November 16, 2024

सूरजकुंड मेला: महिलाओं का मन मोह रही बनारसी साड़ियां

Faridabad/Alive News: महात्मा गांधी ने जब विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया था तब हमारी खादी ने और हमारे हैंडलूम ने स्वतंत्रता आंदोलन को नए आयाम दिए। भले ही उस समय खादी हमारी मजबूरी की जरूरत थी, लेकिन आज हमारे हैंडलूम अपनी विशेषता, भव्यता व खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है।

हमारी खादी को इतनी ऊंचाइयों तक ले जाने में देश के शमीम अहमद जैसे हथकरघा से जुड़े लोगों का हाथ है। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला में खड्डी पर बनी बनारसी साडिय़ों की धूम मची हुई है। मेले में खड्डी पर कारीगरों को बुनाई करता देख पर्यटक दिन भर अचरज भरी नजरों से देखते रहते हैं। बनारस के शमीम अहमद ने बताया कि साडिय़ों के मामले में बनारसी साडिय़ां विश्व प्रसिद्ध है। उन्होंने बताया कि हैंडलूम से साड़ी को बनाना बहुत ही महीन कार्य होता है। अगर एक आदमी पूरे दिन खड्डी पर बैठकर इसी काम में लगा रहे तो मात्र 4 इंच साड़ी बनती है।

एक साड़ी बनाने में महीनों लग जाते हैं। इस मेहनत का सभी नागरिकों को पता चल सके, इसी मकसद से उन्होंने मेले में स्टॉल के आगे ही खड्डी भी स्थापित की हुई है। उन्होंने बताया कि मशीनी युग में आज चाहे साडिय़ों या कपड़ों में किसी भी प्रकार की चमक ला सकते हैं, लेकिन जो बात हाथ से बनी इन साडिय़ों में है, वह मशीनों से बनी साडिय़ों में कभी नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि उनके स्टॉल पर 12 हजार से लेकर 80 हजार रुपए तक की कीमत की सिल्क व कॉटन की साडिय़ां हैं। यह साडिय़ां कॉटन सिल्क की खराई करके नेचुरल रंग डालकर बनाई जाती है। यह साड़ी फट जाएगी, लेकिन इसका रंग कभी फीका नहीं पड़ेगा।

शमीम अहमद ने बताया कि साडिय़ां बांधना आज महिलाओं के लिए स्टेटस सिंबल बन चुका है। यही कारण है कि विदेशों में भी अब साड़ी का पहनावा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। साड़ी भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसकी इस तरह स्वीकार्यता बढऩा हमारे लिए गौरव की बात है। उन्होंने बताया कि स्वदेशी सोच और स्वदेशी जागरण की जो नींव महात्मा गांधी ने रखी थी आज उसी नींव पर आत्मनिर्भरता की इमारत खड़ी हो रही है। पिछले एक दशक से खादी का चलन बहुत अधिक बड़ा है। अब खादी पैसे वालों के लिए स्टेटस सिंबल बन चुका है। यह हथकरघा से जुड़े लोगों के लिए बहुत अच्छी खबर है।