मां के दूध को लेकर पूरी दुनिया में शोध हो चुके हैं, जिनसे ये सिद्ध किया जा चुका है कि मां का दूध नवजात के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंंद होता है. करीब एक साल तक जब तक बच्चा ठोस आहार नहीं लेने लगता, तब तक मां का दूध ही ऐसा होता है जो ऊर्जा देने के साथ साथ बच्चे को हाइड्रेट रखता है. लेकिन फिर एक ऐसा भी वक्त आता है जब डॉक्टर भी मां का दूध छुड़ाने की सलाह देते हैं. ऐसे में ये लम्हा मां और बच्चे के बीच इमोशनल कनेक्शन के बीच आता है. मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में सामने आया है कि ये आदत छुड़ाना मां और बच्चे दोनों के लिए कठिन है. जानिए- इसके लिए क्या करना चाहिए.
सर गंगाराम अस्पताल में चाइल्ड साइक्रेटिस्ट डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि कई मांओं में वीनिंग यानी कि दूध छुड़ाने के बाद डिप्रेशन के गुण भी बढ़ जाते हैं. वो खुद को हल्का महसूस करने के बजाय चिड़चिड़ा और उदास महसूस करती हैं, उन्हें लगता है कि वो बच्चों को दुख पहुंचा रही हैं. लेकिन ये लक्षण अगर सीमित हैं तो ये असामान्य नहीं है. लेकिन कुछ माताओं को चिड़चिड़ापन, एंजाइटी या डिप्रेशन का अनुभव होता है. ये भावनाएं आमतौर पर अल्पकालिक होती हैं और कुछ हफ्तों में दूर हो जानी चाहिए, लेकिन यदि इसके अधिक गंभीर लक्षणों का अनुभव होता है तो ऐसी माताओं को डॉक्टरी सलाह और उपचार की आवश्यकता होती है.
डॉक्टर सलाह देते हैं कि बच्चे को 6 महीने का होने तक सिर्फ स्तनपान ही जरूरी होता है. मां के दूध में सभी तरह के पोषक तत्व होते हैं जो 6 महीने तक शिशु के विकास में मदद करते हैं. यही नहीं स्तनपान कराने से मां और बच्चे दोनों के बीच का रिश्ता मजबूत होता है. लेकिन बच्चे के एक साल के होने के बाद आप उसे स्तनपान करवाना बंद कर सकती हैं. इसके लिए सबसे पहले खुद को तैयार करना चाहिए.
आप अगर समझ गई हैं कि ये बच्चे का दूध छुड़ाने का सही समय है और बच्चा सॉलिड खाने पर डिपेंड हो सकता है तो डेढ़ साल की उम्र सबसे सही समय है कि आप दूध छुड़ाने के लिए एक शेड्यूल तैयार करें. इसके लिए पहले आप स्तनपान के टाइमिंग में गैप करना शुरू करें. मसलन आप बच्चे को रात में खिलाकर सुलाएं और बीच बीच में उसे फीड कराने से बचें और दिन में भी टाइमिंग का गैप बढ़ा दें. इससे बच्चे का रूटीन बदलने लगता है.
अगर आप बच्चे को दूध छुड़ाने की प्रक्रिया से गुजर रही हैं तो सबसे पहले आपको उसे पूरी तरह इमोशनल कंफर्ट देना होगा. आप उसके साथ बिना ब्रेस्ट फीडिंंग कराए भी वक्त बिताएं. उसकी मांग पर आप उसका ध्यान खेल या अन्य चीजों पर लगाकर धीरे धीरे उसका टाइम गैप बढ़ाएं. इस तरह बच्चे मां के साथ दूसरी वजहों से भी इमोशनली जुड़ते हैं. आप कोशिश करें कि इस दौरान उसका पेट अन्य सॉलिड द्रव्यों से भरने की सोचें फिर इसके बाद ही उसे दूध पिलाएं.
कई बार बच्चा मां से बोतल या किसी और चीज से पीने या खाने से मना करता है. वो ब्रेस्ट फीडिंग की जिद पर अड़ा रहता है. ऐसे में आप दादी, नानी या बेबी सिटर या किसी अन्य की मदद ले सकते हैं. आप इस बात को जरूर परखें कि अगर आप उनकी नजरों से ओझल होंगी तो क्या बच्चा किसी और से वो चीजें ले लेता है. अगर ऐसा है तो ये वीनिंग के लिए सबसे आसान जरिया बन सकता है.
लेकिन अगर आप खुद ही अपने बच्चे की देखरेख करती हैं तो आपको अपनी दिनचर्या में बदलाव करने होंगे. मसलन यदि आप अपने बेडरूम में उन्हें दूध पिलाती हैं तो लिविंग रूम में नर्सिंग करें, उन्हें किसी अन्य स्थिति में रखने का प्रयास करें. यदि दिनचर्या बदलने से काम नहीं बनता है, तो अपने पुराने तरीकों पर वापस लौट आएं, फिर कुछ हफ्तों में फिर से प्रयास करें. इस तरह आपका कंफर्ट जोन बदलेगा और दोनों का रूटीन चेक होगा.
बच्चे के दूध मांगने पर आप उसे मना करके कष्ट देने की बजाय उसे अलग-अलग नई चीजें खिलाने की कोशिश करें. बच्चे को नाशपाती, केला, एवोकैडो जैसे पौष्टिक फल खिला सकती हैं. जबरदस्ती कुछ भी खिलाने की कोशिश न करें, ऐसा करने से बच्चा चिढ़ेगा. इसके अलावा स्तनपान बंद करने पर आप उन्हें फॉर्मूला मिल्क देना शुरू कर दें. पहले दिन में एक बार बच्चे को स्तनपान करवाएं और फिर दूसरी बाद बोतल या कप से दूध पिलाएं.