November 21, 2024

‘राजनीतिक सशक्तिकरण’ का आक्सीजन

Poonam Chauhan/Alive News
महिलाओं’ को सत्ता शक्ति की आक्सीजन से लबरेज करेंगे। जी हां, भारत सरकार की रीति-नीति तो यही बयां कर रही है कि महिलाओं को ‘राजनीतिक सशक्तिकरण’ की आक्सीजन दी जाएगी। राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को एक बार फिर आरक्षण में इजाफा का लाभ मिल सकता है। पंचायतों में अभी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ हासिल है। पंचायती राज व्यवस्था में 33 प्रतिशत के इस आरक्षण को अब बढ़ा कर पचास प्रतिशत करने की तैयारी है। केंद्र सरकार की मानें तो महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में 33 प्रतिशत आरक्षण में वृद्धि कर पचास प्रतिशत करने संशोधन लाने की तैयारी है। आरक्षण में इजाफा का यह संशोधन (प्रस्ताव) संसद के बजट सत्र में लाने की कोशिश है। ऐसा नहीं है कि अभी महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ हासिल नहीं है, लेकिन संविधान संशोधन के बाद इसे देश के सभी राज्यों में अनिवार्य तौर पर लागू किया जाएगा। इस आशय के संकेत खुद केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय ने दिए हैं। संशोधन को सर्वमान्य बनाने के लिए सरकार राजनीतिक दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश में है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय की मानें तो संविधान संशोधन को प्रभावशाली तौर तरीके से लागू किया जाए तो निश्चय ही समाज में व्यापक स्तर पर बदलाव-परिवर्तन को महसूस किया जा सकेगा। संविधान संशोधन करना हो या कोई नया कानून बनाना हो तो सरकार रणनीतिक दांव-पेच से अपनी इच्छाओं को अमल में ला सकती है। विशेषज्ञों की मानें तो अधिनियम को प्रभावशाली तरीके से लागू किया जाए तो निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। ऐसी स्थिति में जनजातीय आबादी, ग्राम पंचायत स्तर और छोटी ग्राम सभाओं के मसले.. समस्याएं आसानी से सामने आ सकेंगे। निस्तारण की प्रक्रिया भी आसान होगी। महिलाओं को सत्ता में आरक्षण का यह प्रतिशत बढ़ाने से लेकर नियमों, पंचायती राज अधिनियम, अनुपालन, ग्राम सभाओं की कार्य संस्कृति, ग्राम सभाओं की अधिकारिता, ग्राम सभाओं की संरचनाओं सहित अनेक मसलों पर नीति नियंताओं के बीच मंथन-विचार विमर्श दिखने लगा। समाज के सर्वागीण विकास.. सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के लिए आवश्यक है कि विकास की नीति बने तो वहीं आवश्यक है कि अधिनियम-कानून भी बने। अधिनियम-कानून बनने से भी कहीं अधिक आवश्यक है कि उसका अनुपालन-क्रियान्वयन सुनिश्चित हो। अब चाहे स्थानीय निकायों को स्वायत्तशासी बनाने की बात हो या सत्ता को स्थानीय स्तर पर प्रभावी बनाने की बात संविधान के 73 एवं 74 वे संशोधन में निचली सरकार को सही मायने में सरकार बनाने की ताकत दी गई, लेकिन हकीकत में देखें तो संविधान का यह अतिमहत्त्वपूर्ण संशोधन फाइलों से बाहर नहीं निकल सका। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश सहित देश के दक्षिण के राज्यों को छोड़ दिया जाए तो संविधान का 73 व 74 वां संशोधन देश के अधिसंख्य राज्यों में हाशिये पर चला गया। लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो सही मायने में महिलाओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका। अब चाहे बात स्थानीय निकाय में नगर निगम की हो या पंचायत क्षेत्र की हो.. आरक्षण से महिलाओं को भले जनप्रतिनिधि का दर्जा हासिल हो गया हो, किंतु हकीकत में महिलाओं का एक बड़ा तबक ‘रबर स्टाम्प’ से अधिक कुछ भी नहीं है। ग्राम पंचायत हों या