Job/Alive News: कोरोना के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था में कोई खास सुधार नहीं आया है। हमारे देश में बेरोजगारी के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। वहीं देखा जाये तो 5 साल से कम उम्र वाले ग्रेजुएट्स के लिए बेरोजगारी दर 42 फीसदी तक पहुंच गई है ऐसे में हाई स्कूल की एजुकेशन हासिल करने वालो के बीच बेरोजगारी में काफी बड़ा अंतर है।
रिपोर्ट के मुताबिक 25 साल से कम उम्र के शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी दर 40 फीसदी है। वहीं 35 साल और उससे ज्यादा के उम्र वाले ग्रेजुएट्स के लिए बेरोजगारी दर 5 फीसदी से भी कम हो गई है। यह रिपोर्ट अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की तरफ से पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS)2021-22 के आंकड़ों का हवाला देते हुए पब्लिश की गई है।
नौकरी मिलने पर बने हुए हैं ये सवाल
रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि भले ही ग्रेजुएट्स को नौकरी मिल जाती है पर उनको मिलने वाली नौकरी क्या उनकी योग्यता या फिर पढ़ाई के हिसाब से है इस पर सवाल बना हुआ है। इस पर अभी और भी ज्यादा रिसर्च किए जाने की जरूरत है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के बाद वर्कफोर्स का आकार बढ़ा है, भागीदारी दर भी बढ़ी है। साथ ही बेरोजगारी भी कम हुई है। 2021-22 तक, खुली बेरोजगारी की दर 2017-18 में सबसे ज्यादा 8.7 प्रतिशत पर थी। जो कि बाद में कम होकर 6.6 फीसदी पर आ गई है। यह गिरावट ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों के पुरुष और महिलाओं के बीच दर्ज की गई है।
कमजोर बनी हुई है अर्थव्यवस्था
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि बेरोजगारी स्थिर आय से मेल खाती है जो कि यह बताती है कि लेबर डिमांड कमजोर बनी हुई है और अर्थव्यवस्था में लगातार कमजोर डिमांड का असर काम करने वालों पर भी पड़ रहा है। महिलाओं की भागीदारी भी वर्कफोर्स में बढ़ी है। साल 2004 के बाद सेल्फ इंप्लॉइमेंट में संकट की वजह से साल 2019 से महिला रोजगार दर में इजाफा हुआ है। कोविड से पहले महिलाओं में सेल्फ इंप्लॉइमेंट लगभग 50 फीसदी तक था। कोविड के बाद यह बढ़कर 60 फीसदी पर आ गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के लॉकडाउन के दो साल बाद, अप्रैल-जून 2019 तिमाही में सेल्फ इंप्लॉइमेंट की कमाई केवल 85 प्रतिशत थी।
नौकरीपेशा लोगों की हिस्सेदारी में हुआ है इजाफा
1980 के दशक से स्थिरता के बाद, 2004 में नियमित वेतन या फिर नौकरीपेशा श्रमिकों की हिस्सेदारी में इजाफा हुआ है। यह पुरुषों के लिए 18 फीसदी से 25 फीसदी और महिलाओं के लिए 10 फीसदी से 25 फीसदी हो गई। 2004 और 2017 के बीच, सालाना लगभग 3 मिलियन नियमित सैलरी वाली नौकरियां पैदा हुईं। 2017 और 2019 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 50 लाख सालाना हो गया था। साल 2019 के बाद से विकास में मंदी और कोविड की वजह से नियमित वेतन वाली नौकरियों में कमी आई है।
महिलाओं और पुरुषों के बीच कम हुई है असमानता
साल 2004 में वेतनभोगी महिला कर्मचारी पुरुषों की कमाई का 70 फीसदी कमाती थीं। साल 2017 यह अंतर और कम हो गया और महिलाओं की कमाई पुरुषों की तुलना में 76 फीसदी हो गई। तब से यह अंतर 2021-22 तक स्थिर बना हुआ है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि छोटी कंपनियों में भी वर्कफोर्स में एससी और एसटी जातियों की हिस्सेदारी अभी भी कम बनी हुई है।