अब लड़कियाँ 11 साल की उम्र के बजाय नौ वर्ष में ही यौवन की दहलीज को छू रही हैं। इसका कारण मोटापा या आहार श्रृंखला पर पड़ता रासायनिक असर है। द संडे टाइम्स’ की खबर के मुताबिक एक नए अध्ययन में एक हजार लड़कियों पर शोध के बाद यह बात सामने आई कि उनके वक्ष का विकास औसतन नौ वर्ष 10 महीने की आयु में ही होने लगता है। यह 1991 में हुए समान तरह के अध्ययन में बताई गई उम्र से एक वर्ष कम है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह रुझान ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में देखा गया है। अमेरिका से मिले आँकड़े भी कुछ ऐसे ही संकेत देते हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि कम उम्र की लड़कियाँ (Girls) यौन परिवर्तन से तालमेल नहीं बैठा पातीं, क्योंकि इस आयु में वे प्राथमिक स्कूलों में ही पढ़ रही होती हैं। इस तरह के परिवर्तन से उनमें दीर्घकाल में स्तन कैंसर विकसित होने का खतरा हो सकता है।
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के अस्पताल के एंडर्स जूल ने कहा हम यह जानकर बेहद आश्चर्यचकित हैं कि महज 15 वर्ष की अवधि में इस तरह का बदलाव आ गया। अगर लड़कियाँ जल्दी परिपक्वता की ओर बढ़ रही हैं तो किशोरवय की समस्याएँ उन्हें पहले ही होने लगेंगी और बाद में उनमें बीमारियाँ होने का खतरा विकसित हो जाएगा।
जूल ने कहा इसके पीछे जो कारण हो सकते हैं, उसे लेकर हमें इस बारे में चिंतित होना चाहिए। ये स्पष्ट संकेत हैं कि हमारे बच्चों को कोई चीज प्रभावित कर रही है, फिर चाहे वह जंक फूड हो, पर्यावरण में घुले रसायन हों या शारीरिक श्रम की कमी हो।
डेनमार्क का एक दल अब इस अध्ययन के लिए लड़कियों के रक्त और मूत्र के नमूने ले रहा है, ताकि यह देखा जा सके कि क्या कम उम्र में परिपक्वता और ‘बाइसफेनोल ए’ के बीच कोई संबंध है। ‘बाइसफेनोल ए’ टीन के डिब्बों और दूध पिलाने में प्रयुक्त होने वाली बोतलों में पाया जाने वाला प्लास्टिक है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यौवनारंभ के पीछे एक और कारक आहार हो सकता है। आज की पीढ़ी के बच्चे अपनी पिछली पीढ़ियों के मुकाबले ज्यादा खा रहे हैं। कई मामलों में उनमें मोटापा हो रहा है। बच्चों में हारमोन से जुड़े असंतुलन के विशेषज्ञ रिचर्ड स्टेनहोप ने कहा कि वे यह देख रहे हैं कि बच्चे कम उम्र में यौवन की दहलीज छू रहे हैं। उन्होंने कहा किशोरवय में इस तरह की चीजों का अनुभव काफी मुश्किल भरा होता है, लेकिन जब 10 या 11 वर्ष की उम्र में ही ऐसा होने लगे तो यह कहीं बदतर होगा।