Chandigarh/Alive News: सरकारी और निजी स्कूलों के बच्चे भावात्मक रूप से सशक्त नहीं हैं। क्योंकि स्कूलों में विद्यार्थियों का जोर समझकर पढ़ने की बजाए रटकर सीखने पर है। इसी कारण विद्यार्थियों को प्रक्रियात्मक सवालों से निपटने में अधिक कठिनाई नहीं होती है, लेकिन अगर वही सवाल थोड़ा घुमाकर दिया जाता है तो विद्यार्थी लड़खड़ा जाते हैं। यह सेंटर फार साइंस आफ स्टूडेंट लर्निंग (सीएसएसएल) की ओर से देश भर के सरकारी और निजी स्कूलों में अध्ययन किया गया है। सीएसएसएल ने इससे संबंधित पांच रिपोर्ट जारी की हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जो नई राष्ट्रीय नीति के अनुसार तैयार किए जा रहे पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क का हिस्सा बन सकता है। अध्ययन के अनुसार सरकारी और निजी स्कूलों के विद्यार्थी अपने स्कूलों को सुरक्षित और सीखने-सिखाने के लिहाज से बहुत अनुकूल नहीं मानते। उनमें अलग-अलग स्थितियों में अध्ययन ने चार पहलुओं पर छात्रों की सफलता और उनकी देखभाल के स्तर का आकलन किया। चार पहलू थे-विद्यार्थियों का सामाजिक-भावनात्मक कौशल, उनका सकारात्मक दृष्टिकोण, अकादमिक उपलब्धि और उनके स्कूलों का वातावरण। अध्ययन के अनुसार बच्चों में एक दूसरे के साथ जुड़ने का कौशल सबसे कमजोर स्थिति में है।
छात्रों का भावनात्मक रूप से सशक्त होना जरूरी
विद्यार्थियों के सामाजिक-भावनात्मक कौशल का स्कूलों के वातावरण से सीधा संबंध है। इस कसौटी पर छात्राओं का प्रदर्शन छात्रों की अपेक्षा बेहतर रहा। इस अध्ययन में सरकारी और निजी स्कूलों से 37275 छात्रों, 1452 शिक्षकों, 586 प्रधानाध्यापकों और 4862 माता-पिता को शामिल किया गया। स्कूल शिक्षा के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप के मुताबिक छात्र-छात्राओं का सामाजिक-भावनात्मक रूप से सशक्त होना जरूरी है। इसका महत्व समझा जाना चाहिए। सरकारी और निजी स्कूलों में इसके लिए खास तौर पर प्रयास होना चाहिए कि बच्चों का भावनात्मक कौशल कैसे बेहतर हो और उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हो।