनके लिए मेडिटेशन एक सहारा भर है. साथ ही उनका ये भी कहना है कि मेडिटेशन के लिए किसी क्लासरूम जाने की ज़रूरत नहीं है. मेडिटेशन ध्यान करने को कहते हैं. और ये घर बैठे भी किया जा सकता है.
अभी तक जितनी रिसर्च के नतीजे सामने आए हैं, उनकी बुनियाद पर एक बात साफ़ तौर पर कही जा सकती है कि मेडिटेशन से तनाव मुक्त होने में मदद मिलती है. लेकिन ये कुल मिलाकर हमारी दिमाग़ी सेहत के लिए कितना कारगर है, ये कहना मुश्किल है.