Raipur/Alive News : आमतौर पर लोगों को रावण के दर्शन साल में एक बार वो भी विजय दशमी के दिन ही होते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में लोगों का सामना रावण से रोजाना होता है. लोग उसे देख कर दो-चार नहीं होते बल्कि लोग रावण को सामने पाकर अपने गिरेबान में झांकना नहीं भूलते. ये रावण लोगों को उनके चाल-चलन का आईना दिखाता है. एक चैनल के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार दरअसल छत्तीसगढ़ में कॉन्क्रीट के रावण बनाने की सैंकड़ों साल पुरानी परम्परा है जो आज भी जस की तस चली आ रही है. यहां दशहरे के दिन रावण दहन भी होता है लेकिन कॉन्क्रीट से तैयार स्थाई रावण लोगों को 24 घंटे बुराइयों के अंत की शिक्षा देता है.
रायपुर के रावण भाटा इलाके में कॉन्क्रीट से तैयार स्थाई रावण के रंग-रोगन और साज-सज्जा की तैयारी जोरों पर है. रावण का श्रृंगार पूरी तन्मयता के साथ किया जा रहा है. कारीगर उसकी शानोशौकत में कोई कमी नहीं रख रहे हैं. ये बेहद मजबूत और स्थाई रावण है, हालांकि इसके इर्द-गिर्द आतिशबाजी से लैस बांस और कागज़ की लुगदी से तैयार रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले भी तैयार किए गए हैं.
पांच सौ साल पुरानी परंपरा
आतिशबाजी के साथ कागजी रावण तो चंद मिनटों में जल कर नष्ट हो जाएगा. लेकिन कॉन्क्रीट से तैयार स्थाई रावण लोगों को हमेशा इस बात की शिक्षा देगा कि वह नेकी और सच्चाई की राह पर चलें. लोग रावण को सामने पाकर अपने गिरेबान मे झाकना नहीं भूलते. यह रावण याद दिलाता है कि हमेशा घृणा, घमंड और बुराइयों से दूर रहो, वरना उसकी तरह तुम्हारा भी अंत होगा. चाहे तुम कितनी भी योग्य और बलवान क्यों ना हो.
छत्तीसगढ़ मे कॉन्क्रीट के रावण बनाने की अनूठी परंपरा है. ये परंपरा सैंकड़ों साल से चली आ रही है. हर एक गांव, कस्बे और शहर में आबादी के अनुसार रावण बनाये जाते हैं. जिन इलाकों में ये रावण स्थापित किये जाते हैं उसे रावण भाटा कहा जाता है. हर एक गांव और कस्बे में रावण का ठिकाना मुक़र्रर है. कॉन्क्रीट के रावण बनाने का मकसद है नई पीढ़ी को रावण के दुर्गुणों से परिचित करवाना ताकि उसको देख कर लोग बुराइयों से बचने के लिए खुद को तैयार कर सकें. यहां के तमाम बाशिंदों के मुंह में रावण की गाथा भरी पड़ी है. यह लोग रावण पर चौपाइयां और कविताएं खूब गाते हैं.
रावण रोज देता है सीख
शहर हो या फिर ग्रामीण इलाका हर जगह कॉन्क्रीट के रावण के लिए जगह है. रावणों की ऊंचाई 50 से 100 फीट तक लम्बी-चौड़ी रखी जाती है ताकि लोगों को रावण के दर्शन दूर से ही हो जाएं. बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर पल रावण को याद रखते हैं ताकि उनके मन में रावण जैसी बुराइयां ना पनप पायें. विजय दशमी के दिन रावण भाटा में लोगो की भारी भीड़ जुटती है. सुबह से ही मेला लग जाता है. कोई पूजा-पाठ के लिए यहां इकठ्ठा होता है , तो कोई बरसों पुरानी इस परंपरा से रूबरू होने के लिए यहां आते हैं. रावण के आगे शीश नवाते हैं और उसका शुक्रिया अदा करते हैं ताकि उनके भीतर रावणी प्रवत्ति का वास ना हो पाए. बुजुर्गों की मानें तो कॉन्क्रीट के रावणों की मौजूदगी के चलते उनके घर परिवार ही नहीं बल्कि आम लोग भी बुराइयों से बचे हुए हैं.
छत्तीसगढ़ मे कॉन्क्रीट के रावण बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है. पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इस परंपरा का अनुसरण करते चले आ रहे हैं. जिन इलाकों में बसाहट शुरू होती है उन इलाको में एक हिस्सा रावण भाटा के लिए तय कर दिया जाता है ताकि उस स्थान पर कॉन्क्रीट का रावण बनाया जा सके. दशहरे के दिन आस्था और भक्ति का अनूठा संगम रावण भाठा में देखने को मिलता है.