November 14, 2024

दलित से विवाह कर इनाम लेने वाले नदारद क्यों ?

भारत सरकार उन नवविवाहित जोड़ों को ढाई लाख रुपये देती है, जिन जोड़ों में पति या पत्नी में से कोई एक अनुसूचित जाति का हो.

अब तक यह शर्त थी कि उस जोड़े की सालाना आय पांच लाख रुपये से ज़्यादा न हो. केंद्र सरकार ने अपने ताज़ा फ़ैसले में पांच लाख रुपये आय की शर्त हटा दी है और इस योजना को तमाम आय वर्गों के लिए खोल दिया है.

यह योजना 2013 से चल रही है और इसे डॉ. आंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटिग्रेशन नाम दिया गया है. यह योजना केंद्र सरकार की है. इसके अलावा कई राज्य सरकारें भी अनुसूचित जाति के साथ होने वाली शादियों को प्रोत्साहित करती है. जातिमुक्त भारत की दिशा में यह सरकारी पहल है.

भारत जैसे देश में किसी परिवार के लिए ढाई लाख रुपये बड़ी रकम है. खासकर नवविवाहित जोड़ों को तो रुपयों की ज़रूरत और भी ज़्यादा होती है. इसलिए किसी को लग सकता है कि इस स्कीम के तहत प्रोत्साहन राशि लेने के लिए लाखों आवेदन आते होंगे और बड़ी संख्या में लोग यह रकम लेते होंगे.

दलित संग शादी करने पर मिलेंगे ढाई लाख
कोई और योजना होती तो एकमुश्त ढाई लाख रुपये पाने के लिए लाखों लोग आवेदन भेज देते. लेकिन इस स्कीम का लाभ उठाने वालों की संख्या चौंकाने वाली है. 2014 में सिर्फ 5 परिवारों ने यह रकम ली. 2015 में 72 और 2016 में 45 परिवारों ने यह प्रोत्साहन राशि ली. सरकार को इस योजना से बहुत उम्मीद भी नहीं थी. इस योजना के लिए सालाना सिर्फ़ 500 परिवारों का लक्ष्य रखा गया था.

ऐसा लगता है कि इस योजना के पात्र परिवारों की संख्या ही कम है. भारत में अनुसूचित जाति के 16.6 करोड़ लोग हैं. यह अमरीका की आबादी से ठीक आधी है. प्यू रिसर्च की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका में हर साल 1 करोड़ 10 लाख से ज़्यादा अंतरनस्लीय शादियां होती हैं. वहां होने वाली हर छठी शादी में दूल्हा और दुल्हन अलग अलग नस्लों के होते हैं. यानी श्वेत अश्वेत से, श्वेत हिस्पैनिक्स से, हिस्पैनिक्स ब्लैक्स से, ब्लैक्स एशियन से ख़ूब शादियां कर रहे हैं.

अमरीका ने यह सब 50 साल में देख लिया है
1967 तक अमरीका के कई राज्यों में अंतरनस्लीय शादियां अवैध थीं. उस साल रिचर्ड और मिलडर्ड लविंग ने वर्जिनिया स्टेट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा जीता, जिसके बाद पूरे अमरीका में अंतरनस्लीय शादियों को क़ानूनी मान्यता मिल गई.

इसके मुक़ाबले, ऐसा लगता है कि भारत में अंतरजातीय शादियां बेहद कम होती हैं. ऐसी शादियों के आंकड़े सरकार नहीं जुटाती. सरकार दरअसल जाति के आंकड़े ही नहीं जुटाती.

भारत में आख़िरी जाति जनगणना 1931 में हुई. 1941 की जनगणना दूसरे विश्व युद्ध की भेंट चढ़ गई और आजादी के बाद हुई 1951 में हुई पहली जनगणना के लिए उस समय की सरकार ने तय किया कि जाति नहीं गिनी जाएगी.

तर्क यह था कि जाति एक पुरातन पहचान है और भारत एक आधुनिक राष्ट्र बनने के रास्ते पर बढ़ रहा है. उम्मीद यह थी कि जाति नहीं गिनने से जाति खत्म हो जाएगी. जातियों की गिनती तब से ही बंद है, लेकिन जाति अपनी जगह पर कायम है.

क़ानूनी जरूरतों के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना की जाति है क्योंकि उन्हें आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की व्यवस्था संविधान में है.

बहरहाल, दलितों के साथ शादियों की प्रोत्साहन राशि लेने वालों की संख्या से यह संकेत तो मिल ही रहा है कि भारत में अंतरजातीय शादियां कितनी कम होंगी. 16.6 करोड़ आबादी वाले समुदाय में शादी करने का इनाम लेने के लिए अगर साल में 100 वैध आवेदन भी न आएं, तो स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.