Delhi/Alive News: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस केएम जोसेफ ने चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना की है. जस्टिस जोसेफ का कहना है कि अगर चुनाव प्रचार के दौरान धर्म, भाषा, जाति और संप्रदाय के इस्तेमाल किए जाने पर आयोग समय रहते कार्रवाई नहीं करता है तो वह संविधान का सबसे बड़ा अपमान है।जस्टिस केएम जोसेफ ने 30 मई को केरल के एर्नाकुलम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में एक लेक्चर दिया. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस लेक्चर का विषय था – ‘बदलते भारत में संविधान’. इस लेक्चर में उन्होंने संविधान, धर्म निरपेक्षता, मीडिया, न्यायपालिका, अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी.
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि चुनाव आयोग को वोट के लिए धार्मिक पहचान का इस्तेमाल करने वाले नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।जस्टिस जोसेफ ने इसकी चर्चा करते हुए जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा-123(3) का जिक्र किया. बताया कि साल 2017 में भी एक फैसले में कोर्ट ने इस कानून का जिक्र कर कहा था कि उम्मीदवार या उनके विरोधी के धर्म या किसी भी व्यक्ति के धर्म के नाम पर अपील करना प्रतिबंधित है.
द साउथ फर्स्ट की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आगे कहा कि चुनाव प्रचार में धर्म की कोई जगह नहीं है. राजनेताओं को अपनी सीमा के बारे में पता है. जस्टिस जोसेफ के मुताबिक, उन्हें (राजनेताओं) पता है कि उनके खिलाफ आचार संहिता या कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में सक्रिय रूप से कार्रवाई नहीं करना, लोकतांत्रिक सिद्धांतों और देश के संस्थापकों के कामों को कमजोर करने जैसा है.जस्टिस केएम जोसेफ ने राज्यपालों की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए. साउथ फर्स्ट के मुताबिक, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि राज्यपालों को केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में काम नहीं करना चाहिए और एक निष्पक्ष स्टैंड लेकर रहना चाहिए.
उन्होंने मणिपुर की घटना को लेकर मीडिया की भूमिका पर भी टिप्पणी की. कहा कि अगर मणिपुर जैसी घटनाओं को मीडिया सही तरीके से दिखाए तो सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं.