November 19, 2024

जानें शनि प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला माना गया है। यह व्रत शनिवार को पड़ने के कारण शनि प्रदोष व्रत कहलाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ शनि देव की पूजा भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत के दिन शनि देव को काला तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द की दाल अर्पित करना शुभ माना जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल यानि संध्या के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले आरंभ कर दी जाती है। इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से लम्बी आयु का वरदान प्राप्त होता है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
त्रयोदशी तिथि के दिन सूरज उगने से पहले स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण कर लें एवं व्रत का संकल्प करें। शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर अथवा घर पर ही बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। प्रदोष बेला में फिर से भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने के बाद गंगाजल मिले हुए शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें। शिवलिंग पर शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें एवं शिव चालीसा का पाठ करें। तत्पश्चात कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती कर भूल-चूक की क्षमा मागें।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों में शिवजी को शनिदेव का आराध्य माना गया है, इसलिए शनि प्रदोष शिवजी की पूजा करने से आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और शनि के अशुभ प्रभावों से भी राहत मिलती है। मान्यता यह भी है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान संबंधी परेशानियां भी दूर होती हैं। पुराणों के अनुसार प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं, इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं।