New Delhi/Alive News : बिहार में महागठबंधन की सरकार कार्यकाल के बीच में ही गिर गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और अब BJP के साथ गठबंधन की सरकार बना रही है. नीतीश कुमार सीएम पद की और सुशील कुमार मोदी डिप्टी सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. बुधवार शाम के इस घटनाक्रम ने अचानक देश का सियासी पारा चढ़ा दिया है. अभी 2017 चल रहा है कि ऐसे में 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि वह सरकार बना लेगी.
1. 2019 के लिए महागठबंधन का दायरा कम करना था जरूरी
जहां बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ एक बार फिर 2019 के चुनाव में जाने की बात कह चुकी है और यह मानकर चल रही है कि वह सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी तो बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती महागठबंधन की थी. इतना ही नहीं बीजेपी और एनडीए के सामने भी यह सबसे बड़ी मुश्किल होती कि यह महागठबंधन अपना दायरा बढ़ाता और यूपी जैसे राज्य में भी एनडीए के सामने एक विराट चुनौती पेश करता.
2. ऐसे तैयार की गई रणनीति
2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी और सहयोगी दलों को जो हार मिली वह बीजेपी के लिए अप्रत्याशित थी और बीजेपी के रणनीतिकारों के गणित को फेल करती दिखी. यह वही दौर था जब बीजेपी ने अपने भीतर बदलाव किया और धीरे-धीरे नीतीश कुमार पर हमले कम करने की योजना बना ली और केवल लालू यादव और आरजेडी पर हमले तेज हो गए. इसी दौरान बीजेपी ने लालू यादव के केंद्र में कार्यकाल और राज्य की राजनीति के मामलों को लेकर हमले तेज कर दिए. राज्य बीजेपी के अध्यक्ष सुशील मोदी ने तो बाकायदा महीने की एक तारीख तक तय कर दी थी जब वह एक नया मुद्दा लेकर लालू यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे. बीजेपी ने लालू यादव और उनके परिवार को घेरना शुरू कर दिया. लालू यादव पहले ही भ्रष्टाचार के मामले में दोषी करार हैं और फिलहाल बेल पर जेल से बाहर हैं.
3. कोई रिस्क नहीं ले सकती बीजेपी
केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने कई योजनाओं को 2022 और 2024 तक के लिए घोषित किया है और पार्टी तथा सरकार की मंशा साफ है कि देश में उनके हिसाब से जो बदलाव हो रहे हैं उसका श्रेय कोई और न ले. यही वजह है कि बीजेपी किसी भी तरह राजनीतिक दृष्टि से देश में सबसे अहम राज्य यूपी-बिहार में किसी प्रकार का कोई रिस्क नहीं लेती. इस कारण पिछले दो सालों में बीजेपी की केंद्र की सरकार और राज्य में बीजेपी की इकाई ने भ्रष्टाचार को ही सबसे अहम मुद्दा बनाया.
4. सुशासन बाबू को ये कैसे मंजूर होता
धीरे-धीरे बीजेपी के इस हमले की छीटें नीतीश कुमार पर भी पड़ने लगी. बीजेपी लगातार नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने का दबाव बनाती रही. वहीं, नीतीश कुमार जिन्हें बिहार में लोग ‘सुशासन बाबू’ भी कहने लगे हैं, इससे परेशान हो उठे. बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि बेदाग ही है. उनपर अभी तक कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है और शराबबंदी और नोटबंदी के समर्थन और बेनामी संपत्ति पर उनके वार ने उन्हें और ऊंचा बना दिया. तभी यह तय हो गया कि महागठबंधन के दो अहम दलों में तनाव बनना तय था और गठबंधन की डोर पर टेंशन इतना बढ़ा की वह बुधवार शाम को टूट गया. इसी के साथ नीतीश कुमार की ‘घर वापसी’ हो गई.
5. बिहार के साथ-साथ यूपी की चुनौती को भी किया खत्म
अब जाकर बीजेपी के राजनीतिक रणनीतिकारों को कुछ राहत मिली होगी. क्योंकि 2019 में अगर बीजेपी को कहीं से सबसे बड़ी चुनौती मिलनी थी तो वह बिहार और यूपी में मिलनी थी. इतना ही नहीं बीजेपी ने सीधे तौर पर एनडीए के सामने लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्यों पर उन्हें कड़ी चुनौती देने वालों को शांत कर दिया है. बीजेपी ने न केवल बिहार में महागठबंधन तोड़ा है बल्कि बीजेपी ने इसी के साथ यूपी में बन रही महागठबंधन की संभावनाओं पर भी सेंध लगा दी है. यहां से यह साफ है कि बीजेपी ने आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में आधी बाजी अभी से मार ली है.