नगर निगम हों या फिर नगर पालिका क्षेत्र, महिलाओं को आरक्षण का लाभ तो मिलता है, परंतु अधिसंख्य फैसले उनके पति या अन्य पुरुष परिजन लेते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को ही सत्ता का हुक्मरान माना गया है लेकिन आरक्षण की इस व्यवस्था ने महिलाओं को राजनीतिक सशक्तिकरण तो दिया लेकिन पुरुष वर्चस्व ने नारी सशक्तिकरण में स्पीड ब्रेकर लगा दिए, जिससे अधिकार सम्पन्न होने के बावजूद महिलाएं दोयम दज्रे की दशा में खड़ी दिखती हैं। संविधान संशोधन ने ही भूरिया समिति की रिपोर्ट के आधार पर पंचायती राज(अनुसूूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम-1996 में लागू किया था। भूरिया समिति की रिपोर्ट 1995 में पेश की गई थी। इसे एक वर्ष के बाद लागू किया गया था। विशेषज्ञों की मानें तो पंचायती राज व्यवस्था में गांव-गिरांव, तालुका व जिला सहित संपूर्ण ग्रामीण क्षेत्र आता है। देश में लंबे समय से पंचायती राज की व्यवस्था अस्तित्व में रही। देश आजाद होने के बाद तत्त्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में संवैधानिक तौर-तरीके से राजस्थान के नागौर जिला में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी। संविधान के अनुच्छेद 40 में प्रांतीय सरकारों को पंचायती व्यवस्था को अमल में लाने की पहल की गई थी। वर्ष 1993 में संविधान में 73 वां संशोधन किया गया। इस संविधान संशोधन अधिनियम में निचली सरकारों को ताकत दी गई। संविधान के इसी संशोधन से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ के सपने को सार्थक आयाम देने की दिशा में कोशिश की गई। संविधान संशोधन में व्यवस्था दी गई कि प्रत्येक पांच वर्ष में पंचायतों के नियमित चुनाव-निर्वाचन होंगे। अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आबादी के आधार पर सीटों का आरक्षण मिलेगा। महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण होगा। पंचायत की निधि में सुधार के उपाय अमल में लाए जाएंगे। राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर पंचायतों को आर्थिक संसाधन उपलब्ध होंगे। पंचायतों को स्वशासन संस्थाओं के तौर पर कार्य करने के लिए आवश्यक शक्तियां दी जाएंगी। इसमें आर्थिक विकास से लेकर सामाजिक न्याय सहित बहुत कुछ सम्मिलित किया गया था। संविधान के 73 वां संशोधन में ग्राम सभाओं को शक्तियां प्रदान की गई, उनमें मुख्यत: गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस व गांधी जयंती पर ग्राम सभाओं की पंचायत-चौपाल-बैठक आयोजित करने की व्यवस्था है। इसी तरह से संविधान के 74 वां संशोधन में नगर निगमों को स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर शक्ति सम्पन्न बनाने का खाका खींचा गया था, लेकिन नगर निकायों में ई-गर्वनेंस को छोड़ कर कहीं कोई बदलाव नहीं आया। संविधान संशोधन की करीब-करीब सभी व्यवस्थाएं-प्रावधान हाशिये पर चले गए। विशेषज्ञों की मानें तो संविधान के 73 वां एवं 74 वां संशोधन के शत-प्रतिशत लागू होने से प्रांतीय सरकारों की दखलंदाजी खत्म हो जाएगी। लिहाजा कतिपय प्रांतीय सरकारें संशोधन को लागू नहीं करना चाहतीं। शासन सत्ता में महिलाओं की अपेक्षित भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। हक वास्तविक हकदार को मिलना चाहिए लेकिन वास्तविक धरातल पर महिलाओं को आरक्षण का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। महिलाओं को आरक्षण से लेकर बराबरी का दर्जा देने के लिए आवश्यक है कि सर्वसमाज में इच्छाशक्ति हो। नारी कार्य संस्कृति को स्वीकारने की इच्छाशक्ति हो। इच्छाशक्ति बनेगी-बदलेगी तो नारी शक्ति बनेगी।