New Delhi/Alive News: प्राचाीन भारतीय समाज में गुरु का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। मां को इंसान का पहला गुरु माना गया है। शिक्षक से ही ज्ञान प्राप्त कर हम सफलता को पाते हैं और जीवन में आने वाली चुनौतियों से लड़ना सीखते हैं। चीन से गुरु शिष्य का एक मामला सामने आया है जिसमे एक टीचर ने अपनी क्लास की बच्ची को इतना पीटा कि खोपड़ी से दिमाग ही बाहर आ गया। तो आइये जानते हैं इस खबर को थोड़ा विस्तार से
एक 9 साल की बच्ची को अस्पताल ले जाया गया। उसकी खोपड़ी में इतने जख्म थे कि आप सोच नहीं सकते। उसे कथित तौर पर टीचर ने मेटल से बने स्केल से पीटा। सिर पर इतनी बार स्केल मारा गया कि दिमाग ही लगभग बाहर आ गया था। खोपड़ी में हड्डी घुस गई थी। ये मामला चीन के हुनान प्रांत का है।
यहां के बोकाई मीक्सिहु प्राइमरी स्कूल की टीचर को स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उसने बच्ची के सिर पर इतना मारा कि 5 सेंटीमीटर गहरा घाव हो गया, जिससे बच्ची की खोपड़ी बुरी तरह चोटिल हो गई। उसे क्यों इतना मारा गया इसकी जानकारी अभी नहीं मिल पाई है. ये घटना 6 सितंबर को हुई थी। टीचर की पहचान सोंगसों माउमिंग के तौर पर हुई है। जब बच्ची की हालत खराब हुई, तो उसे स्कूल में मौजूद डॉक्टर के पास ले जाया गया। स्कूल ने इसे एक मामूली सी चोट बताया और कहा कि बस टांके लगाने की जरूरत है। मगर लड़की की हालत बिगड़ती देख स्कूल का स्टाफ उसे अस्पताल ले गया।
कई घंटों तक चलता रहा ऑपरेशन
जब जांच कराई गई तो पता चला कि खोपड़ी में फ्रैक्चर आया है। उसकी हड्डियां टूट गई थीं और तुरंत सर्जरी की जरूरत पड़ी।ऑपरेशन कई घंटों तक चलता रहा. शुरुआत में तो डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने से ही मना कर दिया था। माता-पिता की मंजूरी नहीं होने के चलते ऐसा हुआ।
बाद में उसके माता-पिता को सूचना दी गई। उसकी मां ने बताया कि स्कूल का डॉक्टर साथ आया था। वो अस्पताल में डॉक्टरों से बोलने लगा कि बस टांके लगा दो। लेकिन जब जांच की गई तो फ्रैक्चर का पता लगा। पीड़ित बच्ची के पिता ने बताया कि उनकी बेटी अब भी आईसीयू में है। स्कूल की तरफ से बाद में परिवार से कोई संपर्क नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘स्कूल की ओर से अभी तक कोई फीडबैक नहीं आया है। मुझे नहीं पता कि अब क्या सोचूं, लेकिन मैं जो चाहता हूं वो बस ये कि मेरी बेटी बच जाए। वहीं स्कूल का कहना है कि वो पुलिस की जांच में सहयोग करेगी ।
भारत में भी सामने आए क्रूरता के मामले
भारत में भी इससे पहले टीचर्स की क्रूरता से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। दो दिन पहले की ही बात है। यूपी से एक मामला सामने आया। एक 17 साल की लड़की ने फंदे से लटककर सुसाइड कर लिया। परिवार ने इसके लिए उसकी टीचर को जिम्मेदार ठहराया है। 5 सितंबर को स्कूल में टीचर्स डे मनाया गया था।इस दौरान एक टीचर ने डांस किया। उसका वीडियो लड़की ने व्हाट्सएप स्टेटस पर लगा दिया। इस पर टीचर ने फोन पर काफी धमकाया और नाम काटने की धमकी दी। जिसके बाद लड़की ने ये कदम उठा लिया।
अगस्त महीने में कानपुर से एक मामला सामने आया। यहां इंटर की छात्रा को उसका टीचर बात बात पर मैसेज करके परेशान कर रहा था। वो इससे इतना परेशान हुई कि सुसाइड कर लिया। दूसरी तरफ आजमगढ़ के इस मामले की भी बीते महीने खूब चर्चा हुई। यहां 11वीं में पढ़ने वाली लड़की के बैग में फोन मिला था। जिसके बाद प्रिंसिपल ने काफी परेशान किया।अपने ऑफिस के बाहर सवा घंटे तक खड़ा रखा। जिसके बाद लड़की ने स्कूल की ही तीसरी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। जमीन पर पड़ा लड़की का खून तक स्कूल ने साफ करवा दिया। बाद में क्लास टीचर और प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई। ऐसे तमाम मामले हैं । अगर कोई लिस्ट निकाली जाए, तो वो कभी खत्म ही नहीं होगा ।
कौन सी बात समझने की है जरूरत?
ये अब पहले वाला जमाना नहीं रहा, जब बच्चे अपने साथ होने वाली हर छोटी बड़ी घटना माता पिता को बताते थे। या वो टीचर से डंडे खाने के बाद भी वही हुड़दंग जारी रखें. ये जमाना इंटरनेट वाला है।वो जमाना जब न तो माता पिता को बच्चों से बात करने का वक्त मिल पाता है और न ही बच्चों के पास माता पिता को ये सब बताने की हिम्मत होती है।
मानसिक तनाव वाले इस जमाने में बच्चे अब सेंसिसें टिव होते जा रहे हैं। उन्हें कोई हल्का सा डांट भी दे, तो वही चीज उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख देती है। उन्हें अपमानित महसूस होता है। जिसका सामना वो नहीं कर पाते। अपने इसी डर के कारण वो जान तक दे देते हैं। एक दूसरी जरूरी बात ये कि टीचर बच्चों को अगर प्यार से समझाएं तो वो समझ जाएंगे, नहीं समझ रहे, तो दूसरे उपाय अपनाएं। लेकिन उन्हें पीटना या धमकाना कहां तक वाजिब है?
ऐसी कैसी क्रूरता? कि बच्चे को इतना पीटा या इतना डांटा कि उसकी जान ही खतरे में पड़ गई। उनके मानसिक स्वास्थ्य या वो किन दिक्कतों से गुजर रहा है, इसका कौन ध्यान रखेगा? वयस्क या टीनेजर्स तब भी जिंदगी को इतना समझ जाते हैं, कि वो अपने साथ होने वाली किसी घटना को हैंडल कर सकें। लेकिन बच्चे इतने मजबूत नहीं होते. न तो शरीर से और न ही दिल से. उनके साथ फूल जैसा बर्ताव किया जाना चाहिए, न कि अपराधियों जैसा।