Faridabad/Alive News: सीओपीडी की रोकथाम और प्रबंधन के लिए जहां जीवनशैली में सुधार की अहम भूमिका होती है, वहीं इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और इस पर काबू पाना भी बहुत जरूरी होता है, खासकर जब एनसीआर में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका हो। सीओपीडी फेफड़े से जुड़ी एक सामान्य, साध्य और उपचार योग्य बीमारी है लेकिन देश में यह गैर-संचारी रोग से होने वाली मृत्यु का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी तकलीफों के साथ ही लोगों के संपूर्ण स्वास्थ्य पर गहरा संकट मंडरा रहा है, खासकर क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोग (सीओपीडी) के मामले भी बढ़ने लगे हैं। हर साल इस मौसम में दिल्ली और एनसीआर खराब हवा और प्रदूषण की चपेट में आ जाता है जिससे हम सबके लिए जीवन मुश्किल हो जाता है।
फेफड़े की स्थिति के बारे में आम लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल 17 नवंबर को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस साल के थीम ‘स्वस्थ फेफड़े-इससे ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं’ का उद्देश्य इस बात पर जोर देना है कि कोविड काल में भी सीओपीडी की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। मैक्स हॉस्पिटल, वैशाली में पल्मोनोलॉजी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. शरद जोशी ने कहा, ‘सीओपीडी से जुड़ी समस्याएं आम तौर पर आधी उम्र के बाद लक्षण के रूप में उत्पन्न होती हैं जिसमें पीड़ित सांस लेने में दिक्कत, सांस फूलने या सांस नहीं ले पाने की दिक्कत महसूस करता है।
ये लक्षण समय के साथ सिगरेट या बीड़ी पीने या परोक्ष धूम्रपान करने, धूल, धुआं या किसी अन्य जहरीले केमिकल के संपर्क में आने जैसे पर्यावरणीय प्रदूषण की चपेट में आने के कारण बढ़ते जाते हैं। जिन्हें पहले से फेफड़े संबंधी शिकायतें हैं, उन्हें प्रदूषक तत्वों में संपर्क में आने के कारण अस्थमा या सीओपीडी अटैक का खतरा ज्यादा रहता है। धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों की सेहत जल्दी खराब होने की ज्यादा आशंका रहते हैं और उन्हें सीओपीडी का बड़ा खतरा रहता है। लिहाजा धूम्रपान का त्याग करना इस बीमारी से बचने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।