November 24, 2024

ध्यान कक्ष में सजनों को दिया गया बिना स्वार्थ सेवा करने का ज्ञान

Faridabad/Alive News : ध्यान-कक्ष में उपस्थित सजनों को आज निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देते हुए बताया कि जीव स्वभाव वश कर्म अभिमानी है। इस कर्म अभिमान से वासना प्रकट होती है और वासना के वशीभूत हुआ इन्सान फिर कर्म करता है। इस दुष्चक्रव्यूह में फंसा इन्सान संसारी पदार्थों के प्राप्त होने पर भी और न प्राप्त होने पर भी संतुष्टि व शान्ति प्राप्त नहीं कर पाता। इससे छूट कर आत्मतुष्टि व अखंड शान्ति प्राप्त करने के लिए उसके पास एक ही साधन होता है और वह होता है दृढ़ता से परमतत्व की परायणता यानि प्रभु परायण होकर तमाम कर्मों के सुख-दु:ख रूपी फलों को उसके हुक्म यानि आज्ञा पर छोड़ कर अकर्त्ता व निष्काम भाव से हितकारी कर्म करने में प्रवृत्त हो जाए।

कहने का आशय यह है कि कर्मफल की इच्छा का पूरी तरह से त्याग कर, सिद्धि-असिद्धि में समान भाव रखते हुए, निर्लिप्तता से निष्काम कर्म करने में प्रवृत्त हो जाओ। निश्चित ही वर्तमान जीवन में समभाव-समदृष्टि की युक्ति के अनुशीलन के अनुरूप इस प्रकार अकर्त्ता भाव से निष्काम कर्म करने से जीव कर्मबन्धन से स्वतन्त्र हो सकता है। यह निष्काम कर्म ही उसके जन्ममरण के चक्र से मुक्त होने का एकमात्र साधन सिद्ध हो सकता है। इसी निष्काम रास्ते पर चलकर वह ईश्वरत्व को सहज पा सकता है और जीवन सफल बना सकता है।