Shashi Thakur/Alive News
Faridabad : बच्चों के सपने को साकार करने के लिए अभिभावकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ अभिभावक अपने बच्चों के सपनों को साकार करने के लिए बैंकों से लोन लेते है तो कुछ अभिभावक अपने आभूषण भी गिरवी रखते हैं। ऐसे ही कुछ अभिभावक है जिन्होंने अपने बच्चों के सपने को पूरा करने के लिए लोन लेकर उन्हें डॉक्टर बनने के लिए यूक्रेन भेजा, लेकिन रूस की ओर से यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद अभिभावकों की भी नींद उड़ी हुई हैं। वह अपने बच्चों से संपर्क बनाए हुए हैं और यूक्रेन की ताजा स्थिति जानने के लिए अभिभावक टीवी और लैपटॉप पर चिपके हुए हैं और ट्वीट करके मुख्यमंत्री मनोहर लाल से लगातार अपने बच्चों की सुरक्षा की मांग कर रहे है।
राहुल कॉलोनी निवासी धर्मेंद्र नगर निगम में सुपरवाइजर हैं और उनके तीन बेटे हैं। उनके छोटे बेटे विशाल ने 2018 में बेहतर अंकों से 12वीं कक्षा पास की थी। उन्होंने डॉक्टर बनने का सपना देखा था। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने साइंस स्ट्रीम से 12वीं पास की। एक साल तक कोचिंग ली और नीट की परीक्षा भी दी। विशाल परीक्षा में तो पास हो गए, लेकिन बेहतर अंक नहीं आ सके। इससे की उन्हें एडमिशन नहीं मिला। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इस वजह से भारत में पढ़ाना तो मुश्किल हो गया।
ऐसे में विशाल के अभिभावकों ने यूक्रेन से एमबीबीएस कराने का विचार किया, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर विशाल के अभिभावकों ने बैंक से लोन लिया और मां शारदा ने अपने आभूषण गिरवी रख कर पैसों का इंतजाम किया, फिर विशाल ने यूक्रेन के इवानो नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में नवंबर 2021 में एमबीबीएस में एडमिशन ले लिया। विशाल के पिता धर्मेंद्र ने बताया कि बेटा इवानो शहर में हैं, लेकिन वहां माहौल शांत हैं। विशाल ने गुरुवार रात मैसेज करके बताया था कि हमले की वजह से इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं और आप बात करने का प्रयास मत करना। इसके बाद परिवार के लोगों की नींद उड़ी हुई है। परिवार के लोग लैपटॉप के माध्यम से यूक्रेन में हो रहे हमलों की ताजा स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।
21 फरवरी को यूक्रेन के लिए स्मृति ने भरी थी उड़ान
एनआईटी-5 डी ब्लाक निवासी जितेंद्र भाटिया कोचिंग सेंटर चलाते हैं और उनकी बेटी ने पिछले साल 12वीं कक्षा 93 प्रतिशत अंकों से पास की थी। स्मृति का डॉक्टर बनने का सपना है और इस सपने को साकार करने के लिए जितेंद्र भाटिया ने भागदौड़ की, लेकिन पता चला की बेटी को इंडिया में डॉक्टर बनाने में करीब एक करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो की उनके लिए मुश्किल था।
ऐसे में जितेंद्र ने अपने परिचित के माध्यम से स्मृति को यूक्रेन में भेजने का इंतजाम किया। 40 लाख रुपये में एमबीबीएस कराने की बात हुई और सात लाख रुपये लोन लेकर जितेंद्र ने पहली किश्त जमा कराई। एडमिशन की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए स्मृति ने 21 फरवरी को यूक्रेन के लिए उड़ान भरी। 18 साल की स्मृति ने कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि अब वह कीव में हैं, लेकिन इस वक्त कीव में हवाई हमले तेज हैं। उस बिल्डिंग को खाली करा दिया है, जिसमें वह ठहरी हुई है। भूख-प्यास से बुरा हाल है। खाने को कुछ नहीं मिल रहा। सरकार की ओर से खाने-पीने का बंदोबस्त नहीं किया गया है। इतनी बात होने के बाद कॉन्फ्रेंस पर बात होना बंद हो गया।
भारत में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना जरूरी
अभिभावकों के मुताबिक भारत में सब कुछ अच्छा है और साथ ही कुछ खामियां भी हैं। यूक्रेन में फसे बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि कहीं न कहीं हमारे भारत की शिक्षा व्यवस्था काफी कमजोर साबित हो रही है। परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करने के बाद भी आरक्षण के चलते जनरल परिवार के बच्चों को पीछे रहना पड़ता है और अच्छे प्रतिशत अंक लेने के बाद भी पढ़ाई के लिए भटकना पड़ता है।
आरक्षण लेने वाले युवाओं को कम प्रतिशत अंक लेने पर भी बेहतर सुविधाएं मिलती हैं। इंडिया में कम प्रतिशत वाले बच्चों के एडमिशन हो जाते हैं, लेकिन सामान्य परिवार के मेधावी बच्चों के एडमिशन नहीं होते। एमबीबीएस कराने में एक करोड़ रु़पये खर्च हो जाते हैं, ऐसे में युवाओं को विदेशों में भागना पड़ता है। इस तरह की व्यवस्था को बदलने की जरूरत है।