November 15, 2024

‘पद्मावती’ नहीं ख़िलजी के साथ हुआ…. अन्याय

तुर्क मूल के अलाउद्दीन ख़िलजी 1296 में दिल्ली के सुल्तान बने थे. 721 साल बाद एक फ़िल्म बनी है ‘पद्मावती’ जिसमें रणवीर सिंह ने अलाउद्दीन ख़िलजी का किरदार निभाया है. किसी भी फ़िल्म में तीन किरदार अहम होते हैं. हीरो, हीरोइन और विलेन. इस फ़िल्म के विलेन खिलजी हैं लेकिन क्या बीस साल तक दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन ख़िलजी वाकई में विलेन थे या इतिहास उनके बारे में कुछ और कहता है?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के अध्यक्ष और मध्यकालीन भारत के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सैयद अली नदीम रज़ावी कहते हैं, “फ़िल्म पद्मावती में काल्पनिक किरदार महारानी पद्मिनी को किस तरह से दिखाया गया है इसे लेकर तो सब विरोध कर रहे हैं, लेकिन भंसाली ने असल अन्याय तो अलाउद्दीन ख़िलजी के साथ किया है.”

एतिहासिक किरदार
प्रोफ़ेसर सैयद अली नदीम रज़ावी के मुताबिक़ “इस फ़िल्म में अलाउद्दीन खिलजी को ऐसा दिखाया गया है जैसे वो कोई बर्बर, क्रूर, जंगली और वहशी शासक हो. नोंच-नोंच के खाता हो, अजीब कपड़े पहनता हो, लेकिन असल में वो अपने दौर के बहुत सांस्कृतिक व्यक्ति थे जिन्होंने कई ऐसे क़दम उठाए जिनका असर आज भी दिखता है.”

रज़ावी कहते हैं, “अलाउद्दीन एक ऐतिहासिक किरदार हैं. उनके जीवन का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है. भारत के सबसे प्रबुद्ध बादशाहों में उनका नाम आता है.”

दिल्ली पर तुर्कों की हुक़ूमत की शुरुआत के बाद से खिलजी वंश ने ही हिंदुस्तान के लोगों को भी हुक़ूमत में शामिल किया.

प्रोफ़ेसर रज़ावी कहते हैं, “खिलजी वंश से पहले दिल्ली पर शासन करने वाले सुल्तान जिनमें इल्तुतमिश, बलबन और रज़िया सुल्तान भी शामिल हैं अपनी सरकार में स्थानीय लोगों को शामिल नहीं करते थे. सिर्फ़ तुर्कों को ही अहम ओहदे दिए जाते थे इसलिए उसे तुर्क शासन कहा जाता था.”

रज़ावी की राय में, “लेकिन जलालउद्दीन ख़िलजी के दिल्ली का सुल्तान बनने के साथ ही हिंदुस्तानी लोगों को भी शासन में शामिल करने का सिलसिला शुरू हुआ. इसे ख़िलजी क्रांति भी कहा जाता है. अलाउद्दीन ख़िलजी ने इस काम को आगे बढ़ाया और स्थानीय लोगों को सरकार में हिस्सेदारी दी. अब सिर्फ़ तुर्क सरकार नहीं थी बल्कि हिंदुस्तानी मूल के लोग भी हुक़ूमत में शामिल थे.”

प्रोफ़ेसर रज़ावी कहते हैं, “जिस गंगा-जमनी तहज़ीब के लिए हिंदुस्तान मशहूर है और जिसे बाद में अकबर ने आगे बढ़ाया उसकी शुरुआत अलाउद्दीन ख़िलजी ने ही की थी.”

मूल्य नियंत्रण की अलाउद्दीन ख़िलजी की नीति को उस दौर का चमत्कार कहा जा सकता है. अलाउद्दीन ख़िलजी ने बाज़ार में बिकने वाली सभी चीज़ों के दाम नियंत्रित कर दिए थे.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर नज़फ़ हैदर कहते हैं, “बाज़ार से संबंधित अलाउद्दीन ख़िलजी की नीतियां बहुत मशहूर हैं. उन्होंने न सिर्फ़ बाज़ार को नियंत्रित किया था बल्कि चीज़ों के दाम भी तय कर दिए थे.”

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एप्लाइड सांइसेज़ में प्रकाशित इतिहास की लेक्चरर रुचि सोलंकी और बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन के लेक्चरर डॉक्टर मनोज कुमार शर्मा के एक लेख के मुताबिक अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने दौर में हर चीज़ के दाम तय कर दिए थे.

एक उच्च नस्ल का घोड़ा 120 टके में बिकता था, दुधारू भैंस 6 टके में और दुधारू गाय 4 टके में बिकती थी. गेंहूं, चावल, ज्वार आदि के दाम भी निश्चित कर दिए थे. तय दाम से अधिक पर बेचने पर सख़्त कार्रवाई की जाती थी.

उस ज़माने के इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बर्नी (1285-1357) के मुताबिक ख़िलजी ने दिल्ली में बहुखंडीय बाज़ार संरचना स्थापित की थी जिसमें अलग-अलग चीज़ों के लिए अलग-अलग बाज़ार थे.

उदाहरण के तौर पर खाद्यानों के लिए अलग बाज़ार था, कपड़े और तेल और घी जैसे महंगे सामानों के लिए अलग बाज़ार था और मवेशियों का अलग बाज़ार था.

शाही भंडार
प्रोफ़ेसर हैदर ये भी मानते हैं कि अलाउद्दीन ख़िलजी के बाज़ार में मूल्य नियंत्रित करने की एक बड़ी वजह ये भी है कि उनके पास एक बड़ी सेना थी जिसे सामान मुहैया कराने के लिए उन्होंने दाम निश्चित कर दिए थे.

कालाबाज़ारी रोकने के लिए खिलजी ने शाही भंडार शुरू किए थे. इनमें बड़ी मात्रा में खाद्यान रखे जाते थे और यहीं से डीलरों को मुहैया कराए जाते थे ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि बाज़ार में किसी चीज़ की कमी न हो और कालाबाज़ारी न की जा सके.

किसी भी किसान, व्यापारी या डीलर को तय सीमा से अधिक खाद्यान रखने की अनुमति नहीं थी और न ही तय दाम से अधिक पर बेचने की अनुमति थी. ख़िलजी जमाख़ोरों के ख़िलाफ़ बेहद सख़्त कार्रवाई करते थे.

सुल्तान ने सिर्फ़ बाज़ार में मूल्य ही नियंत्रित नहीं किए थे बल्कि जमाखोरी और सामानों के परिवहन को भी नियंत्रित किया था. बाज़ार में आने और जाने वाले सामान का पूरा हिसाब रखा जाता था. एक व्यक्ति को कितनी मात्रा में सामान बेचा जा सकता है ये भी तय कर दिया गया था.